नई दिल्ली : भाजपा के लगातार बढ़ते जनाधार व एक के बाद एक नए राज्य में सरकारों से कई क्षेत्रीय दल परेशान हैं. कई लोगों को यह लगने लगा है कि अगर सारे दल एक होकर भाजपा के खिलाफ खड़े नहीं होंगे तो उनका अस्तित्व खत्म हो जाएगा. देश की राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका को लेकर वर्तमान स्थिति में तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया के. चंद्रशेखर राव (Telangana Rashtra Samithi Chief K Chandrashekhar Rao) को राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका (KCR Role in National Politics) निभाने के लिए जोर लगाते देखे जा रहे हैं. देश के ताजा राजनीतिक हालात व राष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा के बहाने व गैर भाजपाई व गैर कांग्रेसी नेताओं का एक बार फिर मंच तैयार करना चाह रहे हैं. ताकि वह 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले समान विचारधारा वाले दलों को एक साथ लाकर एक मजबूत विकल्प दिया जा सके और एकबार फिर से गठबंधन वाली राजनीति से सबका साथ सबका विकास करने की बात समझायी जा सके.
केसीआर, मोदी और भाजपा पर उनकी विभाजनकारी राजनीति, गलत नीतियों पर ताबरतोड़ हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. मोदी के पुराने नारे 'कांग्रेस मुक्त भारत' के खिलाफ केसीआर अब 'भाजपा मुक्त भारत' का नारा दे रहे हैं. केसीआर 2018 से ही एक अपनी एक राष्ट्रीय भूमिका को देख रहे हैं, लेकिन हाल के महीनों में उनका यह प्रयास काफी तेज हो गया है.
पिछले महीने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे एक पत्र में, केसीआर ने आरोप लगाया कि योजना की कमी और संघात्मक व्यवस्था यानि शक्तियों का विभााजन में कमी के कारण, देश सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है. इसमें रुपये का गिरता मूल्य, उच्च मुद्रास्फीति, आसमान छूती कीमतें और बढ़ती बेरोजगारी जैसी भयावह समस्याएं हैं जो कम आर्थिक विकास के साथ पैदा हुई हैं. टीआरएस नेता ने अपने पत्र में भारत को एक मजबूत और विकसित देश बनाने के सामूहिक प्रयास में राज्यों को समान भागीदार नहीं मानने के लिए भी केंद्र की आलोचना की. वह संघात्मक व्यवस्था जैसे मुद्दों को उठाकर राज्यों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. केसीआर ने राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों के कर्ज लेने को सरकार का कर्ज मानने के लिए भी केंद्र पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि इससे तेलंगाना और कई अन्य राज्यों की प्रगति पर ब्रेक लग गया है. आजादी के 75 साल बाद भी लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में विफल रहने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों के कटु आलोचक केसीआर राष्ट्रीय राजनीति में गुणात्मक परिवर्तन लाने और भारत को एक समृद्ध राष्ट्र में बदलने के विकल्प की बात करते रहे हैं।
केंद्र में भाजपा सरकार के खिलाफ गठबंधन करने की कोशिश कर रहे तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया के. चंद्रशेखर राव विभिन्न क्षेत्रीय दलों के नेताओं के साथ बातचीत और मेल मिलाप तेज कर रहे हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने 31 अगस्त को पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मुलाकात की तो बेंगलुरू का दौरा करके पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा और कुमारस्वामी से मुलाकात की थी. इसे देखकर ऐसा लगता है कि वह 2018-19 में इस तरह की पहल कर चुके थे और माना जा रहा था कि वह अपने बेटे को राज्य की सत्ता सौंप कर अपने आपको देश की राजनीति में स्थापित करने की कोशिश करेंगे.
ये हैं सकरात्मक संभावनाएं
तेलंगाना राज्य बनने के लिए केसीआर ने एक तरह से अपने जान की बाजी लगा थी और चंद्रबाबू नायडू व आंध्र प्रदेश की राजनीति के और बड़े चेहरों को पीछे छोड़कर न सिर्फ नया तेलंगाना राज्य बनवाने का श्रेय हासिल किया, बल्कि राज्य बनने के बाद से लगातार दो सरकारों के मुखिया के रुप में कार्य करते हुए कांग्रेस व भाजपा से जोरदार तरीके से टक्कर भी ली है. तेलंगाना में विधानसभा की राजनीति में कांग्रेस व भाजपा के मुकाबले तेलंगाना राष्ट्र समिति काफी मजबूत है और उनको लगता है कि उनका बेटा अब उनकी विरासत संभाल लेगा. इसीलिए न सिर्फ उसे दोनों सरकार में मंत्री बनाया बल्कि कई सालों से कार्यकारी अध्यक्ष की भी जिम्मेदारी दे रखी है. वहीं अपनी पार्टी के बेस वोट को संभालने के लिए अपने भांजे हरीश राव को भी साथ रखे हुए हैं. कहा जा रहा है कि वह राज्य की राजनीति इनके हवाले करके खुद को राष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर से ले जाना चाहते हैं.
हिन्दीभाषी और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों में स्वीकार्य
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (Telangana Chief Minister K Chandrashekhar Rao) ने अपनी कार्यशैली व व्यवहार से उत्तर भारत ही नहीं अन्य राज्यों के नेताओं से भी बेहतर तालमेल स्थापित कर रखा है और कई मामलों पर खुलकर उनका समर्थन किया और उनके साथ मोदी सरकार के विरोध में भी खड़े हुए. इतना ही नहीं अक्सर वह सपा मुखिया अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी या अन्य दलों के नेताओं से मुलाकात करके अपनी राजनीतिक मुहिम को जिंदा रखे हुए हैं. इसीलिए उत्तर प्रदेश व बिहार के दोनों नेता कई बार तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव से मुलाकात कर चुके हैं. वहीं ममता व अरविंद केजरीवाल भी इनके कामकाज की सराहना कर चुके हैं.
हिंदी और अंग्रेजी भाषा की जानकारी
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव अच्छा तेलुगु वक्ता के साथ साथ हिंदी व अंग्रेजी भाषा की भी अच्छी जानकारी है. हैदराबाद से जुड़े रहने के कारण वह अच्छी दक्कनी भाषा बोल लेते हैं. वह हिन्दी व उर्दू वाले शब्दों का भी इस्तेमाल करते हैं. वह कई बार अपनी बात हिंदी व अंग्रेजी भाषा में रखा करते हैं. दक्षिण भारत के नेताओं में बहुत कम ऐसे राजनेता हैं, जो अपनी मातृभाषा के साथ साथ हिंदी व अंग्रेजी भी जानते हैं. इसीलिए उनके संबोधन में भाषा आड़े नहीं आएगी. यह उनके लिए एक बड़ा प्लस प्वाइंट है.
अपनी योजनाओं से बरकरार रखना है जनाधार
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने किसानों, पिछड़ों व दलितों के साथ साथ अल्पसंख्यकों के वोटों पर अपनी लाभकारी योजनाओं के जरिए पकड़ बनाए रखी है. किसानों को मुफ्त बिजली देकर वह वाहवाही हासिल कर चुके हैं. केसीआर ने वादा किया है कि अगर केंद्र में गैर-भाजपा सरकार सत्ता में आती है, तो देश भर के किसानों को मुफ्त बिजली की आपूर्ति की जा सकती है. उन्होंने हाल ही में 26 राज्यों के किसान नेताओं की एक बैठक की भी मेजबानी की थी. दो दिवसीय बैठक में तेलंगाना के कृषि की सफलता को दोहराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर किसानों के एक संयुक्त मंच का प्रस्ताव रखा गया. इससे संकेत मिलता है कि केसीआर ने वैकल्पिक राष्ट्रीय एजेंडे पर काम करने के लिए देश भर के किसान संगठनों को एकजुट करने की पहल की है.
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केसीआर की राह के रोड़े
कहा जा रहा है कि तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया के. चंद्रशेखर राव भले ही अकेले दम पर एक नया विकल्प तैयार करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की रणनीति एनसीपी चीफ शरद पवार, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल जैसे दिग्गजों को मिलाकर यह लड़ाई तेज की जा सकती है. लेकिन इसमें नीतीश कुमार, ममता बनर्जी व अरविंद केजरीवाल किसी और के नेतृत्व को इतनी आसानी से स्वीकार कर लेंगे. इतना भी आसान नहीं दिख रहा है. इसकी एक वजह यह है कि नीतीश कुमार ने राज्य की राजनीति में जितना अधिकतम पाना था वह पा लिया है, लेकिन ममता बनर्जी व केजरीवाल को अभी एक दो मौके और मिल सकते हैं. लेकिन आम आदमी पार्टी खुद को सारे देश में फैलाने की मुहिम में जुटी है और वह किसी के साथ तभी मिलाएगी, जब उसके पास कोई और विकल्प नहीं होगा. यह बहुत कुछ गुजरात के चुनाव परिणाम पर निर्भर होगा.
नीतीश से आगे निकलने की चुनौती
राजनीतिक मामलों पर पैनी नजर रखने वाले पूर्व प्रशासनिक अफसर व पत्रकार दिनेश गर्ग का कहना है कि नीतीश कुमार राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी की तरह अजातशत्रु बनकर उभरे हैं और वह गठबंधन की राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. उनका केवल एक ही विरोधी लालू प्रसाद यादव थे, जिनका पूरा कुनबा अब उनके साथ है. ऐसे में किसी और का विकल्प बनना तब तक मुश्किल है, जब तक वह मना न कर दें. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव लोगों को एकत्रित करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन सारे लोग चुनाव के पहले उनका नेतृत्व स्वीकार करेंगे, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि वह अभी केवल एक राज्य के नेता के रुप में स्थापित हैं.
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कांग्रेस की नहीं कर सकते इग्नोर
बीबीसी के पूर्व संवाददाता और उत्तर भारत की राजनीति के विशेषज्ञ रामदत्त त्रिपाठी का कहना है कि नीतीश कुमार से बेहतर विकल्प कोई और नहीं दिखता है, लेकिन कांग्रेस को इग्नोर करके बनने वाला कोई गठबंधन या मंच मोदी को जोरदार टक्कर नहीं दे पाएगा. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस का पूरे देश में संगठन है और वह हर जगह चुनाव लड़ेगी और इन सारे विरोधी दलों में सर्वाधिक सीटें जीतकर उभरेगी. केसीआर इसके पहले भी जोर लगा चुके हैं और उसका नतीजा सबने देखा है. एकबार फिर से चुनाव के पहले मीटिंग शुरू हो गयी है, लेकिन पूरे भारत में तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया के. चंद्रशेखर राव के नाम पर वोट मिलना इतना आसान नहीं है.
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