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तालिबान से बात करना मान्यता देना नहीं, भारत प्रतीक्षा करो और देखो की नीति का पालन कर रहा

दोहा में भारत के साथ तालिबान की बातचीत को यह नहीं समझा जाना चाहिए कि भारत ने तालिबान को मान्यता दे दी है. वर्तमान हालात में भारत प्रतीक्षा करो और देखो की नीति का पालन कर रहा है और उसी आधार पर आगे फैसला लेगा.

तालिबान
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Published : Sep 2, 2021, 3:29 AM IST

नई दिल्ली : भारत ने मंगलवार को तालिबान के साथ पहले औपचारिक और सार्वजनिक रूप से स्वीकृत संपर्क में कतर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने मंगलवार को तालिबान के वरिष्ठ नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की थी. इस दौरान उन्होंने भारत की उन चिंताओं को उठाया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी तरह से भारत विरोधी गतिविधियों और आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए. भारत फिलहाल तालिबान को मान्यता नहीं दी है और वह प्रतीक्षा करो और देखो की नीति का पालन कर रहा है.

जानकार सूत्रों ने बताया कि तालिबान के साथ संपर्क स्थापित करने का मतलब संगठन को मान्यता देना नहीं है. एक तरफ तालिबान के साथ भारत के संपर्क पर जहां विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी, वहीं तालिबान से बात करने को लेकर सवाल उठाए गए थे. क्योंकि भारत ने तालिबान को कभी मान्यता नहीं दी थी. इस वजह से दोहा में औपचारिक वार्ता को भारतीय नीति के रूप में देखा जा रहा है.

वहीं वाजपेयी सरकार में पूर्व केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री रहे उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि वह तालिबान को आतंकवादी संगठन मानती है या नहीं. उन्होंने कहा कि अगर वे एक आतंकवादी संगठन हैं, तो आप उनसे बात क्यों कर रहे हैं? अगर वे आतंकवादी संगठन नहीं हैं, तो आप उनके बैंक खातों पर प्रतिबंध क्यों लगा रहे हैं. आप उनकी सरकार को मान्यता क्यों नहीं दे रहे हैं? पहले अपना रुख तय कर लें. अब्दुल्ला ने कहा कि क्या तालिबान एक आतंकवादी संगठन है और यदि ऐसा नहीं है तो क्या आप इसे आतंकवादी संगठन के रूप में सूची से हटाने के लिए संयुक्त राष्ट्र जाएंगे.

ये भी पढ़ें- उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार से पूछा, तालिबान को आतंकी संगठन मानते हैं या नहीं

इस बीच, भारत प्रतीक्षा करो और देखो की नीति का पालन कर रहा है साथ ही वह अफगानिस्तान में गठित होने वाली सरकार को देख रहा है. दूसरी तरफ तालिबान का कहना है कि वह जल्द ही एक समावेशी सरकार बनाएगा. सूत्रों का कहना है कि तालिबान को मान्यता देने के बारे में कोई भी फैसला सरकार बनने के बाद ही लिया जा सकता है. यह पता चला है कि भारत देख रहा है कि तालिबान अपनी प्रतिबद्धता को कैसे पूरा करता है और वह खुद को किस तरह से संचालित करता है.

हालांकि मंगलवार को हुई बैठक में तालिबान ने कहा था कि वह भारतीय पक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों का समाधान करेगा. इससे पहले भी तालिबान ने कहा था कि भारत एक महत्वपूर्ण देश है और वे भारत के साथ अच्छे आर्थिक संबंध चाहता है. दिलचस्प बात यह है कि तालिबान ने ही दोहा में कल की बैठक के लिए भारतीय मिशन से अनुरोध किया था.

तालिबान ने भी देशों से अपने दूतावास फिर से खोलने का आग्रह किया था, हालांकि, अफगानिस्तान में भारतीय मिशन और वाणिज्य दूतावास बंद हैं. तालिबान के साथ हक्कानी की मौजूदगी भारत को परेशान कर रही है क्योंकि वे पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ उसके गहरे संबंध हैं.

(एएनआई)

नई दिल्ली : भारत ने मंगलवार को तालिबान के साथ पहले औपचारिक और सार्वजनिक रूप से स्वीकृत संपर्क में कतर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने मंगलवार को तालिबान के वरिष्ठ नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की थी. इस दौरान उन्होंने भारत की उन चिंताओं को उठाया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी तरह से भारत विरोधी गतिविधियों और आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए. भारत फिलहाल तालिबान को मान्यता नहीं दी है और वह प्रतीक्षा करो और देखो की नीति का पालन कर रहा है.

जानकार सूत्रों ने बताया कि तालिबान के साथ संपर्क स्थापित करने का मतलब संगठन को मान्यता देना नहीं है. एक तरफ तालिबान के साथ भारत के संपर्क पर जहां विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी, वहीं तालिबान से बात करने को लेकर सवाल उठाए गए थे. क्योंकि भारत ने तालिबान को कभी मान्यता नहीं दी थी. इस वजह से दोहा में औपचारिक वार्ता को भारतीय नीति के रूप में देखा जा रहा है.

वहीं वाजपेयी सरकार में पूर्व केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री रहे उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि वह तालिबान को आतंकवादी संगठन मानती है या नहीं. उन्होंने कहा कि अगर वे एक आतंकवादी संगठन हैं, तो आप उनसे बात क्यों कर रहे हैं? अगर वे आतंकवादी संगठन नहीं हैं, तो आप उनके बैंक खातों पर प्रतिबंध क्यों लगा रहे हैं. आप उनकी सरकार को मान्यता क्यों नहीं दे रहे हैं? पहले अपना रुख तय कर लें. अब्दुल्ला ने कहा कि क्या तालिबान एक आतंकवादी संगठन है और यदि ऐसा नहीं है तो क्या आप इसे आतंकवादी संगठन के रूप में सूची से हटाने के लिए संयुक्त राष्ट्र जाएंगे.

ये भी पढ़ें- उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार से पूछा, तालिबान को आतंकी संगठन मानते हैं या नहीं

इस बीच, भारत प्रतीक्षा करो और देखो की नीति का पालन कर रहा है साथ ही वह अफगानिस्तान में गठित होने वाली सरकार को देख रहा है. दूसरी तरफ तालिबान का कहना है कि वह जल्द ही एक समावेशी सरकार बनाएगा. सूत्रों का कहना है कि तालिबान को मान्यता देने के बारे में कोई भी फैसला सरकार बनने के बाद ही लिया जा सकता है. यह पता चला है कि भारत देख रहा है कि तालिबान अपनी प्रतिबद्धता को कैसे पूरा करता है और वह खुद को किस तरह से संचालित करता है.

हालांकि मंगलवार को हुई बैठक में तालिबान ने कहा था कि वह भारतीय पक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों का समाधान करेगा. इससे पहले भी तालिबान ने कहा था कि भारत एक महत्वपूर्ण देश है और वे भारत के साथ अच्छे आर्थिक संबंध चाहता है. दिलचस्प बात यह है कि तालिबान ने ही दोहा में कल की बैठक के लिए भारतीय मिशन से अनुरोध किया था.

तालिबान ने भी देशों से अपने दूतावास फिर से खोलने का आग्रह किया था, हालांकि, अफगानिस्तान में भारतीय मिशन और वाणिज्य दूतावास बंद हैं. तालिबान के साथ हक्कानी की मौजूदगी भारत को परेशान कर रही है क्योंकि वे पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ उसके गहरे संबंध हैं.

(एएनआई)

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