चेन्नई: जो लोग पुरुष और महिला के सामान्य वर्गीकरण के अंतर्गत नहीं आते हैं वे अभी भी समाज और घर में हाशिए पर हैं. यदि आपको कोई संदेह है, तो बस गिनें कि जिस कार्यालय में आप काम करते हैं, वहां कितने ट्रांसजेंडर लोग हैं. वकील कनमनी एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो एक पुरुष के रूप में पैदा हुए थे और शरीर और दिमाग से खुद को एक महिला महसूस करते थे. मद्रास उच्च न्यायालय में पुरुष वकील के रूप में पंजीकृत इस व्यक्ति ने पिछले सप्ताह खुद को ट्रांसजेंडर घोषित किया था.
हमने सवालों के साथ वकील कनमनी से संपर्क किया. उनसे पूछा कि इतने दिनों तक पहचान छुपाने की क्या जरूरत थी? वर्तमान अधिसूचना की आवश्यकता क्या है? कनमनी कहती हैं, 'एक वकील के रूप में अदालतों में पेश होने के बावजूद, खुद को ट्रांसजेंडर घोषित करने में कुछ अनिच्छा थी.'
लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि समलैंगिक सहवास अपराध नहीं है. इसके बाद मद्रास हाई कोर्ट ने भी तमिलनाडु सरकार को एलजीबीटीक्यू समुदाय को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया है. अदालतों की इस कार्रवाई से समाज में ट्रांसजेंडरों के प्रति गलतफहमियां और नजरिया बदलने लगा है.
उन्होंने कहा, 'जब परिवार और समाज उन्हें बहिष्कृत कर देता है, तो उस अस्वीकृति का सामना कैसे किया जाए, इस डर से अभी तक खुद को ट्रांसजेंडर घोषित नहीं किया. लेकिन मैंने इसका खुलासा कर दिया क्योंकि अब मुझे अपनी पहचान छिपाने की कोई जरूरत नहीं है.'
थर्ड जेंडर को अलग से आरक्षण दिया जाना चाहिए क्योंकि पिछले साल (एमबीसी) 2015 में केवल सामान्य आरक्षण दिया गया था. घर और समाज उनको अलग करना जारी रखते हैं. यह स्थिति बड़े शहरों में बनी हुई है और ग्रामीण क्षेत्रों में थोड़ी अधिक प्रचलित है. इसलिए, जब तक समलैंगिक विवाह कानून नहीं बन जाता, तब तक बिना शादी के साथ रहने वालों के लिए पारिवारिक अनुबंध कानून लाया जाना चाहिए.'
डीएमके सांसद त्रिची शिवा ने संसद में कहा कि ट्रांसजेंडरों के लिए 2 फीसदी आरक्षण लाया जाना चाहिए. लेकिन इसे कानून नहीं बनाया गया. भारतीय संसद में कभी भी थर्ड जेंडर का एक भी सदस्य निर्वाचित नहीं हुआ है. चुनाव के दौरान वोट के लिए घोषणाएं करने के बजाय रचनात्मक कदम उठाने चाहिए.'
ईटीवी भारत से बात करते हुए थर्ड जेंडर कल्याण संगठन की ट्रांसजेंडर बानो ने कहा, 'समाज में सबके विकास के लिए कार्यक्रम लाने वाली सरकार अकेले थर्ड जेंडर के लिए कुछ नहीं करती. तमिलनाडु में महिलाओं को 1000 रुपये प्रति माह का हक है लेकिन यह थर्ड जेंडर को नहीं मिलता है.'