भारत का कल्चरल और जियोग्राफिकल बायोडायवर्सिटी, देश के छोटे-छोटे गांवों में भी समाहित है. हाल ही में कुछ गांवों ने टूरिस्टों के बीच अपनी एक खास पहचान बनाई है. इनमें से एक है धुड़मारास गांव. जी हां, छत्तीसगढ़ के धुड़मारस को संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) द्वारा सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव उन्नयन कार्यक्रम के लिए चुना गया है. बस्तर जिले में स्थित इस धुड़मारास गांव को यूएन ने बेस्ट टूरिज्म विलेज की लिस्ट में जगह दिया है. यह गांव संयुक्त राष्ट्र संघ के 60 देशों के बेस्ट 20 गांव में शामिल हुआ है. यदि आपको इस गांव के बारे में नहीं पता तो इस खबर के माध्यम से विस्तार से जानिए...
दुनिया के टॉप 20 गांव में सिलेक्शन
बस्तर जिले के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित धुड़मारास गांव दुनिया भर के उन 20 गांवों में से एक है जिसे सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव उन्नयन कार्यक्रम में भाग लेने के लिए चुना गया है. धुड़मारास को इसकी अद्भुत सांस्कृतिक विरासत, प्राकृतिक सुंदरता और सतत पर्यटन विकास की क्षमता के कारण चुना गया है. यह गांव छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में मौजूद है. यह गांव प्रकृति के गोद में बसा हुआ है. पहाड़ों और नदी के बीच घने जंगल में बसा हुआ है. यह गांव गूगल मैप पर नजर नहीं आता है और ना ही इसे राजस्व या वन गांव का दर्जा मिला है. इसके बावजूद इस गांव ने अपने सामूहिक परिश्रम और एकजुटता का परिचय दिया है, जो पर्यटकों को प्रकृति के गहराई में ले चलता है.
विश्व स्तर पर मिली पहचान
विश्व स्तर पर पर्यटन गांव के रूप में इस गांव की पहचान स्थापित होने का तात्पर्य यह भी है कि लंबे समय के बाद बस्तर में अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की संख्या में इजाफा हुआ है. यह धूड़मारास गांव जगदलपुर से सुकमा रोड़ कांगेरवेल्ली नेशनल पार्क के सरहदी इलाके में मौजूद है. गांव में पहुंचते ही पर्यटकों को एक स्वागत द्वार दिखता है. जिसमें लिखा गया है धुरवा डेरा. धुरवा इस क्षेत्र में निवास करने वाली जनजाति है. और डेरा उनके रहने के स्थान को कहा जाता है. इस डेरे के भीतर होम स्टेय बनाया गया है. होम स्टेय का दीवार बांस की चटाई और लाल ईंट से निर्माण किया गया है. वहीं होम स्टेय में पत्थर की छावनी बनाई गई है. जहां स्थानीय लोगों के साथ देश विदेश से पहुंचने वाले पर्यटक ठहरते हैं. इसके अलावा पर्यटकों के लिए जंगलों में मिलने वाले व्यंजनों से भोजन तैयार करके परोसा जाता है. इसके साथ ही गांव के सभी स्थानीय लोगों के द्वारा प्रकृति की सुरक्षा और बिना छेड़छाड़ के अलग अलग एक्टिविटी भी कराई जाती है.
मेहमान नवाजी के लिए भी काफी मशहूर
गांव के बीच से बहती कांगेर नदी यहां के नजारे को मनमोहक बना देती है. बस्तर के लोग मेहमान नवाजी के लिए भी काफी मशहूर हैं. यहां के स्थानीय लोग अपने घरों को पर्यटकों के लिए उपलब्ध करवा रहे हैं, ठहरने की सुविधा उपलब्ध करवाने से उन्हें रोजगार मिल रहा है. गांव के युवा पर्यटकों को आसपास के क्षेत्रों की सैर कराते हैं. स्थानीय खानपान के अंतर्गत पर्यटकों को बस्तर के पारम्परिक व्यंजन परोसे जाते हैं. गांव के युवाओं की ईको टूरिज्म डेवलपमेंट कमेटी कांगेर नदी में कयाकिंग और बम्बू राफ्टिंग की सुविधाएं पर्यटकों को उपलब्ध करवाती है, जिससे इस कमेटी को अच्छी खासी आमदनी हो रही है. यह पर्यटन समिति अब अपनी आमदनी से गांव में पर्यटकों के लिए वेटिंग रूम और टॉयलेट जैसी बेसिक सुविधाएं विकसित कर रहे हैं. यह गांव अब बस्तर के अन्य गांवों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया है. यही कारण है कि कांगेर घाटी नेशनल पार्क के नागलसर और नेतानार में भी ईको-टूरिज्म को भी बढ़ावा मिल रहा है.
पलायन की समस्या के चलते उठाया कदम
कम्युनिटी फॉरेस्ट रिसोर्स मैनेजमेंट कमेटी के सदस्य मानसिंह बघेल ने बताया कि इस पर्यटन गांव की शुरुआत होम स्टेय से हुई. जिसके बाद पलायन की समस्या को देखते हुए धीरे धीरे गांव में पर्यटन और एक्टिविटी को विस्तार किया गया. ताकि स्थानीय युवा इस गांव से पलायन करके अन्य स्थानों का रुख न करें. इसके साथ ही इस गांव में 40 परिवार निवासरत हैं. और प्रत्येक घर से एक सदस्य इस समिति में शामिल है. रोजगार के साथ ही गांव को प्रकृति के क्षेत्र में विकसित किया जा रहा है. इस पर्यटन गांव में पर्यटकों के लिए बम्बू राफ्टिंग, कयाकिंग, ट्रेकिंग, बर्ड वाचिंग जैसी सुविधाएं भी शामिल हैं. ताकि प्रकृति को पर्यटक करीब से महसूस करें. इस गांव में कांगेर नदी बहती है. जो आगे जाकर शबरी नदी में मिल जाती है. इसी नदी में बम्बू राफ्टिंग और कयाकिंग कराया जाता है. दोनों के लिए एक सीमा निर्धारित किया गया है. उस सीमा के आगे स्थानीय लोगों का पूजा क्षेत्र मौजूद है. दोनों एक्टिविटी के दौरान पर्यटक काफी शांति महसूस करते हैं और चिड़ियों की चहचहाट भी सुनाई देती है.
गांव गूगल मैप में भी नहीं आता नजर
इसके अलावा यह भी बताया कि इस गांव को सभी ने छोड़ दिया है. यह गांव गूगल मैप में भी नजर नहीं आता है. यह गांव कोटमसर ग्राम पंचायत का आश्रित गांव है. लेकिन न इसे राजस्व ग्राम का दर्जा है, न सामान्य वन ग्राम और न ही कांगेर वैली ग्राम का दर्जा है. जिसके कारण स्थानीय आदिवासी शासकीय योजनाओं का लाभ बेहतर तरीके ने नहीं ले पा रहे हैं. हालांकि इसे राजस्य ग्राम बनाने की लड़ाई ग्रामीण लड़ रहें हैं. जिसका पहला प्रकाशन भी हो गया है. इसके साथ ही यह बघेल बताया कि प्लास्टिक बैग को इकठ्ठा किया जा रहा है और एक साथ सभी को रीसाइक्लिंग के लिए फैक्ट्री भेजा जाएगा. इस तरह इको टूरिज्म की बढ़ावा दिया जा रहा है. इस कारण धूड़मारास को बीते दिनों बेहतर गांव के नाम पर दिल्ली में सम्मानित किया गया था. वहीं अब संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन ने बेहतरीन गांव के लिए 60 देशों के 20 गांवों में इस धूड़मारास को शामिल किया है.
पर्यटकों को खूब भा रहा यह गांव
पर्यटकों ने बताया कि पहली बार वे धूड़मारास घूमने आये उन्हें यह प्रकृति के बीच घंने जंगलो में बसा गांव काफी अच्छा लगा. बम्बू राफ्टिंग और कयाकिंग का अनुभव काफी अच्छा था. शहर के शोर शराबे से दूर धूड़मारास में एक अलग सी शांति मिली. इसके साथ ही पहाड़ी मैना और अन्य पक्षियों की चहचहाट भी सुनाई दी. एक अलग ही अनुभव हुआ. निश्चित ही जिस उद्देश्य से इस गांव का चयन UN ने किया है. ठीक वैसा ही यह पर्यटन गांव है और निश्चित ही आगामी दिनों में बस्तर की पहचान बड़े पर्यटन स्थलों के रूप में शिमला, मनाली और कश्मीर की तर्ज पर की जाएगी.