नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2017 के चुनाव में गन्ना किसानों को 14 दिन के भीतर भुगतान के वायदे और भुगतान न होने की स्थिति में ब्याज देने के दावों की पोल अब आंकड़े और किसान ही खोलने लगे हैं. सरकार में आने से पहले किए वादे को प्रधानमंत्री मोदी साढ़े चार साल बाद भी पूरा नहीं कर सके, नतीजतन अब गन्ना किसानों में रोष व्याप्त है और तीन कृषि कानूनों के विरोध में सात महीने से चल रहे आंदोलन से अलग एक और आंदोलन दस्तक देने लगा है.
सबसे पहला बिगुल उत्तर प्रदेश से फूंके जाने की तैयारी शुरू हो चुकी है, क्योंकि यूपी न केवल गन्ना उत्पादन में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखता है, बल्कि यहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव भी होने हैं. जाहिर तौर पर गन्ना मिलों में अपने बकाया पैसे फंसे होने से परेशान किसानों ने सरकार के सामने अपनी मांग रखते हुए तेवर भी दिखाने शुरू कर दिए हैं और गन्ना भुगतान और संबंधित मुद्दों पर जुलाई में बड़ा आंदोलन छेड़ने की चेतावनी भी सरकार को दे दी है.
उत्तर प्रदेश किसान मजदूर मोर्चा एवं राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के मुखिया सरदार वीएम सिंह ने इस संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखा है, जिसमें किसान नेता ने सरकार को वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के किए वादे की याद दिलाई है.
वादे के मुताबिक गन्ने का भुगतान समय पर न होने की स्थिति में किसानों को ब्याज देने की बात कही गई थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अब उत्तर प्रदेश किसान मजदूर मोर्चा ने 6 से 12 जुलाई तक जिला और तहसील स्तर पर धरना देने का आवाह्न किया है, जबकि मांगे न माने जाने की परिस्थिति में बड़ी संख्या में गन्ना किसान लखनऊ कूच करेंगे. किसानों की मांग में गन्ना वर्ष 2020-21 का पूरा बकाया भुगतान तत्काल होने के अलावा 2011 से अब तक के बकाए पर 15% प्रति वर्ष के हिसाब से ब्याज की मांग भी शामिल है.
किसान नेता वीएम सिंह पत्र में मुख्यमंत्री को 26 साल पुरानी गन्ना किसानों को गन्ना मूल्य और ब्याज की लड़ाई का हवाला देते हुए कहते हैं कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद भी वर्ष 2011-12, 2012-13, 2013-14 और 2014-15 में भुगतान के विलंभ पर किसानों को 15% प्रति वर्ष का ब्याज नहीं दिया गया है.
वीएम सिंह आगे बताते हैं कि पिछले 4 वर्षो में डीजल, कीटनाशक, खाद, मजदूरी, बिजली इत्यादि की कीमतें लगातार बढ़ी हैं, लेकिन उसके मुताबिक तो छोड़ो गन्ने के रेट में 1 पैसे की वृद्धि नहीं कि गई.
उत्तर प्रदेश के गन्ना संस्थान के मुताबिक आज गन्ना उत्पादन की लागत 300 रुपये प्रति क्विंटल है और सरकार लागत का डेढ़ गुना देने की बात करती है. इसके अनुसार गन्ने का प्रति क्विंटल रेट 450 होना चाहिए, लेकिन किसानों को पिछले 4 साल से वही रेट 315-325 रुपये प्रति क्विंटल दिया जा रहा है.
महाराष्ट्र और हरियाणा में भी कमोबेश तस्वीर यही है. हरियाणा सरकार ने 10 जुलाई तक गन्ना किसानों के लगभग 420 करोड़ बकाये का पूरा भुगतान करने की बात कही है. महाराष्ट्र में गन्ना किसानों की बकाया राशी 4200 करोड़ के आस पास है.
भारत चीनी के उत्पादन में ब्राजील के बाद विश्व में दूसरा सबसे बड़ा देश है और खपत के मामले में भी, लेकिन इसके बावजूद गन्ना खेती में लगे किसान हर वर्ष पहले गन्ने के उठाव और उसके बाद गन्ना मिलों से भुगतान के लिए परेशान रहता है.
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सरकार के तमाम दावों के बैजूद गन्ना बहुल राज्यों में हालात इस वर्ष भी कुछ ऐसे ही हैं. देश का चीनी उत्पादन वार्षिक ₹ 80,000 करोड़ का उद्योग है, लेकिन इसमें किसानों को ज्यादा लाभ की बजाय उनके पैसे हर वर्ष चीनी मिलों के यहां बकाया ही रहते हैं. यदि इस वर्ष की ही बात करें, तो उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार गन्ना वर्ष 2020-21, जो नवंबर से शुरू हुआ उसमें ही लगभग ₹ 25000 करोड़ रुपये बकाया है.
देश में गन्ने की खेती में उत्तर प्रदेश अग्रणी है. वहीं महाराष्ट्र और कर्नाटक क्रमश दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं. इसके अलावा तमिलनाडु, पंजाब और हरियाणा में भी गन्ने की खेती की जाती है. अकेले उत्तर प्रदेश देश के कुल सिंचित भूभाग का 51% हिस्सा गन्ने की खेती में हिस्सेदारी रखता है और कुल चीनी उत्पाद का 38% उत्तर प्रदेश से ही आता है. राज्य में योगी सरकार के तमाम दावों के बावजूद यहां गन्ना किसानों का बकाया मई माह तक अनुमानित ₹ 12000 करोड़ के आस पास था.
सत्र अभी चल रहा है और भुगतान भी लेकिन प्रमुख समस्या समय से भुगतान की है और ऐसा न होने पर ब्याज मिलने की है. समय पर भुगतान की मांग के साथ जिला स्तर पर किसान विरोध प्रदर्शन भी करते रहे हैं.
केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों के भुगतान की समस्या के निवारण के लिए नीति आयोग की सिफारिश पर एक उच्चस्तरीय कमिटी का गठन भी किया था, लेकिन इसके बावजूद समस्या अभी भी बनी हुई है.