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राजद्रोह के आक्रामक हिस्से को खत्म करे सुप्रीम कोर्ट, तभी लोग लेंगे राहत की सांस : जस्टिस नरीमन

न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय को अपमानजनक कानूनों को हटाने का कार्य सिर्फ सरकार पर नहीं छोड़ना चाहिए, बल्कि इसके बजाय कानून को खत्म करने के लिए न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्तियों का उपयोग करना चाहिए, ताकि नागरिक अधिक स्वतंत्र रूप से सांस ले सकें.

Nariman
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Published : Oct 10, 2021, 7:29 PM IST

Updated : Oct 10, 2021, 7:50 PM IST

नई दिल्ली : रविवार को विश्वनाथ पसायत स्मारक समिति द्वारा आयोजित एक समारोह में बोलते हुए न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि मैं सुप्रीम कोर्ट से केंद्र में लंबित राजद्रोह कानून के मामलों को वापस नहीं भेजने का आग्रह करूंगा.

उन्होंने कहा कि सरकारें आएंगी और जाएंगी लेकिन अदालत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी शक्ति का उपयोग करे और धारा 124 ए व यूएपीए के आक्रामक हिस्से को खत्म करे. तब यहां के नागरिक अधिक खुलकर सांस लेंगे.

न्यायमूर्ति नरीमन ने अपने भाषण में कहा कि लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले द्वारा तैयार किए गए मूल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में राजद्रोह नहीं था, हालांकि यह उनके प्रारूप संस्करण में मौजूद था. देशद्रोह का प्रावधान मसौदे में था लेकिन अंतिम पुस्तक में नहीं था. बाद में इसे खोजा गया और फिर से तैयार किया गया. यह कहा गया कि इस खंड को निरीक्षण में छोड़ दिया गया था.

उन्होंने कहा कि कैसे अंग्रेजों ने प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों सहित भारतीयों के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया. न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि एक बांगोबासी मामला था. उसमें बांगोबासी समाचार पत्र के एक संपादक पर बाल विवाह के संबंध में सहमति अधिनियम की आयु के खिलाफ एक लेख प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया.

लेखक (लेख के) ने कहा कि बाल विवाह भारतीय के लिए अंतर्निहित संस्कृति थी. ब्रिटिश न्यायाधीश इस पर राजी नहीं थे इसलिए संपादक को धारा 124 ए के तहत उत्तरदायी ठहराया गया.

उन्होंने यह भी विस्तार से बताया कि कैसे बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ बोलने पर राजद्रोह का दोषी ठहराया गया था. न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि गांधी जी ने कहा कि स्नेह (सरकार के प्रति) को कानून द्वारा नहीं मापा जा सकता है.

उन्होंने कहा कि जब तक हिंसा नहीं होती है, तब तक असंतोष का पूरा साथ दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह इसे धारा 124 ए के तहत आरोपित होने का विशेषाधिकार मानते हैं. गांधीजी को 6 साल की सजा हुई और उन्होंने 2 साल की सेवा की.

नरीमन ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू ने भी 1932 और 1934 में देशद्रोह के लिए वर्षों तक जेल काटी. उन्होंने यह भी विस्तार से बताया कि कैसे एक से अधिक अवसरों पर तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया. मोहम्मद अली जिन्ना ने एक अवसर पर तिलक के बचाव पक्ष के वकील के रूप में कार्य किया.

पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि कैसे शुरू में देशद्रोह संविधान के अनुच्छेद-19 के मसौदे के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपवाद का हिस्सा था. संविधान से हटाए जाने से पहले इस पर व्यापक रूप से बहस हुई थी लेकिन यह भारतीय दंड संहिता में बना रहा.

यह भी पढ़ें-आप कहीं भी थूकने की आदत से हैं परेशान तो अब रेलवे लाया बायोडिग्रेडेबल 'पीकदान'

न्यायाधीश ने कहा कि तब सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ मामले में आखिरकार कहा कि अगर हम किसी विशेष प्रावधान को एक विशेष तरीके से पढ़ सकते हैं, जब तक कि हिंसा के आह्वान के साथ असंतोष को जोड़ा जाता है, तभी यह देशद्रोह होगा.

नई दिल्ली : रविवार को विश्वनाथ पसायत स्मारक समिति द्वारा आयोजित एक समारोह में बोलते हुए न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि मैं सुप्रीम कोर्ट से केंद्र में लंबित राजद्रोह कानून के मामलों को वापस नहीं भेजने का आग्रह करूंगा.

उन्होंने कहा कि सरकारें आएंगी और जाएंगी लेकिन अदालत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी शक्ति का उपयोग करे और धारा 124 ए व यूएपीए के आक्रामक हिस्से को खत्म करे. तब यहां के नागरिक अधिक खुलकर सांस लेंगे.

न्यायमूर्ति नरीमन ने अपने भाषण में कहा कि लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले द्वारा तैयार किए गए मूल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में राजद्रोह नहीं था, हालांकि यह उनके प्रारूप संस्करण में मौजूद था. देशद्रोह का प्रावधान मसौदे में था लेकिन अंतिम पुस्तक में नहीं था. बाद में इसे खोजा गया और फिर से तैयार किया गया. यह कहा गया कि इस खंड को निरीक्षण में छोड़ दिया गया था.

उन्होंने कहा कि कैसे अंग्रेजों ने प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों सहित भारतीयों के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया. न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि एक बांगोबासी मामला था. उसमें बांगोबासी समाचार पत्र के एक संपादक पर बाल विवाह के संबंध में सहमति अधिनियम की आयु के खिलाफ एक लेख प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया.

लेखक (लेख के) ने कहा कि बाल विवाह भारतीय के लिए अंतर्निहित संस्कृति थी. ब्रिटिश न्यायाधीश इस पर राजी नहीं थे इसलिए संपादक को धारा 124 ए के तहत उत्तरदायी ठहराया गया.

उन्होंने यह भी विस्तार से बताया कि कैसे बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ बोलने पर राजद्रोह का दोषी ठहराया गया था. न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि गांधी जी ने कहा कि स्नेह (सरकार के प्रति) को कानून द्वारा नहीं मापा जा सकता है.

उन्होंने कहा कि जब तक हिंसा नहीं होती है, तब तक असंतोष का पूरा साथ दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह इसे धारा 124 ए के तहत आरोपित होने का विशेषाधिकार मानते हैं. गांधीजी को 6 साल की सजा हुई और उन्होंने 2 साल की सेवा की.

नरीमन ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू ने भी 1932 और 1934 में देशद्रोह के लिए वर्षों तक जेल काटी. उन्होंने यह भी विस्तार से बताया कि कैसे एक से अधिक अवसरों पर तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया. मोहम्मद अली जिन्ना ने एक अवसर पर तिलक के बचाव पक्ष के वकील के रूप में कार्य किया.

पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि कैसे शुरू में देशद्रोह संविधान के अनुच्छेद-19 के मसौदे के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपवाद का हिस्सा था. संविधान से हटाए जाने से पहले इस पर व्यापक रूप से बहस हुई थी लेकिन यह भारतीय दंड संहिता में बना रहा.

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न्यायाधीश ने कहा कि तब सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ मामले में आखिरकार कहा कि अगर हम किसी विशेष प्रावधान को एक विशेष तरीके से पढ़ सकते हैं, जब तक कि हिंसा के आह्वान के साथ असंतोष को जोड़ा जाता है, तभी यह देशद्रोह होगा.

Last Updated : Oct 10, 2021, 7:50 PM IST
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