हैदराबाद : किसी भी देश की अर्थव्यवस्था वहां उत्पन्न वस्तुओं और सेवाओं (जैसे भोजन, कच्चे माल, परागण, जल निस्पंदन और जलवायु विनियमन) के प्रवाह पर निर्भर करती हैं, लेकिन प्रकृति अभूतपूर्व खतरे में है. ऐसे में हमे सजग होने की जरूरत है.
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट, 'द इकोनॉमिक केस फॉर नेचर (The Economic Case for Nature) में जिक्र किया गया है कि नवीन आर्थिक तकनीकों का उपयोग कर देश की अर्थव्यस्था को बढ़ाने में योगदान दिया जा सकता है. प्रकृति से जुड़ी वस्तओं और सेवाओं के इस्तेमाल के संबंध में सही निर्णय से अर्थव्यस्था को बढ़ाने में मदद मिल सकती है. साथ ही ये अनुमान लगाना भी सहज हो जाता है कि कैसे चुनिंदा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में परिवर्तन अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं.
रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि प्रकृति हमें स्मार्ट नीतियां बनाने के विकल्प भी देती है, जिनसे हम अर्थव्यवस्था गिरने के जोखिम कम कर सकते हैं. ऐसा करने से जैव विविधता और आर्थिक परिणामों के संदर्भ में सफलता ही सफलता है.
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का आधे से अधिक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर निर्भर उद्योगों द्वारा उत्पन्न होता है.
- रिपोर्ट से पता चलता है कि अगर प्रकृति को नुकसान होता है तो विकास प्रभावित होता है. ऐसे में ये प्रमुख मुद्दा है.
- यदि हम हमेशा की तरह जारी रखते हैं तो मूल्यवान पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर असर पड़ेगा.
- यदि 2030 तक ये पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं ध्वस्त हो जाती हैं तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2.7 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है जो कि वैश्विक जीडीपी में 2.3% की गिरावट है. कम आय वाले देशों में वार्षिक जीडीपी में 10% की गिरावट देखी जा सकती है.
प्रकृति के लिए अच्छी नीतियां अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के लिए भी जरूरी
1. कृषि सब्सिडी में सुधार
2. वैश्विक वन कार्बन भुगतान व्यवस्था लागू करें
3. कृषि अनुसंधान और विकास में निवेश करें
अच्छी नीतियों के साथ-साथ कृषि अनुसंधान और विकास का मिश्रण सफलता का मार्ग दिखाता है. आर्थिक लाभ का 80% फायदा निम्न और मध्यम आय वाले देशों को होता है जिनमें नीतिगत मिश्रण में अनुसंधान और विकास होता है.
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