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उत्तराखंडः शंकराचार्य बनकर पहली बार मठ पहुंचे अविमुक्तेश्वरानंद, 235 साल बाद फिर शुरू करेंगे ये परंपरा - शंकराचार्य पद

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद शंकराचार्य बनने के बाद पहली बार हरिद्वार स्थित शंकराचार्य मठ पहुंचे. उनका कई अखाड़ों और साधु-संतों ने स्वागत किया. अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि इतने बड़े पद पर आसीन होने के बाद दायित्व बोध भी बढ़ जाता है. शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि वो बदरीनाथ धाम से जुड़ी 235 साल से बंद परंपरा को फिर शुरू करेंगे.

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Published : Nov 16, 2022, 12:30 PM IST

हरिद्वारः शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati) के निधन के बाद शंकराचार्य पद पर आसीन हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद मंगलवार दोपहर पहली बार कनखल स्थित शंकराचार्य मठ (Shankaracharya Math) पहुंचे. जहां उनका कई अखाड़ों और साधु-संतों ने स्वागत किया. अविमुक्तेश्वरानंद (Avimukteshwarananda) का कहना है कि इतने बड़े पद पर आसीन होने के बाद दायित्व बोध भी बढ़ जाता है. शंकराचार्य ने ये भी कहा कि वो बदरीनाथ धाम से जुड़ी 235 साल से बंद पड़ी परंपरा को फिर शुरू करेंगे.

शारदा पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद शंकराचार्य पद की कमान स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य रहे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को सौंपी गई. हालांकि, बहुत से संतों ने इसका विरोध भी किया. लेकिन विरोध के बावजूद अविमुक्तेश्वरानंद शंकराचार्य की गद्दी पर आसीन हो गए. पद संभालने के बाद पहली बार वे कनखल स्थित शंकराचार्य मठ पहुंचे. जहां उनका भव्य स्वागत किया गया. कई अखाड़ों से जुड़े संतों ने अविमुक्तेश्वरानंद का माल्यार्पण कर स्वागत किया. उनमें अपनी पूर्ण आस्था व्यक्त की.

शंकराचार्य बनकर पहली बार मठ पहुंचे अविमुक्तेश्वरानंद

ये भी पढ़ेंः नैनीताल नैना देवी मंदिर में भक्त अब दे सकेंगे ऑनलाइन दान, मंदिर प्रबंधन ने की व्यवस्था

क्या कहते हैं शंकराचार्य: शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि शंकराचार्य पद पर आसीन होने से दायित्व बोध बढ़ जाता है. स्वाभाविक है कि जब हम चीजों को देखते हैं तो शंकराचार्य के दायित्व बोध से ही देखते हैं. विरोध के प्रश्न पर बोलते हुए शंकराचार्य ने कहा कि क्या विरोध है हमसे तो अभी तक किसी ने कोई विरोध जताया नहीं. कुछ लोग इस तरह की बातें जरूर कर रहे हैं कि मठानमाय अनुशासन का पालन होना चाहिए, परंपराओं का पालन होना चाहिए तो इसमें क्या गलत बात है.

235 साल से बंद पड़ी बदरीनाथ की परंपरा फिर शुरू करेंगे: 235 सालों में कोई भी ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य भगवान बदरीनाथ जी के पट खुलने या बंद होने पर पालकी के साथ ज्योतिर्मठ नहीं आया तो हम सोचते हैं कि अब हमें यह काम करना चाहिए. उन परंपराओं को जीवित रखना चाहिए. इसीलिए बदरीनाथ के कपाट बंद होते समय जो परंपराओं का निर्माण मठ को करना चाहिए, वह हम करने जा रहे हैं. 235 साल पहले जो परंपरा बदरीनाथ जी में मठ द्वारा अपनाई जाती थी, उन्हीं का पालन करने अब हम बदरीनाथ जा रहे हैं.

हरिद्वारः शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati) के निधन के बाद शंकराचार्य पद पर आसीन हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद मंगलवार दोपहर पहली बार कनखल स्थित शंकराचार्य मठ (Shankaracharya Math) पहुंचे. जहां उनका कई अखाड़ों और साधु-संतों ने स्वागत किया. अविमुक्तेश्वरानंद (Avimukteshwarananda) का कहना है कि इतने बड़े पद पर आसीन होने के बाद दायित्व बोध भी बढ़ जाता है. शंकराचार्य ने ये भी कहा कि वो बदरीनाथ धाम से जुड़ी 235 साल से बंद पड़ी परंपरा को फिर शुरू करेंगे.

शारदा पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद शंकराचार्य पद की कमान स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य रहे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को सौंपी गई. हालांकि, बहुत से संतों ने इसका विरोध भी किया. लेकिन विरोध के बावजूद अविमुक्तेश्वरानंद शंकराचार्य की गद्दी पर आसीन हो गए. पद संभालने के बाद पहली बार वे कनखल स्थित शंकराचार्य मठ पहुंचे. जहां उनका भव्य स्वागत किया गया. कई अखाड़ों से जुड़े संतों ने अविमुक्तेश्वरानंद का माल्यार्पण कर स्वागत किया. उनमें अपनी पूर्ण आस्था व्यक्त की.

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क्या कहते हैं शंकराचार्य: शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि शंकराचार्य पद पर आसीन होने से दायित्व बोध बढ़ जाता है. स्वाभाविक है कि जब हम चीजों को देखते हैं तो शंकराचार्य के दायित्व बोध से ही देखते हैं. विरोध के प्रश्न पर बोलते हुए शंकराचार्य ने कहा कि क्या विरोध है हमसे तो अभी तक किसी ने कोई विरोध जताया नहीं. कुछ लोग इस तरह की बातें जरूर कर रहे हैं कि मठानमाय अनुशासन का पालन होना चाहिए, परंपराओं का पालन होना चाहिए तो इसमें क्या गलत बात है.

235 साल से बंद पड़ी बदरीनाथ की परंपरा फिर शुरू करेंगे: 235 सालों में कोई भी ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य भगवान बदरीनाथ जी के पट खुलने या बंद होने पर पालकी के साथ ज्योतिर्मठ नहीं आया तो हम सोचते हैं कि अब हमें यह काम करना चाहिए. उन परंपराओं को जीवित रखना चाहिए. इसीलिए बदरीनाथ के कपाट बंद होते समय जो परंपराओं का निर्माण मठ को करना चाहिए, वह हम करने जा रहे हैं. 235 साल पहले जो परंपरा बदरीनाथ जी में मठ द्वारा अपनाई जाती थी, उन्हीं का पालन करने अब हम बदरीनाथ जा रहे हैं.

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