नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित (Chief Justice of India UU Lalit) की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ 31 अक्टूबर को कानून आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करेगी. यह याचिका भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है, जिनका तर्क है कि 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया था, लेकिन केंद्र सरकार ने न तो अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल बढ़ाया और न ही 22वें विधि आयोग को अधिसूचित किया.
सरकार ने 22वें आयोग के संविधान को बाद में मंजूरी दी, लेकिन आज तक किसी भी अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति नहीं की है. याचिकाकर्ता का कहना है कि जनता को बड़ी चोट लगी है, क्योंकि कानून आयोग जो सार्वजनिक मुद्दों की जांच करता है, मौजूदा कानूनों की जांच करता है, सुधार का रास्ता ढूंढता है, निर्देशक सिद्धांतों को कानून बनाता है आदि साल 2018 से सिरविहीन है.
याचिका में कहा गया है कि भारत का विधि आयोग 1 सितंबर 2018 से काम नहीं कर रहा है, इसलिए केंद्र को कानून के विभिन्न पहलुओं पर इस विशेष निकाय की सिफारिशों का लाभ नहीं है, जो आयोग को इसके अध्ययन और सिफारिशों के लिए सौंपा गया है.
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याचिका में केंद्र को 22वें विधि आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को एक महीने के भीतर नियुक्त करने और विधि आयोग को एक वैधानिक निकाय बनाने या अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के लिए अपनी पूर्ण शक्तियों का उपयोग करने और कानून आयोग को अपने दम पर एक वैधानिक निकाय घोषित करने का निर्देश देने की प्रार्थना की गई है.
यह वोहरा रिपोर्ट पर कार्रवाई और काले धन, बेनामी संपत्तियों और आय से अधिक संपत्ति की जब्ती पर रिपोर्ट पर विचार करने के लिए विधि आयोग को निर्देश देने की भी मांग करता है. याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा कि वह आयोग को मुद्दों पर तीन महीने के भीतर दो अलग-अलग रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दे.