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Pegasus issue : केंद्र के हलफनामे पर SC में कहा-सीमित जानकारी दी गई

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Published : Aug 16, 2021, 11:58 AM IST

Updated : Aug 16, 2021, 3:06 PM IST

पेगासस जासूसी मामले को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है, वहीं, सुप्रीम कोर्ट में भी कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं. सोमवार को याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने आरोपों से इनकार किया. जानिए सुनवाई के दौरान सरकार ने क्या कहा, सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणी की.

उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कथित पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली विभिन्न याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई की. पेगासस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए अपने दो पन्नों के हलफनामे में केंद्र ने याचिकाकर्ताओं द्वारा सरकार के खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से इनकार किया है.

केंद्र सरकार की ओर से साफ कहा गया कि पत्रकारों, राजनेताओं, कर्मचारियों पर जासूसी करने के लिए स्पाइवेयर का इस्तेमाल किए जाने संबंधी आरोपों वाली याचिकाएं अनुमानों पर आधारित हैं, आरोपों में कोई दम नहीं है फिर भी कुछ निहित स्वार्थों के कारण फैलाए गए गलत तथ्यों को दूर करने के लिए विशेषज्ञों का पैनल गठित किया जाएगा.

केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि पेगासस जासूसी के आरोपों में 'छिपाने के लिये कुछ भी नहीं' है और वह इस मामले के सभी पहलुओं के निरीक्षण के लिये प्रमुख विशेषज्ञों की एक विशेषज्ञ समिति बनाएगा.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की तीन सदस्यीय पीठ को सरकार ने बताया कि यह मुद्दे 'काफी तकनीकी' हैं और इसके सभी पहलुओं की विशेषज्ञों द्वारा जांच की जरूरत है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 'हम एक संवेदनशील मामले से निपट रहे हैं लेकिन इसे सनसनीखेज बनाने की कोशिश की जा रही है. इस मामले के राष्ट्रीय सुरक्षा निहितार्थ होंगे. यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभाव पड़ेगा.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया, 'छिपाने के लिये कुछ भी नहीं है. विशेषज्ञों की समिति से इसकी जांच की जरूरत है. यह बेहत तकनीकी मुद्दा है. हम इस क्षेत्र के प्रमुख तटस्थ विशेषज्ञों की नियुक्ति करेंगे.'

सिब्बल ने ये दी दलील

जासूसी के आरोपों की जांच को लेकर याचिका दायर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार का हलफनामा यह नहीं बताता कि सरकार या उसकी एजेंसियों ने जासूसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया या नहीं.

सुनवाई के दौरान सिब्बल ने कहा, 'हम नहीं चाहते कि सरकार, जिसने पेगासस का इस्तेमाल किया हो या उसकी एजेंसी जिसने हो सकता है इसका इस्तेमाल किया हो, अपने आप एक समिति गठित करे.'

इससे पहले, केंद्र ने हलफनामा दायर कर सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि पेगासस जासूसी के आरोपों को लेकर स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाएं 'अटकलों, अनुमानों' और मीडिया में आई अपुष्ट खबरों पर आधारित हैं.

हलफनामे में सरकार ने कहा कि केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव पहले ही कथित पेगासस जासूसी मुद्दे पर संसद में उसका रुख स्पष्ट कर चुके हैं.

हलफनामे में कहा गया, 'इस याचिका और संबंधित याचिकाओं के अवलोकन भर से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे अटकलों, अनुमानों तथा अन्य अपुष्ट मीडिया खबरों तथा अपूर्ण या अप्रमाणिक सामग्री पर आधारित हैं.

हलफनामे में कहा गया कि कुछ निहित स्वार्थों द्वारा दिए गए किसी भी गलत विमर्श को दूर करने और उठाए गए मुद्दों की जांच करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हलफनामे में पूरी जानकारी नहीं

मुख्य न्यायाधीश ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि यह हलफनामा सीमित है. जब तक आप जानकारी प्रस्तुत नहीं करते सुनवाई नहीं हो सकती है. कोर्ट ने कहा कि हम आपको कमेटी बनाने और विस्तृत हलफनामा के लिए समय दे सकते है. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल में नियुक्तियों के लिए केंद्र को 10 दिन का समय दिया है. मामले में कल भी सुनवाई जारी रहेगी.

शीर्ष अदालत ने 10 अगस्त को कुछ याचिकाकर्ताओं द्वारा सोशल मीडिया पर जासूसी मुद्दे पर 'समानांतर कार्यवाही और बहस' को अपवादस्वरूप लेते हुए कहा था कि अनुशासन कायम रखा जाना चाहिए और याचिकाकर्ताओं को 'व्यवस्था में थोड़ा भरोसा होना चाहिए.'

उच्चतम न्यायालय इजराइल के जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस से कथित तौर पर जासूसी कराए जाने के मामले की स्वतंत्र जांच कराने के अनुरोध वाली अनेक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. इनमें से एक याचिका 'एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया' ने भी दाखिल की है. ये याचिकाएं इजराइली फर्म एनएसओ के स्पाइवेयर पेगासस का उपयोग करके प्रतिष्ठित नागरिकों, राजनीतिज्ञों और पत्रकारों पर सरकारी एजेंसियों द्वारा कथित तौर पर जासूसी की रिपोर्ट से संबंधित हैं.

एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने बताया है कि 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके निगरानी के लिए संभावित लक्ष्यों की सूची में थे.

गौरतलब है कि पांच अगस्त को मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि पेगासस से जासूसी कराए जाने संबंधी खबरें अगर सही हैं तो यह आरोप 'गंभीर प्रकृति' के हैं.' न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं से यह भी जानना चाहा था कि क्या उन्होंने इस मामले में कोई आपराधिक शिकायत दर्ज कराने का प्रयास किया. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकारों और दूसरों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित करने का अनुरोध किया है.

क्या है पेगासस स्पाइवेयर ?

पेगासस एक पावरफुल स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर है, जो मोबाइल और कंप्यूटर से गोपनीय एवं व्यक्तिगत जानकारियां चुरा लेता है और उसे हैकर्स तक पहुंचाता है. इसे स्पाइवेयर कहा जाता है यानी यह सॉफ्टवेयर आपके फोन के जरिये आपकी जासूसी करता है. इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप का दावा है कि वह इसे दुनिया भर की सरकारों को ही मुहैया कराती है. इससे आईओएस या एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम चलाने वाले फोन को हैक किया जा सकता है. फिर यह फोन का डेटा, ई-मेल, कैमरा, कॉल रेकॉर्ड और फोटो समेत हर एक्टिविटी को ट्रेस करता है.

क्या कहता है भारत का कानून ?

भारत में इंडियन टेलिग्राफ एक्ट, 1885 के सेक्शन 5(2) के मुताबिक, केंद्र और राज्य सरकारों के पास सिर्फ फोन टैपिंग कराने का अधिकार है. अगर किसी सरकारी विभाग जैसे पुलिस या आयकर विभाग को लगता है कि किसी हालत में कानून का उल्लंघन हो रहा है, तो वह फोन टैपिंग करा सकती है. आईटी एक्ट के तहत, मोबाइल या कंप्यूटर में किसी वायरस और सॉफ्टवेयर के तहत सूचना लेना गैरकानूनी है. यह हैकिंग की श्रेणी में आता है, जो अपराध है. आईटी मंत्रालय ने अपनी सफाई में कहा कि सरकार अपने सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार के रूप में निजता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.

पढ़ें- पेगासस मामले पर बोला सुप्रीम कोर्ट, अगर मीडिया रिपोर्ट सही हैं तो आरोप गंभीर हैं

पढ़ें- पेगासस मामले में याचिका दायर करने में देरी क्यों, पुलिस में शिकायत क्यों नहीं की : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कथित पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली विभिन्न याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई की. पेगासस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए अपने दो पन्नों के हलफनामे में केंद्र ने याचिकाकर्ताओं द्वारा सरकार के खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से इनकार किया है.

केंद्र सरकार की ओर से साफ कहा गया कि पत्रकारों, राजनेताओं, कर्मचारियों पर जासूसी करने के लिए स्पाइवेयर का इस्तेमाल किए जाने संबंधी आरोपों वाली याचिकाएं अनुमानों पर आधारित हैं, आरोपों में कोई दम नहीं है फिर भी कुछ निहित स्वार्थों के कारण फैलाए गए गलत तथ्यों को दूर करने के लिए विशेषज्ञों का पैनल गठित किया जाएगा.

केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि पेगासस जासूसी के आरोपों में 'छिपाने के लिये कुछ भी नहीं' है और वह इस मामले के सभी पहलुओं के निरीक्षण के लिये प्रमुख विशेषज्ञों की एक विशेषज्ञ समिति बनाएगा.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की तीन सदस्यीय पीठ को सरकार ने बताया कि यह मुद्दे 'काफी तकनीकी' हैं और इसके सभी पहलुओं की विशेषज्ञों द्वारा जांच की जरूरत है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 'हम एक संवेदनशील मामले से निपट रहे हैं लेकिन इसे सनसनीखेज बनाने की कोशिश की जा रही है. इस मामले के राष्ट्रीय सुरक्षा निहितार्थ होंगे. यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभाव पड़ेगा.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया, 'छिपाने के लिये कुछ भी नहीं है. विशेषज्ञों की समिति से इसकी जांच की जरूरत है. यह बेहत तकनीकी मुद्दा है. हम इस क्षेत्र के प्रमुख तटस्थ विशेषज्ञों की नियुक्ति करेंगे.'

सिब्बल ने ये दी दलील

जासूसी के आरोपों की जांच को लेकर याचिका दायर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार का हलफनामा यह नहीं बताता कि सरकार या उसकी एजेंसियों ने जासूसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया या नहीं.

सुनवाई के दौरान सिब्बल ने कहा, 'हम नहीं चाहते कि सरकार, जिसने पेगासस का इस्तेमाल किया हो या उसकी एजेंसी जिसने हो सकता है इसका इस्तेमाल किया हो, अपने आप एक समिति गठित करे.'

इससे पहले, केंद्र ने हलफनामा दायर कर सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि पेगासस जासूसी के आरोपों को लेकर स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाएं 'अटकलों, अनुमानों' और मीडिया में आई अपुष्ट खबरों पर आधारित हैं.

हलफनामे में सरकार ने कहा कि केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव पहले ही कथित पेगासस जासूसी मुद्दे पर संसद में उसका रुख स्पष्ट कर चुके हैं.

हलफनामे में कहा गया, 'इस याचिका और संबंधित याचिकाओं के अवलोकन भर से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे अटकलों, अनुमानों तथा अन्य अपुष्ट मीडिया खबरों तथा अपूर्ण या अप्रमाणिक सामग्री पर आधारित हैं.

हलफनामे में कहा गया कि कुछ निहित स्वार्थों द्वारा दिए गए किसी भी गलत विमर्श को दूर करने और उठाए गए मुद्दों की जांच करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हलफनामे में पूरी जानकारी नहीं

मुख्य न्यायाधीश ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि यह हलफनामा सीमित है. जब तक आप जानकारी प्रस्तुत नहीं करते सुनवाई नहीं हो सकती है. कोर्ट ने कहा कि हम आपको कमेटी बनाने और विस्तृत हलफनामा के लिए समय दे सकते है. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल में नियुक्तियों के लिए केंद्र को 10 दिन का समय दिया है. मामले में कल भी सुनवाई जारी रहेगी.

शीर्ष अदालत ने 10 अगस्त को कुछ याचिकाकर्ताओं द्वारा सोशल मीडिया पर जासूसी मुद्दे पर 'समानांतर कार्यवाही और बहस' को अपवादस्वरूप लेते हुए कहा था कि अनुशासन कायम रखा जाना चाहिए और याचिकाकर्ताओं को 'व्यवस्था में थोड़ा भरोसा होना चाहिए.'

उच्चतम न्यायालय इजराइल के जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस से कथित तौर पर जासूसी कराए जाने के मामले की स्वतंत्र जांच कराने के अनुरोध वाली अनेक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. इनमें से एक याचिका 'एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया' ने भी दाखिल की है. ये याचिकाएं इजराइली फर्म एनएसओ के स्पाइवेयर पेगासस का उपयोग करके प्रतिष्ठित नागरिकों, राजनीतिज्ञों और पत्रकारों पर सरकारी एजेंसियों द्वारा कथित तौर पर जासूसी की रिपोर्ट से संबंधित हैं.

एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने बताया है कि 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके निगरानी के लिए संभावित लक्ष्यों की सूची में थे.

गौरतलब है कि पांच अगस्त को मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि पेगासस से जासूसी कराए जाने संबंधी खबरें अगर सही हैं तो यह आरोप 'गंभीर प्रकृति' के हैं.' न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं से यह भी जानना चाहा था कि क्या उन्होंने इस मामले में कोई आपराधिक शिकायत दर्ज कराने का प्रयास किया. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकारों और दूसरों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित करने का अनुरोध किया है.

क्या है पेगासस स्पाइवेयर ?

पेगासस एक पावरफुल स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर है, जो मोबाइल और कंप्यूटर से गोपनीय एवं व्यक्तिगत जानकारियां चुरा लेता है और उसे हैकर्स तक पहुंचाता है. इसे स्पाइवेयर कहा जाता है यानी यह सॉफ्टवेयर आपके फोन के जरिये आपकी जासूसी करता है. इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप का दावा है कि वह इसे दुनिया भर की सरकारों को ही मुहैया कराती है. इससे आईओएस या एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम चलाने वाले फोन को हैक किया जा सकता है. फिर यह फोन का डेटा, ई-मेल, कैमरा, कॉल रेकॉर्ड और फोटो समेत हर एक्टिविटी को ट्रेस करता है.

क्या कहता है भारत का कानून ?

भारत में इंडियन टेलिग्राफ एक्ट, 1885 के सेक्शन 5(2) के मुताबिक, केंद्र और राज्य सरकारों के पास सिर्फ फोन टैपिंग कराने का अधिकार है. अगर किसी सरकारी विभाग जैसे पुलिस या आयकर विभाग को लगता है कि किसी हालत में कानून का उल्लंघन हो रहा है, तो वह फोन टैपिंग करा सकती है. आईटी एक्ट के तहत, मोबाइल या कंप्यूटर में किसी वायरस और सॉफ्टवेयर के तहत सूचना लेना गैरकानूनी है. यह हैकिंग की श्रेणी में आता है, जो अपराध है. आईटी मंत्रालय ने अपनी सफाई में कहा कि सरकार अपने सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार के रूप में निजता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.

पढ़ें- पेगासस मामले पर बोला सुप्रीम कोर्ट, अगर मीडिया रिपोर्ट सही हैं तो आरोप गंभीर हैं

पढ़ें- पेगासस मामले में याचिका दायर करने में देरी क्यों, पुलिस में शिकायत क्यों नहीं की : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated : Aug 16, 2021, 3:06 PM IST
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