शिवमोगा: शिक्षक और छात्र का रिश्ता काफी अलग और खास होता है. शिक्षक को भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया जाता है क्योंकि एक शिक्षक चाहे तो वे अपने छात्रों और आसपास के लोगों की जिंदगी में बड़ा बदलाव ला सकता है. हर किसी की जिंदगी में एक गुरु की बहुत बड़ी भूमिका होती है. इसका एक बड़ा उदाहरण कर्नाटक के शिवमोगा जिले के वलूर गांव में देखने को मिला है. जहां उसी गांव के एक स्कूल में 16 सालों से पढ़ा रहे एक शिक्षक संतोष कंचन के विदाई समारोह आयोजित किया गया. ग्रामीणों और छात्रों ने शिक्षक को उपहार में एक बाइक दी है.
शिक्षक ने ग्रामीणों के दिल में बनाई जगह : बता दें, वलूर गांव के एक स्कूल में शिक्षक संतोष कंचन की पोस्टिंग करीब 16 साल पहले हुई थी. अपने कार्यकाल के दौरान शिक्षक संतोष कंचन ने छात्रों और गांव के लोगों के दिल में अपने लिए अपने व्यवहारों से एक अलग ही जगह बना ली. संतोष कंचन ने वलूर गांव में कई वर्षों तक शिक्षक के रूप में कार्य किया. वह स्कूल अवधि के दौरान ही नहीं बल्कि दिन-रात बच्चों को पढ़ाते थे. संतोष कंचन ने आपातकालीन परिस्थितियों में ग्रामीणों की भी मदद की.
ट्रांसफर से लोगों को हुआ दुख : बीते दिनों शिक्षक संतोष कंचन का ट्रांसफर गया है. इस वजह से विद्यालय परिसर में उनके लिए भावपूर्ण विदाई समारोह का आयोजन किया गया. छात्रों और ग्रामीणों का दिल जीतने वाले शिक्षक के ट्रांसफर से वहां के लोग काफी दुखी हुए साथ ही शिक्षक को भारी दिल के साथ विदा किया. ऐसे में ग्रामीणों ने गिफ्ट के तौर पर उनके लिए चंदा इकट्ठा करके नई बाइक खरीदी और गांव से विदाई के तौर पर भेंट की.
जरुरतों में मदद की थी काफी मदद : दरअसल, ग्रामीणों का कहना है कि संतोष ने हमारे गांव के स्कूल में 16 साल तक शिक्षक के रूप में काम किया है. जब हमारे गांव में कोई वाहन नहीं थे, तब उनकी बाइक ने हमारी सभी जरूरतों में मदद की थी. उनकी बाइक गांव के लिए बाइक एम्बुलेंस थी. उन्होंने दिन-रात ग्रामीणों की मदद की. हमारे बच्चे जो यहां पढ़ते थे वे अब उच्च अभ्यास के लिए अन्य स्थानों पर चले गए हैं. यह सब शिक्षक संतोष के कारण है. हम उन्हें कभी नहीं भूलेंगे.
शिक्षक ने जताया आभार : ईटीवी भारत से फोन पर बात करने वाले शिक्षक संतोष कंचन ने कहा कि यह विदाई कार्यक्रम मेरे जीवन का अविस्मरणीय हिस्सा है. मेरे करियर की शुरुआत 2007 में इसी वलूर गांव से हुई थी. मैंने सोचा नहीं था कि सभी ग्रामीण एक साथ आएंगे और यह उपहार देंगे. वलूर में तक से लेकर अभी भी कोई उचित सड़क नहीं है. यह गांव, जिसमें केवल 20 घर हैं, अभी भी अभयारण्य क्षेत्र में है. मुख्य सड़क से लगभग 6 किमी दूर है. मैंने जो बाइक ली थी उसका उपयोग एम्बुलेंस की तरह किया जाता था. 2012 में गांव में बिजली आ गई है लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर की अभी भी कमी है.
कर्ज चुकाने के लिए तैयार : गांव के लोग गरीब वर्ग के हैं, इसलिए मैंने कहा कि फेयरवेल पार्टी जैसा प्रोग्राम न करें. शिक्षक संतोष कंचन ने आगे कहा कि वलूर के इस स्कूल में 15 छात्र हैं और केवल दो शिक्षक हैं. मैं गांव वालों के प्यार के आगे हार गया हूं. मैं उनके प्यार की कीमत नहीं चुका सकता. मैं पारिवारिक कारणों से स्थानांतरण कर रहा हूं. अगर गांव वाले चाहें तो, मैं रविवार को आऊंगा और बच्चों को पढ़ाऊंगा. मैं गांव वालों और बच्चों का कर्ज चुकाने के लिए तैयार हूं.