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चेन्नई में क्यों लगी 'मंडल मसीहा' वीपी सिंह की प्रतिमा, क्या उत्तर भारत में कदम रखेगी डीएमके ?

मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर पिछड़ों के मसीहा बने पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह एक बार फिर चर्चा में हैं. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन 27 नवंबर को चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज मे उनकी प्रतिमा का अनावरण करने जा रहे हैं. हमने ये जानने की कोशिश की कि 2024 के चुनाव के पहले ऐसा क्या हुआ कि डीएमके को 'पिछड़ों के मसीहा' वीपी सिंह की जरूरत आ पड़ी. नेशनल ब्यूरो चीफ राकेश त्रिपाठी की रिपोर्ट. VP Singh statue to be unveiled in Chennai

VP singh
वीपी सिंह
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 24, 2023, 5:26 PM IST

नई दिल्ली : काली शेरवानी, सफेद पायजामे और सिर पर चिर-परिचित टोपी में सजी ये पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की तस्वीर है, जो दरअसल एक आमंत्रण कार्ड पर छपी है. मौका है 27 नवंबर को चेन्नई में प्रेसीडेंसी कॉलेज में वीपी सिंह की आदमकद मूर्ति के अनावरण का. इस आमंत्रण पत्र के दूसरे पन्ने पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की फोटो है और लिखा गया है कि अखिलेश इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आएंगे. दो-तीन और काली-सफेद तस्वीरें हैं, जिनमें एमके करुणानिधि और वीपी सिंह एक साथ मुस्कुराते हुए दिखाए गए हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के बेटे अजेय सिंह ने कहा-

देखिए हमें पिताजी की मूर्ति के अनावरण का आमंत्रण मिला तो जाहिर है परिवार के सदस्य होने के नाते मैंने इसे स्वीकार किया ताकि मैं अपनी माताजी और पूरे परिवार के साथ वहां जाऊं और उस समारोह में उनसे जुड़े लम्हें याद करूं. बाकी राजनीति से मेरा कोई वास्ता नहीं है. किसे बुलाया, किसे नहीं बुलाया, इससे मुझे कोई मतलब नहीं.

अजेय सिंह के लिए बेशक ये मौका अपने गौरवशाली पिता के यश से अभिभूत होने का हो, लेकिन दक्षिण भारत की राजनीति के लिए यह एक नई पहल है. आखिर उत्तर भारत की राजनीति के एक प्रतीक वीपी सिंह की मूर्ति डीएमके चेन्नई में क्यों लगवा रही है ?

इसका जवाब सीएडसीडएस के निदेशक संजय कुमार ने दिया-

डीएमके तमिलनाडु में अपने वोट और पुख्ता करना चाहती है और वीपी सिंह के बहाने राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में भी उतरने की कोशिश कर रही है. अगर चर्चा इस बात की हो रही है कि क्या हम मंडल-2 के फेज में जा रहे हैं, तो हमें याद करना होगा कि मंडल–1 का रेफरेंस प्वाइंट कौन है. किसके नाम से मंडल-1 जाना जाता है. अब चूंकि 2024 के चुनाव में सामाजिक न्याय एक बड़ा मुद्दा बन सकता है और सारी पार्टियां होड़ में लगी हैं कि वे सामाजिक न्याय की चैंपियन दिखाई दें, बिहार में कास्ट सर्वे अभी अभी आया है और उत्तर भारत की पार्टियां उसे अपनाने के लिए तैयार खड़ी हैं, तो मंडल–1 का संबंध जिनसे है, उन्हें याद करना जरूरी है. जिस तरह से महात्मा गांधी को भारत की आजादी के संघर्ष के लिए याद किया जाता है, ठीक उसी तरह सामाजिक न्याय के लिए मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कराने के लिए वीपी सिंह को जाना जाता है और डीएमके की पहल है कि अगर सामाजिक न्याय की ओर 2024 का चुनाव मुड़ता है तो वो उसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सके.

लेकिन यह भी एक सच है कि धुर दक्षिण की राजनीति में राष्ट्रीय राजनीति के एक पुरोधा को पहली बार प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे पहले हमेशा तमिलनाडु में वहीं के आइकन होते थे, वहीं के नेताओं को प्रतीक बनाया जाता है. सवाल ये कि तमिलनाडु की राजनीति तो वैसे ही सोशल जस्टिस पर आधारित रही है, तो ऐसे में उत्तर भारत के एक दिवंगत नेता की मूर्ति के अनावरण की जरूरत क्या थी.

जवाब में संजय कुमार कहते हैं, 'कहीं न कहीं ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि भले ही हम दक्षिण के राज्य हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि हमारी दखल उत्तर भारत या देश की राजनीति में भी उतनी रहे. साफ संदेश है कि हम राष्ट्रीय राजनीति में भी उतनी मजबूत भूमिका निभाना चाहते हैं.'

अब चूंकि वीपी सिंह ने राजीव गांधी की कांग्रेस से अलग होकर अपनी राजनीतिक राह अलग बनाई थी, इसलिए थोड़ी परेशानी कांग्रेस को इस समारोह से हो सकती है. लेकिन जानकार मानते हैं कि मौजूदा दौर में अगर विपक्ष को 2024 में बीजेपी को हराना है तो अपने पुराने मतभेदों को भुलाकर उनको एक साथ आना पड़ेगा. वैसे भी डीएमके और कांग्रेस एक अलायंस के हिस्से हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के बेटे अजेय सिंह भी कुछ ऐसा ही मानते हैं. उनके हिसाब से ये मंडल के पुनर्जन्म की शुरुआत की तरह है. उन्होंने कहा-

जब 1990 में मंडल का ऐलान हुआ तो कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी का ये बयान था कि मंडल को लागू करने का मतलब 'ओपनिंग अ कैन ऑफ वर्म' के जैसा है. अब मैं देख रहा हूं उनके पुत्र उसी मंडल का ढोल बजा रहे हैं और कह रहे हैं कि बीजेपी पिछड़ा विरोधी है. कांग्रेस और भाजपा दोनों ने इसी मुद्दे पर पिताजी की सरकार गिरा दी थी. अब दोनों ने इसे अपना लिया है. यानी अब ये राजनैतिक सच्चाई हो गई है, इसे अब स्वीकार करना पड़ेगा. पहले तो मंडल के विरोध में वीपी सिंह की सरकार गिरा दी. अब क्या मजबूरी है जो इसे अपना रहे हैं. इससे साबित होता है कि पिताजी की राजनीतिक सोच उस समय के दूसरे नेताओं से 30 साल आगे की थी.

लेकिन उस कार्यक्रम में अखिलेश क्यों दिखाई दे रहे हैं, जबकि खुद को सोशल जस्टिस का पुरोधा मानने वाली आरजेडी और जेडीयू जैसी पार्टियों के लोगों का अता-पता ही नहीं है, इस सवाल के जवाब में संजय कुमार कहते हैं-

शायद अखिलेश को किसी रणनीति के तहत बुलाया है, क्योंकि वीपी सिंह यूपी से थे तो हो सकता है यूपी की राजनीति को प्राथमिकता दी जाए, शायद स्टालिन सोच रहे हों कि वीपी सिंह की मंडल पताका को अखिलेश के जरिए यूपी में बेहतर तरीके से फहराया जा सकता है. यानी राष्ट्रीय राजनीति की धमक उत्तर प्रदश के रास्ते की जाय.

जो भी हो चेन्नई में लगने वाली वीपी सिंह की इस आदमकद मूर्ति से दो फायदे डीएमके को होने वाले हैं. लॉन्ग-टर्म फायदा ये कि डीएमके राष्ट्रीय राजनीति में आने का संदेश दे रही है और शॉर्ट टर्म फायदा ये कि तमिलनाडु में डीएमके का जो भी सपोर्ट बेस हो, उसे कन्सॉलिडेट किया जाए, बिखरने न दिया जाए.

गौर करने वाली बात ये कि लोकसभा में 17 सांसदों वाली टीआरएस के नेता केसीआर राष्ट्रीय राजनीति में पहले ही कूद चुके हैं. लोकसभा में टीआरएस से ज्यादा ताकत 39 सांसदों वाली डीएमके की है. ज़ाहिर है तमिलनाडु से दिल्ली तक राष्ट्रीय राजनीति में छा जाने का ख्वाब देखने का हक उन्हें भी है.

ये भी पढ़ें : देश छोड़कर विदेश जा रहे भारतीय, रोकने की जिम्मेदारी किसकी ?

नई दिल्ली : काली शेरवानी, सफेद पायजामे और सिर पर चिर-परिचित टोपी में सजी ये पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की तस्वीर है, जो दरअसल एक आमंत्रण कार्ड पर छपी है. मौका है 27 नवंबर को चेन्नई में प्रेसीडेंसी कॉलेज में वीपी सिंह की आदमकद मूर्ति के अनावरण का. इस आमंत्रण पत्र के दूसरे पन्ने पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की फोटो है और लिखा गया है कि अखिलेश इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आएंगे. दो-तीन और काली-सफेद तस्वीरें हैं, जिनमें एमके करुणानिधि और वीपी सिंह एक साथ मुस्कुराते हुए दिखाए गए हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के बेटे अजेय सिंह ने कहा-

देखिए हमें पिताजी की मूर्ति के अनावरण का आमंत्रण मिला तो जाहिर है परिवार के सदस्य होने के नाते मैंने इसे स्वीकार किया ताकि मैं अपनी माताजी और पूरे परिवार के साथ वहां जाऊं और उस समारोह में उनसे जुड़े लम्हें याद करूं. बाकी राजनीति से मेरा कोई वास्ता नहीं है. किसे बुलाया, किसे नहीं बुलाया, इससे मुझे कोई मतलब नहीं.

अजेय सिंह के लिए बेशक ये मौका अपने गौरवशाली पिता के यश से अभिभूत होने का हो, लेकिन दक्षिण भारत की राजनीति के लिए यह एक नई पहल है. आखिर उत्तर भारत की राजनीति के एक प्रतीक वीपी सिंह की मूर्ति डीएमके चेन्नई में क्यों लगवा रही है ?

इसका जवाब सीएडसीडएस के निदेशक संजय कुमार ने दिया-

डीएमके तमिलनाडु में अपने वोट और पुख्ता करना चाहती है और वीपी सिंह के बहाने राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में भी उतरने की कोशिश कर रही है. अगर चर्चा इस बात की हो रही है कि क्या हम मंडल-2 के फेज में जा रहे हैं, तो हमें याद करना होगा कि मंडल–1 का रेफरेंस प्वाइंट कौन है. किसके नाम से मंडल-1 जाना जाता है. अब चूंकि 2024 के चुनाव में सामाजिक न्याय एक बड़ा मुद्दा बन सकता है और सारी पार्टियां होड़ में लगी हैं कि वे सामाजिक न्याय की चैंपियन दिखाई दें, बिहार में कास्ट सर्वे अभी अभी आया है और उत्तर भारत की पार्टियां उसे अपनाने के लिए तैयार खड़ी हैं, तो मंडल–1 का संबंध जिनसे है, उन्हें याद करना जरूरी है. जिस तरह से महात्मा गांधी को भारत की आजादी के संघर्ष के लिए याद किया जाता है, ठीक उसी तरह सामाजिक न्याय के लिए मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कराने के लिए वीपी सिंह को जाना जाता है और डीएमके की पहल है कि अगर सामाजिक न्याय की ओर 2024 का चुनाव मुड़ता है तो वो उसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सके.

लेकिन यह भी एक सच है कि धुर दक्षिण की राजनीति में राष्ट्रीय राजनीति के एक पुरोधा को पहली बार प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे पहले हमेशा तमिलनाडु में वहीं के आइकन होते थे, वहीं के नेताओं को प्रतीक बनाया जाता है. सवाल ये कि तमिलनाडु की राजनीति तो वैसे ही सोशल जस्टिस पर आधारित रही है, तो ऐसे में उत्तर भारत के एक दिवंगत नेता की मूर्ति के अनावरण की जरूरत क्या थी.

जवाब में संजय कुमार कहते हैं, 'कहीं न कहीं ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि भले ही हम दक्षिण के राज्य हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि हमारी दखल उत्तर भारत या देश की राजनीति में भी उतनी रहे. साफ संदेश है कि हम राष्ट्रीय राजनीति में भी उतनी मजबूत भूमिका निभाना चाहते हैं.'

अब चूंकि वीपी सिंह ने राजीव गांधी की कांग्रेस से अलग होकर अपनी राजनीतिक राह अलग बनाई थी, इसलिए थोड़ी परेशानी कांग्रेस को इस समारोह से हो सकती है. लेकिन जानकार मानते हैं कि मौजूदा दौर में अगर विपक्ष को 2024 में बीजेपी को हराना है तो अपने पुराने मतभेदों को भुलाकर उनको एक साथ आना पड़ेगा. वैसे भी डीएमके और कांग्रेस एक अलायंस के हिस्से हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के बेटे अजेय सिंह भी कुछ ऐसा ही मानते हैं. उनके हिसाब से ये मंडल के पुनर्जन्म की शुरुआत की तरह है. उन्होंने कहा-

जब 1990 में मंडल का ऐलान हुआ तो कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी का ये बयान था कि मंडल को लागू करने का मतलब 'ओपनिंग अ कैन ऑफ वर्म' के जैसा है. अब मैं देख रहा हूं उनके पुत्र उसी मंडल का ढोल बजा रहे हैं और कह रहे हैं कि बीजेपी पिछड़ा विरोधी है. कांग्रेस और भाजपा दोनों ने इसी मुद्दे पर पिताजी की सरकार गिरा दी थी. अब दोनों ने इसे अपना लिया है. यानी अब ये राजनैतिक सच्चाई हो गई है, इसे अब स्वीकार करना पड़ेगा. पहले तो मंडल के विरोध में वीपी सिंह की सरकार गिरा दी. अब क्या मजबूरी है जो इसे अपना रहे हैं. इससे साबित होता है कि पिताजी की राजनीतिक सोच उस समय के दूसरे नेताओं से 30 साल आगे की थी.

लेकिन उस कार्यक्रम में अखिलेश क्यों दिखाई दे रहे हैं, जबकि खुद को सोशल जस्टिस का पुरोधा मानने वाली आरजेडी और जेडीयू जैसी पार्टियों के लोगों का अता-पता ही नहीं है, इस सवाल के जवाब में संजय कुमार कहते हैं-

शायद अखिलेश को किसी रणनीति के तहत बुलाया है, क्योंकि वीपी सिंह यूपी से थे तो हो सकता है यूपी की राजनीति को प्राथमिकता दी जाए, शायद स्टालिन सोच रहे हों कि वीपी सिंह की मंडल पताका को अखिलेश के जरिए यूपी में बेहतर तरीके से फहराया जा सकता है. यानी राष्ट्रीय राजनीति की धमक उत्तर प्रदश के रास्ते की जाय.

जो भी हो चेन्नई में लगने वाली वीपी सिंह की इस आदमकद मूर्ति से दो फायदे डीएमके को होने वाले हैं. लॉन्ग-टर्म फायदा ये कि डीएमके राष्ट्रीय राजनीति में आने का संदेश दे रही है और शॉर्ट टर्म फायदा ये कि तमिलनाडु में डीएमके का जो भी सपोर्ट बेस हो, उसे कन्सॉलिडेट किया जाए, बिखरने न दिया जाए.

गौर करने वाली बात ये कि लोकसभा में 17 सांसदों वाली टीआरएस के नेता केसीआर राष्ट्रीय राजनीति में पहले ही कूद चुके हैं. लोकसभा में टीआरएस से ज्यादा ताकत 39 सांसदों वाली डीएमके की है. ज़ाहिर है तमिलनाडु से दिल्ली तक राष्ट्रीय राजनीति में छा जाने का ख्वाब देखने का हक उन्हें भी है.

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