अमरावती (आंध्र प्रदेश): बीमारी के चलते मां का निधन हो गया, लेकिन इसके बाद भी आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने 10 महीने की बच्ची को उसके पिता को सौंपने से इनकार कर दिया. बच्ची की देखभाल उसकी नानी और नाना कर रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि बच्ची के पिता यह साबित करने में विफल रहे कि बच्ची नाना-नानी के साथ अवैध रूप से हिरासत में था. नाना और नानी ने जन्म से ही बच्ची की देखभाल की. दुर्भाग्य से बीमारी के कारण मां की मृत्यु हो गई. हाईकोर्ट ने कहा कि नैसर्गिक अभिभावकों के अधिकारों का निर्णय करने से पहले न्यायालयों को बच्चों के कल्याण पर विचार करना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि बच्ची को पाने के लिए पिता सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है. कोर्ट ने यह भी साफ किया कि पिता हर रविवार को अपनी नानी और नाना के साथ रहने वाली बच्ची की देखभाल के लिए जा सकते हैं. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यू. दुर्गा प्रसाद राव और न्यायमूर्ति बी.वी.एल.एल. चक्रवर्ती की एक पीठ ने यह फैसला सुनाया. बापटला जिले के गोपी नाम के एक शख्स ने हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर पुलिस को उसकी 10 महीने की बेटी को सौंपने का आदेश देने की मांग की है, जो उसके ससुराल वालों की अवैध हिरासत में है.
कोर्ट ने दोनों की दलीलें सुनकर मुकदमा खारिज कर दिया. 15 अक्टूबर 2021 को उनकी पत्नी के. मौनिका ने एक बच्ची को जन्म दिया. बीमारी के कारण 03 अप्रैल, 2022 को उनका निधन हो गया. के. मौनिका के पति गोपी ने यह आरोप लगाते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि ससुराल वालों ने बच्ची को अवैध रूप से हिरासत में रखा हुआ है. गोपी के वकील की ओर से दलील दी गई कि याचिकाकर्ता के ससुराल वाले उसकी पत्नी के आर्थिक लाभ बांटने की धमकी दे रहे हैं.
उन्होंने कहा कि बकाया राशि नहीं मिलने में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बच्ची को जबरदस्ती ले जाया गया है और याचिकाकर्ता बच्ची के कल्याण के लिए खर्च कर सकता है. याचिकाकर्ता एक निर्माण कंपनी में सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत है. आरोप है कि बच्चे की अवैध हिरासत को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है. हाईकोर्ट ने नानी और नाना की ओर से वकील की दलीलें सुनते हुए कहा कि उन्होंने जन्म से ही बच्ची की देखभाल की है.
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बच्ची के नाना-नानी ने कहा कि याचिकाकर्ता पति उनकी बेटी की मौत के बाद दुर्भावनापूर्ण इरादे से वित्तीय लाभ प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था. पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर सका कि बच्ची ससुराल वालों की अवैध हिरासत में है और वे बच्ची के कल्याण की देखभाल नहीं कर रहे हैं. इसी के चलते हाईकोर्ट ने मुकदमा खारिज कर दिया और पिता को दीवानी अदालत जाने की सलाह दी है.