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सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण किया खत्म, कहा- 50% सीमा का उल्लंघन - मराठा आरक्षण पर सुप्रीम फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दे दिया है. इसके तहत महाराष्ट्र में नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में मराठा समुदाय को आरक्षण का प्रावधान था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे 50 फीसदी आरक्षण सीमा का उल्लंघन बताया है और माना है कि ऐसी कोई असाधारण परिस्थिति नहीं थी जिसके तहत मराठा आरक्षण देने के लिए आरक्षण की सीमा को पार किया गया.

मराठा आरक्षण पर 'सुप्रीम' फैसला
मराठा आरक्षण पर 'सुप्रीम' फैसला
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Published : May 5, 2021, 1:13 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि मराठा समुदाय को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के रूप में घोषित श्रेणी में नहीं लाया जा सकता.

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में जिस मराठा आरक्षण को असंवैधानिक बताया है उसके तहत मराठा समुदाय के लोगों को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में आरक्षण दिया गया था. यह आरक्षण आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था. देश की सर्वोच्च अदालन ने इसे असंवैधानिक बताते हुए कहा कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार की जरूरत नहीं है और मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन करता है. साथ ही मराठा आरक्षण लागू करते वक्त 50 फीसदी की सीमा तोड़ने का कोई संवैधानिक आधार नहीं था.

क्या है पूरा मामला

नवंबर 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा वर्ग को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में 16 फीसदी आरक्षण दिया था. ओबीसी जातियों को दिए गए 27 फीसदी आरक्षण से अलग दिए गए मराठा आरक्षण से सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का उल्लंघन हुआ था जिसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तक हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इंदिरा साहनी केस में 1992 के शीर्ष अदालत के फैसले की समीक्षा से भी इनकार कर दिया है. गौरतलब है कि साल 1992 में 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा तय की थी.

हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण को दी थी हरी झंडी

बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आरक्षण को चुनौती दी गई थी लेकिन जून 2019 में हाइकोर्ट ने आरक्षण के फैसले में फैसला सुनाया. हालांकि हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों के मुताबिक इसे 16 फीसदी से घटाकर 12 से 13 फीसदी करने के लिए कहा था.

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक बताया

मराठा आरक्षण के खिलाफ एक याचिका सुप्रीम कोर्ट पहुंची जिसपर बुधवार को फैसला सुनाते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने इसे असंवैधानकि करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि मराठा समुदाय को आरक्षण देने वाला महाराष्ट्र का कानून आरक्षण के अधिकतम 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन करता है. ऐसी कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है जिसके तहत मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए 50 फीसदी आरक्षण सीमा से अधिक आरक्षण दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में दाखिले में मराठा आरक्षण कानून को खारिज करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया.

ये भी पढ़ें: ऑक्‍सीजन की कमी से लोगों की मौत पर इलाहाबाद हाईकोर्ट सख्त, कहा- यह नरसंहार से कम नहीं

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि मराठा समुदाय को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के रूप में घोषित श्रेणी में नहीं लाया जा सकता.

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में जिस मराठा आरक्षण को असंवैधानिक बताया है उसके तहत मराठा समुदाय के लोगों को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में आरक्षण दिया गया था. यह आरक्षण आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था. देश की सर्वोच्च अदालन ने इसे असंवैधानिक बताते हुए कहा कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार की जरूरत नहीं है और मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन करता है. साथ ही मराठा आरक्षण लागू करते वक्त 50 फीसदी की सीमा तोड़ने का कोई संवैधानिक आधार नहीं था.

क्या है पूरा मामला

नवंबर 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा वर्ग को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में 16 फीसदी आरक्षण दिया था. ओबीसी जातियों को दिए गए 27 फीसदी आरक्षण से अलग दिए गए मराठा आरक्षण से सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का उल्लंघन हुआ था जिसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तक हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इंदिरा साहनी केस में 1992 के शीर्ष अदालत के फैसले की समीक्षा से भी इनकार कर दिया है. गौरतलब है कि साल 1992 में 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा तय की थी.

हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण को दी थी हरी झंडी

बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आरक्षण को चुनौती दी गई थी लेकिन जून 2019 में हाइकोर्ट ने आरक्षण के फैसले में फैसला सुनाया. हालांकि हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों के मुताबिक इसे 16 फीसदी से घटाकर 12 से 13 फीसदी करने के लिए कहा था.

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक बताया

मराठा आरक्षण के खिलाफ एक याचिका सुप्रीम कोर्ट पहुंची जिसपर बुधवार को फैसला सुनाते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने इसे असंवैधानकि करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि मराठा समुदाय को आरक्षण देने वाला महाराष्ट्र का कानून आरक्षण के अधिकतम 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन करता है. ऐसी कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है जिसके तहत मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए 50 फीसदी आरक्षण सीमा से अधिक आरक्षण दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में दाखिले में मराठा आरक्षण कानून को खारिज करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया.

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