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Finolex Cables Case: सुप्रीम कोर्ट ने फिनोलेक्स केबल्स मामले में एनसीएलएटी सदस्यों को जारी किया अवमानना नोटिस - मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़

फिनोलेक्स केबल्स विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकण के न्यायिक सदस्य राकेश कुमार और तकनीकी सदस्य आलोक श्रीवास्तव को नोटिस जारी किया. नोटिस में उच्चतम न्यायालय द्वारा पूछा गया कि कोर्ट के आदेश की अवहेलना के लिए उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही क्यों नहीं की जाए. Supreme Court, Finolex Cables Case, National Company Law Appellate Tribunal.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 18, 2023, 3:59 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य राकेश कुमार और तकनीकी सदस्य आलोक श्रीवास्तव को नोटिस जारी कर पूछा कि फिनोलेक्स केबल्स विवाद मामले में उसके आदेश की अवहेलना के लिए उनके खिलाफ अवमानना​कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जाए. मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि बड़े संसाधन और पैसे वाले लोग सोचते हैं कि वे अदालत को मजाक में ले लेंगे और ऐसा बिल्कुल नहीं होगा.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि 'कॉर्पोरेट भारत को पता होना चाहिए कि अगर हमारे आदेशों को पलटा जा रहा है, तो उन्हें पता होना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट है जो देख रहा है. अब हम बस यही कहना चाहते हैं…' इस पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. उन्होंने फिनोलेक्स केबल्स की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) से संबंधित एनसीएलएटी पीठ के 13 अक्टूबर के फैसले को उसकी योग्यता पर विचार किए बिना रद्द कर दिया.

पीठ ने कहा कि एनसीएलएटी के सदस्य, न्यायमूर्ति अशोक भूषण नहीं, बल्कि उनके अलावा, एक सड़ांध है और एनसीएलएटी अब सड़ांध पर उतर आया है और यह मामला उस सड़ांध का एक उदाहरण है. पीठ ने कहा कि हमारा प्रथम दृष्टया मानना है कि एनसीएलएटी के सदस्य सही तथ्यों का खुलासा करने में विफल रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा एनसीएलएटी सदस्यों के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करना दुर्लभ है.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत का मानना है कि इसकी गरिमा बहाल हो यह सुनिश्चित करने के लिए आदेश पारित करना जरूरी है. पीठ ने कहा कि पार्टियों को उसके आदेशों को टालने के लिए कुटिल तरीकों का सहारा लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत को इस बात पर गंभीर संदेह है कि मामला एनसीएलएटी में कैसे आगे बढ़ा है और हमें यहां सदस्यों की ईमानदारी पर गंभीर संदेह है.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मामले की सुनवाई करने वाला एनसीएलएटी सदस्य इस मामले में पेश हो रहा था और उसे खुद को अलग कर लेना चाहिए था और फिर वह सुप्रीम कोर्ट में भी पेश हुआ. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 'हम निर्देश देते हैं कि 13 अक्टूबर को एनसीएलएटी के फैसले को योग्यता पर विचार किए बिना रद्द कर दिया जाए. अपील पर जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ दोबारा सुनवाई करेगी....'

उन्होंने आगे कहा कि 'प्रथम दृष्टया हमारा मानना है कि न्यायिक और तकनीकी सदस्य के खिलाफ अदालत की अवमानना के लिए कार्रवाई की जा सकती है... इस प्रकार हम यह दिखाने के लिए शोकेस नोटिस जारी करते हैं कि उनके खिलाफ अवमानना क्यों नहीं की जानी चाहिए. उन्हें 30 अक्टूबर, सुबह 10:30 बजे अदालत में उपस्थित होने दें...' एनसीएलएटी का आदेश फिनोलेक्स केबल्स की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) और कंपनी के प्रबंधन नियंत्रण पर प्रकाश छाबड़िया और दीपक छाबड़िया के कानूनी झगड़े से संबंधित था.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य राकेश कुमार और तकनीकी सदस्य आलोक श्रीवास्तव को नोटिस जारी कर पूछा कि फिनोलेक्स केबल्स विवाद मामले में उसके आदेश की अवहेलना के लिए उनके खिलाफ अवमानना​कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जाए. मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि बड़े संसाधन और पैसे वाले लोग सोचते हैं कि वे अदालत को मजाक में ले लेंगे और ऐसा बिल्कुल नहीं होगा.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि 'कॉर्पोरेट भारत को पता होना चाहिए कि अगर हमारे आदेशों को पलटा जा रहा है, तो उन्हें पता होना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट है जो देख रहा है. अब हम बस यही कहना चाहते हैं…' इस पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. उन्होंने फिनोलेक्स केबल्स की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) से संबंधित एनसीएलएटी पीठ के 13 अक्टूबर के फैसले को उसकी योग्यता पर विचार किए बिना रद्द कर दिया.

पीठ ने कहा कि एनसीएलएटी के सदस्य, न्यायमूर्ति अशोक भूषण नहीं, बल्कि उनके अलावा, एक सड़ांध है और एनसीएलएटी अब सड़ांध पर उतर आया है और यह मामला उस सड़ांध का एक उदाहरण है. पीठ ने कहा कि हमारा प्रथम दृष्टया मानना है कि एनसीएलएटी के सदस्य सही तथ्यों का खुलासा करने में विफल रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा एनसीएलएटी सदस्यों के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करना दुर्लभ है.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत का मानना है कि इसकी गरिमा बहाल हो यह सुनिश्चित करने के लिए आदेश पारित करना जरूरी है. पीठ ने कहा कि पार्टियों को उसके आदेशों को टालने के लिए कुटिल तरीकों का सहारा लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत को इस बात पर गंभीर संदेह है कि मामला एनसीएलएटी में कैसे आगे बढ़ा है और हमें यहां सदस्यों की ईमानदारी पर गंभीर संदेह है.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मामले की सुनवाई करने वाला एनसीएलएटी सदस्य इस मामले में पेश हो रहा था और उसे खुद को अलग कर लेना चाहिए था और फिर वह सुप्रीम कोर्ट में भी पेश हुआ. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 'हम निर्देश देते हैं कि 13 अक्टूबर को एनसीएलएटी के फैसले को योग्यता पर विचार किए बिना रद्द कर दिया जाए. अपील पर जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ दोबारा सुनवाई करेगी....'

उन्होंने आगे कहा कि 'प्रथम दृष्टया हमारा मानना है कि न्यायिक और तकनीकी सदस्य के खिलाफ अदालत की अवमानना के लिए कार्रवाई की जा सकती है... इस प्रकार हम यह दिखाने के लिए शोकेस नोटिस जारी करते हैं कि उनके खिलाफ अवमानना क्यों नहीं की जानी चाहिए. उन्हें 30 अक्टूबर, सुबह 10:30 बजे अदालत में उपस्थित होने दें...' एनसीएलएटी का आदेश फिनोलेक्स केबल्स की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) और कंपनी के प्रबंधन नियंत्रण पर प्रकाश छाबड़िया और दीपक छाबड़िया के कानूनी झगड़े से संबंधित था.

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