हैदराबाद : महाराष्ट्र की राजनीति में बयानों का दौर जारी है. मिलने-मिलाने का भी सिलसिला थमा नहीं है. कभी उद्धव ठाकरे पीएम मोदी से मिलते हैं तो नया शिगूफा छोड़ा जाता है, तो कभी देवेन्द्र फडणवीस शरद पवार से मिलते हैं और कुछ नए समीकरण की बात छिड़ जाती है. इस बीच शिवसेना नेता संजय राउत ने पीएम मोदी की तारीफ करने के बाद आज भाजपा पर फिर से करारा प्रहार किया है.
संजय राउत ने कहा कि 2014-19 के दौरान जब हमारा भाजपा से गठबंधन था, तो हमारी पार्टी को खत्म करने की पूरी कोशिश की गई थी. उन्होंने कहा कि हमारे साथ 'गुलामों' जैसा व्यवहार किया जा रहा था.
राउत ने शनिवार को उत्तरी महाराष्ट्र के जलगांव में शिवसेना कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए यह बता कही. उन्होंने कहा, 'पूर्ववर्ती सरकार में शिवसेना का दोयम दर्जा था और उसे गुलाम समझा जाता था. हमारे समर्थन के कारण मिली ताकत का दुरुपयोग करके हमारी पार्टी को समाप्त करने की कोशिश की गई.'
आपको बता दें कि मुख्यमंत्री पद के मुद्दे के कारण शिवसेना-भाजपा गठबंधन 2019 में टूट गया था. शिवसेना भाजपा के सबसे पुराने सहयोगियों में से एक थी. उसने बाद में महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस के साथ एक अप्रत्याशित गठबंधन कर सरकार बनाई गई.
राउत ने कहा कि उन्हें हमेशा लगता था कि महाराष्ट्र में शिवसेना का मुख्यमंत्री होना चाहिए.
अब सवाल ये उठता है कि शिवसेना के इस बयान को किस कदर लिया जा सकता है. क्योंकि जब एनसीपी से यह पूछा गया कि गठबंधन की सरकार ठीकठाक चल रही है या नहीं, क्या सीएम को लेकर ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला तैयार हुआ था, तब पार्टी ने इसे सिरे से नकार दिया. लेकिन साथ ही तंज भी कस दिया.
एक मीडिया चैनल से बात करते हुए एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा कि शिवसेना ही पांच साल तक सीएम की कुर्सी रखेगी, पांच क्या 25 साल तक शिवसेना के नेता सीएम बने रहेंगे.
वैसे, एनसीपी के स्थापना दिवस पर शरद पवार ने कहा कि शिवसेना पर भरोसा किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि बालासाहब ठाकरे ने इंदिरा गांधी के प्रति अपने वचन का सम्मान किया था. सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी और अगले लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन करेगी.
पर, मीडिया रिपोर्ट की मानें तो भाजपा के भी कुछ नेता शरद पवार से मिले हैं. इसके क्या राजनीतिक मायने निकाले जा सकते हैं, अभी कुछ भी कहना मुश्किल है.
दरअसल, जब से महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन हुआ है, तभी से इन पार्टियों के बीच विरोधाभासी बयान आते रहे हैं. खासकर कांग्रेस पार्टी की ओर से.
कांग्रेस पार्टी के लिए इस गठबंधन को स्वीकार करना आसान नहीं था. पार्टी हमेशा से ही शिवसेना का विरोध करती रही है. लेकिन भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस गठबंधन में शामिल हो गई. कम से कम पार्टी का आधिकारिक पक्ष तो यही है.
लेकिन दो दिन पहले महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने एक बयान देकर सनसनी फैला दी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस आने वाले दिनों में अकेले ही चुनाव लड़ेगी.
सवाल ये है कि जब तीनों दल साथ मिलकर सरकार (नबंवर 2019 से) चला रहे हैं और जैसा कि बताया जा रहा है कि गठबंधन में सब ठीक-ठाक है, तो कांग्रेस ने यह बयान क्यों दिया.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बयान को हल्के में नहीं लिया जा सकता है. उनके अनुसार पार्टी ने बहुत सोच समझकर यह बयान दिया है. क्योंकि उन्हें भी यह पता है कि अघाड़ी सरकार किसी भी वक्त 'दुर्घटना' का शिकार हो सकती है.
शिवसेना नेता संजय राउत ने जितिन प्रसाद के भाजपा में ज्वाइन करने पर कांग्रेस पर राजनीतिक चुटकी ली थी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी के बचे-खुचे दिग्गज भी अब नाव से धड़ाधड़ कूद रहे हैं. ऐसा सिर्फ यूपी में ही हो रहा है, ऐसा नहीं है. राजस्थान में भी पायलट पार्टी को चेतावनी दे रहे हैं. कांग्रेस इन बयानों से असहज है.
कांग्रेस को सीएम उद्धव ठाकरे का पीएम से अकेले मिलना भी अच्छा नहीं लगा. यह सवाल जब उद्धव से पूछा गया था, तो उन्होंने कहा कि वह नवाज शरीफ से मिलने नहीं गए थे, पीएम से मिलने गए थे. इसमें क्या गलत हो सकता है. इसके बाद संजय राउत ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए उन्हें देश का सबसे लोकप्रिय नेता भी बताया था.
एक दिन पहले ही एनडीए के सहयोगी रामदास अठावले ने बयान दिया कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है. उनके अनुसार शिवसेना और भाजपा फिर से एक साथ आ सकती है. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि सीएम पद को लेकर कार्यकाल का बंटवारा किया जा सकता है.