शिमला: हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के डलहौजी शहर का नाम बदलने की मांग फिर से उठी है. इस बार सुब्रह्मण्यम स्वामी ने हिमाचल के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय के नाम चिट्ठी लिख ये मांग उठाई है. स्वामी ने लिखा है कि डलहौजी का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर सुभाष नगर रखा जाए.
डलहौजी का नाम बदलने की मांग
बता दें कि नेताजी सुभाष चंद्र बोसवर्ष 1937 में डलहौजी आए थे. राज्यसभा सांसद स्वामी ने हिमाचल के राज्यपाल को भेजी चिट्ठी में लिखा है कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के वकील अजय जग्गा ने इस बारे में काफी पहले मांग उठाई थी. फिर हिमाचल के पूर्व सीएम शांता कुमार ने भी अपने कार्यकाल में 1992 में अधिसूचना जारी की थी. यह बात अलग है कि बाद में कांग्रेस सरकार ने वो अधिसूचना रद्द कर दी थी. स्वामी ने 1992 की अधिसूचना को फिर से लागू करने की मांग उठाई है.
वहीं, राजभवन की तरफ से बताया गया है कि डलहौजी का नाम बदलने से जुड़ी राज्यसभा सांसद की चिट्ठी मिली है. इसे तय प्रक्रिया के बाद राज्य सरकार को फॉरवर्ड किया जाएगा. इससे पहले इसी साल जनवरी महीने में भरमौर के कुछ वकीलों ने एसडीएम के माध्यम से सीएम जयराम ठाकुर को ज्ञापन सौंपा था. इस ज्ञापन में भी शहर का नाम सुभाष नगर किए जाने का आग्रह था.
चंबा जिले का ऐतिहासिक शहर है डलहौजी
डलहौजी शहर चंबा जिले का ऐतिहासिक शहर है. यह पर्यटकों की भी पसंद है. यहां साल भर पर्यटक प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने के लिए आते हैं. शहर के इतिहास पर नजर डालें तो यह वर्ष 1854 में अस्तित्व में आया था. उस समय ब्रिटिश राज में खूबसूरत पांच पहाड़ियों बैलून, कथलग, पोटरियां, टिहरी और बकरोटा पर इसे बसाया गया. वर्ष 1854 में ब्रिटिश सेना के कर्नल नेपियर ने इस जगह को अपनी सेना और अधिकारियों के लिए हेल्थ रिसोर्ट के रूप में चुना था. डलहौजी पहले पंजाब के गुरदासपुर के तहत था. बाद में वर्ष 1966 में हिमाचल प्रदेश के पुनर्गठन के समय हिमाचल के चंबा में शामिल हो गया.
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तथ्य: कभी भी डलहौजी नहीं आए लॉर्ड डलहौजी
डलहौजी का नाम सर लॉर्ड मैकलियोड के कहने पर 1854 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डलहौजी के नाम पर रखा गया. यह तथ्य भी है कि लॉर्ड डलहौजी कभी भी डलहौजी नहीं आए. बाद के समय में वर्ष 1863 में जीपीओ (जिसे अब गांधी चौक के नाम से भी जाना जाता है) में पहले चर्च सेंट जॉन का निर्माण किया गया. फिर 1870 में डलहौजी में बुल्ज हेड के नाम से पहला होटल बना. यह होटल अब माउंट व्यू के नाम से जाना जाता है. विश्व कवि गुरूदेव रविंद्रनाथ टैगोर वर्ष 1873 में डलहौजी आए और उन्हें गीतांजलि लिखने की प्रेरणा मिली. यही नहीं वर्ष 1884 में रुडयार्ड किपलिंग भी यहां आए थे. वर्ष 1920 में पहली बार एक बड़े जेनरेटर के जरिए बिजली लाई गई.
1937 में स्वास्थ्य लाभ के लिए डलहौजी आए थे बोस
आजादी के मतवाले और देश के महान सपूत नेताजी सुभाष बोस 1937 में यहां स्वास्थ्य लाभ के लिए आए थे. आजादी के बाद 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू डलहौजी के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य पर हुए आयोजन में भाग लेने डलहौजी आए थे. इस शहर में वर्ष 1959 में तिब्बती शरणार्थी भी बसना शुरू हुए थे. बाद में वर्ष 1962, 1988, 2013 में दलाईलामा भी यहां आए. यह शहर पर्यटन के लिए खास पहचान रखता है. चंबा की खूबसूरती निहारने के लिए आने वाला हर सैलानी डलहौजी की यात्रा जरूर करता है.