ETV Bharat / bharat

शैक्षणिक संस्थान अनुदान पाने के लिए नहीं थोप सकते शर्तें, नियम सबके लिए समान : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सहायता प्राप्त करना मौलिक अधिकार नहीं है और सरकार को शैक्षणिक संस्थानों के लिए सहायता पर निर्णय लेते समय वित्तीय बाधाओं और कमियों जैसे विभिन्न कारकों को ध्यान में रखना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट
author img

By

Published : Sep 27, 2021, 10:23 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सहायता प्राप्त करना मौलिक अधिकार नहीं है. सरकार को शैक्षणिक संस्थानों के लिए सहायता पर निर्णय लेते समय वित्तीय बाधाओं और कमियों जैसे विभिन्न कारकों को ध्यान में रखना चाहिए.

जब सहायता प्राप्त संस्थानों की बात आती है तो अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक के बीच कोई अंतर नहीं हो सकता है. इसे लागू करने में किए गए निर्णय को चुनौती केवल प्रतिबंधित आधार पर होगी.

जस्टिस एसके कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा इसलिए ऐसे मामले में भी जहां नीतिगत निर्णय सहायता वापस लेने के लिए किया जाता है. एक संस्था इसे अधिकार के रूप में सवाल नहीं कर सकती है. हो सकता है कि एक संस्था के लिए ऐसी चुनौती तब भी उपलब्ध होगी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर कोई संस्था इस तरह की सहायता से जुड़ी शर्तों को स्वीकार और पालन नहीं करना चाहती है. तो वह अनुदान को अस्वीकार करने और अपने तरीके से आगे बढ़ने के लिए तैयार है.

इसके विपरीत किसी संस्था को यह कहने की अनुमति कभी नहीं दी जा सकती कि सहायता अनुदान अपनी शर्तों पर होना चाहिए. शीर्ष अदालत की टिप्पणी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश की अपील को स्वीकार करते हुए आई है. जिसमें कहा गया है कि इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम 1921 के तहत बनाए गए विनियमन 101 असंवैधानिक हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा कि एक बार यह माना जाता है कि सहायता प्राप्त करने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है. इसे लागू करने में किए गए निर्णय को चुनौती केवल प्रतिबंधित आधार पर होगी. इसलिए ऐसे में सहायता वापस लेने का नीतिगत निर्णय लिया जाता है तो कोई संस्था इस पर अधिकार के मामले में सवाल नहीं उठा सकती है.

हो सकता है ऐसी चुनौती तब भी एक संस्था के लिए उपलब्ध होगी, जब एक संस्थान को दूसरे संस्थान के मुकाबले अनुदान दिया जाता है. जो समान रूप से रखा जाता है. इसलिए सहायता के अनुदान के साथ शर्तें आती हैं.

पीठ ने कहा कि अगर कोई संस्था इस तरह की सहायता से जुड़ी शर्तों को स्वीकार और उनका पालन नहीं करना चाहती है तो वह अनुदान को अस्वीकार करने और अपने तरीके से आगे बढ़ने के लिए तैयार है.

इसे भी पढ़ें-NEET-SS Exam Pattern : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नौकरशाह असंवेदनशील, युवा डॉक्टर फुटबॉल नहीं

पीठ ने कहा कि एक नीतिगत निर्णय को जनहित में माना जाता है और एक बार किया गया ऐसा निर्णय चुनौती देने योग्य नहीं है. जब तक कि प्रकट या अत्यधिक मनमानी न हो एक संवैधानिक अदालत से अपने हाथ दूर रखने की उम्मीद की जाती है.

एक कार्यकारी शक्ति एक विधायी शक्ति का अवशेष है इसलिए उक्त शक्ति का प्रयोग यानी आक्षेपित विनियमन में संशोधन, केवल अनुमान के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है पीठ ने कहा शीर्ष अदालत ने कहा कि एक बार नीतिगत निर्णय के माध्यम से एक नियम पेश किए जाने के बाद, प्रकट, अत्यधिक और अत्यधिक मनमानी के अस्तित्व पर एक प्रदर्शन की आवश्यकता होती है.

(पीटीआई)

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सहायता प्राप्त करना मौलिक अधिकार नहीं है. सरकार को शैक्षणिक संस्थानों के लिए सहायता पर निर्णय लेते समय वित्तीय बाधाओं और कमियों जैसे विभिन्न कारकों को ध्यान में रखना चाहिए.

जब सहायता प्राप्त संस्थानों की बात आती है तो अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक के बीच कोई अंतर नहीं हो सकता है. इसे लागू करने में किए गए निर्णय को चुनौती केवल प्रतिबंधित आधार पर होगी.

जस्टिस एसके कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा इसलिए ऐसे मामले में भी जहां नीतिगत निर्णय सहायता वापस लेने के लिए किया जाता है. एक संस्था इसे अधिकार के रूप में सवाल नहीं कर सकती है. हो सकता है कि एक संस्था के लिए ऐसी चुनौती तब भी उपलब्ध होगी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर कोई संस्था इस तरह की सहायता से जुड़ी शर्तों को स्वीकार और पालन नहीं करना चाहती है. तो वह अनुदान को अस्वीकार करने और अपने तरीके से आगे बढ़ने के लिए तैयार है.

इसके विपरीत किसी संस्था को यह कहने की अनुमति कभी नहीं दी जा सकती कि सहायता अनुदान अपनी शर्तों पर होना चाहिए. शीर्ष अदालत की टिप्पणी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश की अपील को स्वीकार करते हुए आई है. जिसमें कहा गया है कि इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम 1921 के तहत बनाए गए विनियमन 101 असंवैधानिक हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा कि एक बार यह माना जाता है कि सहायता प्राप्त करने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है. इसे लागू करने में किए गए निर्णय को चुनौती केवल प्रतिबंधित आधार पर होगी. इसलिए ऐसे में सहायता वापस लेने का नीतिगत निर्णय लिया जाता है तो कोई संस्था इस पर अधिकार के मामले में सवाल नहीं उठा सकती है.

हो सकता है ऐसी चुनौती तब भी एक संस्था के लिए उपलब्ध होगी, जब एक संस्थान को दूसरे संस्थान के मुकाबले अनुदान दिया जाता है. जो समान रूप से रखा जाता है. इसलिए सहायता के अनुदान के साथ शर्तें आती हैं.

पीठ ने कहा कि अगर कोई संस्था इस तरह की सहायता से जुड़ी शर्तों को स्वीकार और उनका पालन नहीं करना चाहती है तो वह अनुदान को अस्वीकार करने और अपने तरीके से आगे बढ़ने के लिए तैयार है.

इसे भी पढ़ें-NEET-SS Exam Pattern : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नौकरशाह असंवेदनशील, युवा डॉक्टर फुटबॉल नहीं

पीठ ने कहा कि एक नीतिगत निर्णय को जनहित में माना जाता है और एक बार किया गया ऐसा निर्णय चुनौती देने योग्य नहीं है. जब तक कि प्रकट या अत्यधिक मनमानी न हो एक संवैधानिक अदालत से अपने हाथ दूर रखने की उम्मीद की जाती है.

एक कार्यकारी शक्ति एक विधायी शक्ति का अवशेष है इसलिए उक्त शक्ति का प्रयोग यानी आक्षेपित विनियमन में संशोधन, केवल अनुमान के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है पीठ ने कहा शीर्ष अदालत ने कहा कि एक बार नीतिगत निर्णय के माध्यम से एक नियम पेश किए जाने के बाद, प्रकट, अत्यधिक और अत्यधिक मनमानी के अस्तित्व पर एक प्रदर्शन की आवश्यकता होती है.

(पीटीआई)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.