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No Improvement In Public Toilets : देश भर में सार्वजनिक शौचालयों में कोई नहीं हुआ कोई सुधार : सर्वेक्षण

देश में सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति कैसी है. खास तौर से जब 9 साल से देश में स्वच्छ भारत मिशन चल रहा है. सामुदायिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स ने करीब 39 हजार के लोगों के बीच इसका सर्वेक्षण किया. पढ़ें पूरी खबर...

No Improvement In Public Toilets
प्रतिकात्मक तस्वीर. (PIB)
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By PTI

Published : Oct 2, 2023, 2:27 PM IST

नई दिल्ली : आज स्वच्छ भारत मिशन के नौ साल पूरे हो गये. एक नए सर्वेक्षण में पाया गया है कि अधिकांश भारतीयों को लगता है कि सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. अधिकतर लोगों ने कहा कि वे सार्वजनिक शौचालयों का उपयोग करने की जगह किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान के शौचालयों में जाना अधिक पसंद करेंगे.

सामुदायिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स के सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि मुंबई, दिल्ली या बेंगलुरु जैसे शहरों में भी, सार्वजनिक शौचालयों में जाना आम तौर पर एक अनुभव है. हां, लोगों ने सुलभ इंटरनेशनल जैसे प्रतिष्ठित संगठनों की ओर से प्रबंधित शौचालयों को अच्छा बताया.

यह सर्वेक्षण भारत के 341 जिलों में किया गया था. इसका उद्देश्य यह जानना था कि देश में सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति कैसी है. इसके साथ ही यह भी कि जब लोग बाहर होते हैं और शौचालय का उपयोग करने की आवश्यकता होती है तो क्या करते हैं. सर्वेक्षण में 39,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया. इनमें 42 प्रतिशत शहरी भारतीयों का मानना ​​है कि उनके शहर/जिले में सार्वजनिक शौचालयों की उपलब्धता में सुधार हुआ है, लेकिन 52 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने संकेत दिया कि सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि 37 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने पाया कि सार्वजनिक शौचालय औसत रूप से काम कर रहे थे. 25 प्रतिशत ने उन्हें औसत से भी कम की श्रेणी में रखा. 16 प्रतिशत ने कहा कि सार्वजिनिक शौचालय के इस्तेमाल का उनका अनुभव भयानक रहा. 12 प्रतिशत ने सार्वजनिक शौचालयों को इतना खराब पाया कि आवश्यकता होने पर भी वे बिना इस्तेमाल किये बाहर आ गये. हालांकि, मुंबई, दिल्ली या बेंगलुरु जैसे शहरों में भी कमोबेश यही इसी स्थिति का अंदाजा मिलता है.

लोगों ने कहा कि किसी संस्था या नगरपालिका की ओर से प्रबंधित शौचालय जहां इस्तेमाल करने के बदले भुगतान करना पड़ता है उनकी स्थिति तो फिर भी ठीक है, लेकिन पूरी तरह से सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल एक दुःस्वप्न है. पिछले तीन वर्षों में लोकलसर्कल्स पर बड़ी संख्या में लोगों ने जो बड़ा मुद्दा रिपोर्ट किया है, वह उनके क्षेत्र, जिले या शहर में सार्वजनिक शौचालयों की स्वच्छता. जिसमें साफ-सफाई और रखरखाव की कमी स्पष्ट नजर आती है.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि सर्वेक्षण में शामिल 68 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे सार्वजनिक शौचालय में जाने के बजाय किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान में जाना और वहां शौचालय का उपयोग करना पसंद करेंगे. जब सर्वेक्षण ने इस तरह की प्राथमिकता के कारण की पड़ताल की, तो पाया गया कि सर्वेक्षण में शामिल केवल 10 प्रतिशत ने अपने शहर/जिले में सार्वजनिक शौचालयों को अच्छी तरह से बनाए रखा, जबकि अधिकांश 53 प्रतिशत ने पुष्टि की कि वे खराब या अनुपयोगी स्थिति में हैं.

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सर्वेक्षण में शामिल लगभग 37 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे केवल काम तो कर रहे हैं लेकिन उनका अच्छी तरह से रखरखाव नहीं किया गया है. सर्वेक्षण में 69 प्रतिशत उत्तरदाता पुरुष थे जबकि 31 प्रतिशत उत्तरदाता महिलाएं थीं. लगभग 47 प्रतिशत उत्तरदाता टियर एक से, 31 प्रतिशत टियर दो और 22 प्रतिशत उत्तरदाता टियर तीन और चार श्रेणी के जिलों या शहरों से थे.

नई दिल्ली : आज स्वच्छ भारत मिशन के नौ साल पूरे हो गये. एक नए सर्वेक्षण में पाया गया है कि अधिकांश भारतीयों को लगता है कि सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. अधिकतर लोगों ने कहा कि वे सार्वजनिक शौचालयों का उपयोग करने की जगह किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान के शौचालयों में जाना अधिक पसंद करेंगे.

सामुदायिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स के सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि मुंबई, दिल्ली या बेंगलुरु जैसे शहरों में भी, सार्वजनिक शौचालयों में जाना आम तौर पर एक अनुभव है. हां, लोगों ने सुलभ इंटरनेशनल जैसे प्रतिष्ठित संगठनों की ओर से प्रबंधित शौचालयों को अच्छा बताया.

यह सर्वेक्षण भारत के 341 जिलों में किया गया था. इसका उद्देश्य यह जानना था कि देश में सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति कैसी है. इसके साथ ही यह भी कि जब लोग बाहर होते हैं और शौचालय का उपयोग करने की आवश्यकता होती है तो क्या करते हैं. सर्वेक्षण में 39,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया. इनमें 42 प्रतिशत शहरी भारतीयों का मानना ​​है कि उनके शहर/जिले में सार्वजनिक शौचालयों की उपलब्धता में सुधार हुआ है, लेकिन 52 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने संकेत दिया कि सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि 37 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने पाया कि सार्वजनिक शौचालय औसत रूप से काम कर रहे थे. 25 प्रतिशत ने उन्हें औसत से भी कम की श्रेणी में रखा. 16 प्रतिशत ने कहा कि सार्वजिनिक शौचालय के इस्तेमाल का उनका अनुभव भयानक रहा. 12 प्रतिशत ने सार्वजनिक शौचालयों को इतना खराब पाया कि आवश्यकता होने पर भी वे बिना इस्तेमाल किये बाहर आ गये. हालांकि, मुंबई, दिल्ली या बेंगलुरु जैसे शहरों में भी कमोबेश यही इसी स्थिति का अंदाजा मिलता है.

लोगों ने कहा कि किसी संस्था या नगरपालिका की ओर से प्रबंधित शौचालय जहां इस्तेमाल करने के बदले भुगतान करना पड़ता है उनकी स्थिति तो फिर भी ठीक है, लेकिन पूरी तरह से सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल एक दुःस्वप्न है. पिछले तीन वर्षों में लोकलसर्कल्स पर बड़ी संख्या में लोगों ने जो बड़ा मुद्दा रिपोर्ट किया है, वह उनके क्षेत्र, जिले या शहर में सार्वजनिक शौचालयों की स्वच्छता. जिसमें साफ-सफाई और रखरखाव की कमी स्पष्ट नजर आती है.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि सर्वेक्षण में शामिल 68 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे सार्वजनिक शौचालय में जाने के बजाय किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान में जाना और वहां शौचालय का उपयोग करना पसंद करेंगे. जब सर्वेक्षण ने इस तरह की प्राथमिकता के कारण की पड़ताल की, तो पाया गया कि सर्वेक्षण में शामिल केवल 10 प्रतिशत ने अपने शहर/जिले में सार्वजनिक शौचालयों को अच्छी तरह से बनाए रखा, जबकि अधिकांश 53 प्रतिशत ने पुष्टि की कि वे खराब या अनुपयोगी स्थिति में हैं.

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सर्वेक्षण में शामिल लगभग 37 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे केवल काम तो कर रहे हैं लेकिन उनका अच्छी तरह से रखरखाव नहीं किया गया है. सर्वेक्षण में 69 प्रतिशत उत्तरदाता पुरुष थे जबकि 31 प्रतिशत उत्तरदाता महिलाएं थीं. लगभग 47 प्रतिशत उत्तरदाता टियर एक से, 31 प्रतिशत टियर दो और 22 प्रतिशत उत्तरदाता टियर तीन और चार श्रेणी के जिलों या शहरों से थे.

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