नई दिल्ली: ई. इस मामले पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एनवी रमणा, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने सुनवाई की. यहां याचिकाकर्ता ने कहा कि पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज के नेतृत्व में समिति बना दी जाए, जबकि एसजी तुषार मेहता ने कहा कि पूर्व कैग के नेतृत्व में समिति बनाई जाए. इस पर सीजेआई ने कहा कि जो रिटायर हो गया उसकी क्या वैल्यू रहती है. सीजेआई ने आगे कहा कि मैं नई पीठ को यह मामला भेज रहा हूं जो मैनिफेस्टो मामले में दिए गए पूर्व के फैसलों पर गौर करेगी. इसके साथ ही यह तय हो गया है कि तीन जजों कि पीठ आगे फ्रीबीज मामले पर सुनवाई करेगी.
सीजेआई ने आगे कहा कि सवाल यह है कि फ्रीबीज चुनाव के पहले के वादे का मसला एक है, जबकि कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा के खिलाफ भी याचिकाएं दाखिल हुईं तो फिर क्या होगा. इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पोस्ट पोल वादा या योजना अलग मसला है. एक आवेदक की ओर से प्रशांत भूषण ने फ्रीबीज पर तर्क देना शुरू किया. सीजेआई ने कहा कि यहां पर दो सवाल हैं कि चुनाव से पहले के वादे और उनके खिलाफ चुनाव आयोग कोई एक्शन ले सकता है.
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इस प्रथा को, इस रवैये को बंद करना चाहिए: इस पर भूषण ने कहा कि मेरी राय में मुख्य समस्या यह है कि चुनाव से तत्काल पहले वादा करना एक तरह से मतदाता को रिश्वत देना है. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि चुनाव से पहले ऐसे वादों से वित्तीय संकट खड़ा होता है, क्योंकि वह आर्थिक हालात को ध्यान में रखकर नहीं किए जाते. इसका जवाब देते हुए एसजी तुषार मेहता ने कहा कि पार्टियां वोटर को रिझाने के लिए चुनाव से पहले वादा करती हैं. जैसे बिजली फ्री देंगे या कुछ और तो इस प्रथा को, इस रवैये को बंद करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की गठन कौन करेगा : सीजेआई ने कहा कि केंद्र सरकार इस मसले पर विचार करने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन क्यों नहीं करती. एसजी मेहता ने कहा कि मामला आपके पास है. सरकार हरेक पहलू पर सहायता करने को तैयार है. चुनाव में मुफ्त की घोषणाओं पर नियंत्रण के लिए सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की गठन कौन करेगा, इसको लेकर सॉलिसिटर जनरल ने पूर्व सीएजी विनोद राय का नाम सुझाया. जबकि याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज आरएम लोढा का नाम सुझाया.
सीजेआई ने पूछा- केंद्र इस पर सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाता: वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने कहा कि यदि घोषणापत्र में कुछ है तो उसे मुफ्तखोरी कहा जा सकता है. मुफ्त उपहारों के आर्थिक प्रभाव का आकलन करने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है. इस मामले पर सीजेआई ने कहा कि केंद्र इस पर विचार करने के लिए सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाता है. इस पर एसजी ने कहा कि अब यह होना चाहिए कि कौन इसे देख सकता है और रूपरेखा को परिभाषित कर सकता है, तो समिति इस मुफ्तखोरी को देख सकती है.
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