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SC की तल्ख टिप्पणी, 'जनप्रतिनिधियों का अमर्यादित व्यवहार माफी के काबिल नहीं'

सुप्रीम कोर्ट (SUPREME COURT) ने केरल सरकार की उस याचिका पर गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. मामले में अब तक हुई सुनवाई में संसद और विधानसभा में सदस्यों द्वारा हंगामा करने और तोड़फोड़ करने की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जता चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी घटनाओं को माफ नहीं किया जा सकता.

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Published : Jul 15, 2021, 5:29 PM IST

Updated : Jul 15, 2021, 6:56 PM IST

SUPREME COURT, Kerala Assembly Ruckus Case
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SUPREME COURT) ने केरल सरकार की उस याचिका पर गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें 2015 में केरल राज्य विधानसभा में हंगामा के मामले (Kerala Assembly Ruckus Case) में आरोपी भाकपा नेताओं के खिलाफ मामला वापस लेने की मांग की गई है. मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केरल सरकार से सवालिया अंदाज में कहा था कि सदन में माइक फेंकने वाले विधायक का व्यवहार देखिए. उसे मुकदमे का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि वे लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. अब विधानसभा में तो छोड़िए, संसद में भी हंगामा होने लगा है. जन प्रतिनिधि ये क्यों नहीं सोचते कि इसका जनता पर क्या असर पड़ेगा ? ऐसा अमर्यादित आचरण स्वीकार योग्य नहीं है और इस तरह के व्यवहार को माफ नहीं किया जा सकता.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या मुकदमों को वापस लेने की मांग की जनहित या लोक न्याय की सेवा में की गई है, जबकि विधायकों ने लोकतंत्र के गर्भगृह को क्षतिग्रस्त कर दिया था. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मान लीजिए, सदन में एक विधायक रिवाल्वर निकाल लेता है. हालांकि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की वजह से कुछ हो नहीं पाता, लेकिन कुछ भी हो जाता है, जैसे कि विधायक ने विधानसभा में रिवॉल्वर खाली कर दी, तो क्या तब भी हम ये कहेंगे कि सदन सर्वोच्च है ? कहा कि आरोपियों को सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमे का सामना करना चाहिए.

विधानसभा में हंगामे पर जताई चिंता

दरअसल, पिछली सुनवाई में संसद और विधानसभा में सदस्यों द्वारा हंगामा करने और तोड़फोड़ करने की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी घटनाओं को माफ नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने मामले में लगभग 5 घंटे तक सुनवाई की. कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मामला है इसलिए इस पर विस्तार से सुनवाई होनी चाहिए.

पढ़ें: विधानसभा हंगामा मामला : केरल सरकार ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

तकनीकी आधार पर हुई सुनवाई में दोनों पक्षों ने विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया और तर्क दिया कि क्या राज्य द्वारा मामलों को वापस लिया जा सकता है, तब जबकि उसके सदस्यों ने सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट कर दिया हो. राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने अदालत के समक्ष पक्ष रखा कि सरकार एक बजट पेश कर रही थी और चूंकि वित्त मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के कुछ आरोप थे इस वजह से विरोध हुआ.

मीडिया बना देगी व्यापक चर्चा का विषय

बजट सत्र आवेशपूर्ण माहौल में आयोजित किया गया था और सत्ता पक्ष के सदस्यों की भी गलती थी. एक आरोपी के अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि अपराध राजनीतिक है और दो पक्षों के बीच के मामले में कार्रवाई को मीडिया व्यापक ध्यान का विषय बना देगी. उन्होंने यह भी कहा कि विधायकों के विधानसभा कुछ विशेषाधिकार हैं. मामले में एक प्रतिवादी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने तर्क दिया कि विधायक जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. विशेषाधिकार लोगों के हित में हैं न कि उनके हितों के विपरीत. विधानसभा में किसी भी संपत्ति को करदाताओं के पैसे से खरीदा गया है, यह कोई निजी संपत्ति नहीं है.

बताते चलें कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ केरल सरकार द्वारा 2015 में केरल विधानसभा में हंगामे के लिए प्रमुख माकपा नेताओं के खिलाफ मामलों को वापस लेने की अनुमति मांगने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है. ये याचिका केरल हाईकोर्ट के 12 मार्च, 2021 के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई है, जिसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा मौजूदा मंत्रियों सहित अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की अनुमति मांगने के आदेश के खिलाफ राज्य की याचिका को खारिज कर दिया था.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SUPREME COURT) ने केरल सरकार की उस याचिका पर गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें 2015 में केरल राज्य विधानसभा में हंगामा के मामले (Kerala Assembly Ruckus Case) में आरोपी भाकपा नेताओं के खिलाफ मामला वापस लेने की मांग की गई है. मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केरल सरकार से सवालिया अंदाज में कहा था कि सदन में माइक फेंकने वाले विधायक का व्यवहार देखिए. उसे मुकदमे का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि वे लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. अब विधानसभा में तो छोड़िए, संसद में भी हंगामा होने लगा है. जन प्रतिनिधि ये क्यों नहीं सोचते कि इसका जनता पर क्या असर पड़ेगा ? ऐसा अमर्यादित आचरण स्वीकार योग्य नहीं है और इस तरह के व्यवहार को माफ नहीं किया जा सकता.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या मुकदमों को वापस लेने की मांग की जनहित या लोक न्याय की सेवा में की गई है, जबकि विधायकों ने लोकतंत्र के गर्भगृह को क्षतिग्रस्त कर दिया था. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मान लीजिए, सदन में एक विधायक रिवाल्वर निकाल लेता है. हालांकि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की वजह से कुछ हो नहीं पाता, लेकिन कुछ भी हो जाता है, जैसे कि विधायक ने विधानसभा में रिवॉल्वर खाली कर दी, तो क्या तब भी हम ये कहेंगे कि सदन सर्वोच्च है ? कहा कि आरोपियों को सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमे का सामना करना चाहिए.

विधानसभा में हंगामे पर जताई चिंता

दरअसल, पिछली सुनवाई में संसद और विधानसभा में सदस्यों द्वारा हंगामा करने और तोड़फोड़ करने की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी घटनाओं को माफ नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने मामले में लगभग 5 घंटे तक सुनवाई की. कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मामला है इसलिए इस पर विस्तार से सुनवाई होनी चाहिए.

पढ़ें: विधानसभा हंगामा मामला : केरल सरकार ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

तकनीकी आधार पर हुई सुनवाई में दोनों पक्षों ने विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया और तर्क दिया कि क्या राज्य द्वारा मामलों को वापस लिया जा सकता है, तब जबकि उसके सदस्यों ने सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट कर दिया हो. राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने अदालत के समक्ष पक्ष रखा कि सरकार एक बजट पेश कर रही थी और चूंकि वित्त मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के कुछ आरोप थे इस वजह से विरोध हुआ.

मीडिया बना देगी व्यापक चर्चा का विषय

बजट सत्र आवेशपूर्ण माहौल में आयोजित किया गया था और सत्ता पक्ष के सदस्यों की भी गलती थी. एक आरोपी के अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि अपराध राजनीतिक है और दो पक्षों के बीच के मामले में कार्रवाई को मीडिया व्यापक ध्यान का विषय बना देगी. उन्होंने यह भी कहा कि विधायकों के विधानसभा कुछ विशेषाधिकार हैं. मामले में एक प्रतिवादी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने तर्क दिया कि विधायक जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. विशेषाधिकार लोगों के हित में हैं न कि उनके हितों के विपरीत. विधानसभा में किसी भी संपत्ति को करदाताओं के पैसे से खरीदा गया है, यह कोई निजी संपत्ति नहीं है.

बताते चलें कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ केरल सरकार द्वारा 2015 में केरल विधानसभा में हंगामे के लिए प्रमुख माकपा नेताओं के खिलाफ मामलों को वापस लेने की अनुमति मांगने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है. ये याचिका केरल हाईकोर्ट के 12 मार्च, 2021 के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई है, जिसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा मौजूदा मंत्रियों सहित अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की अनुमति मांगने के आदेश के खिलाफ राज्य की याचिका को खारिज कर दिया था.

Last Updated : Jul 15, 2021, 6:56 PM IST
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