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भोपाल को तो जानते हैं, भोपालियों को कितना जानते हैं आप, सूरमा अकेले नहीं थे, ये हैं असली भोपाली

भोपाल झीलों का शहर है, नवाबों का शहर है. भोपाल को बसाया राजा भोज ने, भोपाल को बसाने में बेगमों का भी है योगदान. ये सब आपने बीसियों बार सुना होगा. लेकिन अब इस पर गौर कीजिए कि दुनिया के नक्शे पर भोपाल किन भोपालियों की बदौलत आया. ये वो भोपाली हैं जिन्होंने अपनी शिनाख्त के बतौर अपने शहर भोपाल को दर्ज किया. (Story of tiltle Bhopali)(Tiltle Bhopali used by several writers poets)

tiltle bhopali used by several writers poets
असद भोपाली
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Published : Oct 6, 2022, 10:28 PM IST

भोपाल। भोपाल के सूरमाओं के साथ जुड़ा भोपाली टाइटल अपने आपमें सुकून देने वाला वो रोमांच हैं जो हर कोई महसूस नहीं कर सकता. तमाम लोग जो देश-दुनिया के किसी भी हिस्से में बस गए होंगे, लेकिन उनका नाम भोपाली तखल्लुस के साथ ही मुकम्मिल हो सका है. ये शोले के सूरमा भोपाली पर खत्म नहीं होता, भोपाली की कहानी शायर से लेकर सहाफी और तंज मजे से लेकर मैदान- ए- हॉकी तक भोपाली कई और भी हैं.

tiltle bhopali used by several writers poets
असद भोपाली
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असद भोपाली

सूरमा भोपाली से पहले तखल्लुस भोपाली: शोले फिल्म में सूरमा भोपाली का जो कैरेक्टर 'अमां कां जा रिए' बोलता है और आप ठहाका लगाकर हंसते हैं. असल में इस रोल की इंस्पिरेशन जावेद अख्तर साहब को नाहर सिंह से मिली थी, ये आप जानते ही होंगे. लेकिन सूरमा भोपाली से लेकर आज के भोपाली जोक्स तक भोपालियों के जिस अंदाज पर आप अपनी हंसी रोक नहीं पाते ये ज़ुबान, ये अंदाज़ तखल्लुस भोपाली का दिया हुआ था. तखल्लुस भोपाली ने पानदान वाली खाला और गफ्फूर मियां के नाम से दो कैरेक्टर तैयार किए थे जो तंज और मजे के उसी लहजे में बात करते थे जिसे आप आज भोपाली कहते हैं. वैसे सूरमा भोपाली के पहले भी फिल्म अधिकार में प्राण बन्ने खां भोपाली का किरदार निभा चुके थे. लेकिन भोपाली लहजे को शोले और सूरमा भोपाली के जरिए ही पूरी दुनिया में पहचान मिली. बाद में सूरमा भोपाली के नए जमाने के वर्जन के बतौर लईक भोपाली भी आए. लेकिन इनका वजन जरा कम था.

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असद भोपाली

शायर असद भोपाली से मंजर भोपाली तक: उर्दू अदब में भोपाल का नाम बहुत तहजीब से लिया जाता है. और अगर ये कहा जाए कि उर्दू अदब में एक चौथाई काम भोपाल में ही मुकम्मिल हो गया तो गलत नहीं होगा. मशहूर शायर असद भोपाली से शुरू कीजिए फिर शैरी भोपाली जिनकी गजल नूरजहां की आवाज पाकर अमर हो गई. साहिर भोपाली भी उसी दौर के शायर. कुछ बी ग्रेड फिल्मों में इनकी शायरी इस्तेमाल भी हुई. वकील भोपाली, शाहिद भोपाली, अर्शी भोपाली, ज़ुल्फी भोपाली, मोहसिन भोपाली तक जो पाकिस्तान में रहे लेकिन उम्र भर भोपाली बनकर. आखिरी सांस भी भोपाली पहचान के साथ ही ली. इनमें भोपाल से जुड़े शायरों के दो अजीम नाम ताज भोपाली और कैफ भोपाली का है. इसी कड़ी में वो नाम जिनसे आज की पीढ़ी बावस्ता है वो हैं मंजर भोपाली.

शायरी में भोपाली बेहिसाब: भोपाली शायरों की फेहरिस्त लंबी है. अशरफ नदीम भोपाली का नाम सुना है आपने. सरवत जैदी भोपाली को जानते हैं. सहर भोपाली के साथ दखलन भोपाली भी शायर हुए हैं. अजमद भोपाली, अब्दुल मजीद भोपाली, जलील अनवर भोपाली, शमीमुद्दीन सैफ भोपाली, नासिर भोपाली, नुसरुद्दीन अनवर भोपाली, बेदार भोपाली देखिए तो सही भोपाल में भोपाली शायरों की भी फौज हुआ करती थी.

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असद भोपाली

सूरमा भोपाली ही नहीं कॉमेडियन जगदीप के और भी कई किरदार हैं यादगार

शकीला बानो ने भोपाली होना क्यों चुना : इन तमाम पुरुषों में एक महिला भी थीं कव्वाल से पहले शायरा. शकीला बानों भोपाली. भोपाल का कर्ज इस बेटी ने इस तरह से अदा किया कि मरते दम तक अपने नाम के साथ भोपाली जोड़े रही शकीला. देश दुनिया में जहां गई भोपाली बनकर. हॉकी प्लेयर में हबीब भोपाली और आरिफ भोपाली दो चर्चित नाम हुए. इनमें से आरिफ भोपाली तो पाकिस्तान में बस गए, लेकिन वहां भी रहे तो भोपाली बनकर.

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असद भोपाली

ये हैं खालिस भोपाली पत्रकार: भोपाल में पैदा होने की वजह से या यहां बस जाने की वजह से आप भोपाली पत्रकार नहीं हो जाते. इन पत्रकारों से सीखिए कि भोपाली पत्रकार होने की शर्त क्या है. इरफान भोपाली जिन्होंने भोपाल के इतिहास पर बहुत काम किया. रहमान खान भोपाली विंध्याचल नाम से अखबार निकाला करते थे. अजमत भोपाली ने नया दौर अखबार निकाला. बासित भोपाली शायर भी थे और सहाफी भी इनका मशहूर शेर था 'सारा आलम आईना, बासित जैसी निगाहें वैसे नजारे'. फरहत भोपाली कायनात नाम से मैगज़ीन निकाला करते थे. इसी फेहरिस्त में थे नकवी भोपाली जिन्होंने सरमाया मैगज़ीन निकाली.

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सूरमा भोपाली

बरकतउल्ला भोपाली से कौन नहीं वाकिफ: भारत के पहले प्रधानमंत्री भी कहे जाते हैं बरकतउल्ला भोपाली. असल में पहली हिंदुस्तानी सरकार 1015 में अफगानिस्तान में बनी थी हांलाकि, ये हिंदुस्तान की अस्थाई सरकार थी. जिसमें मौलवी बरकतउल्ला भोपाली प्रधानमंत्री थे. भोपाल में ही जन्मे यहीं तरबीयत मिली और यहीं पूरी हुई पढ़ाई भी भोपाली तो नाम के साथ आना ही था.

भोपाली से मेरा वजूद: देश दुनिया में आज की पीढ़ी के बीच शायर मंजर भोपाली की बदौलत भोपाल सुर्खियां पाए हुए है. भोपाली ना हुए होते तो क्या फर्क होता. मंज़र भोपाली से जब ये सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि- "मेरा वजूद भोपाली होने में है. मैं कुछ नहीं हूं अगर भोपाली मेरे नाम से हटा लिया जाए. इसी पहचान के साथ मैं दो सौ साल पुरानी उर्दू अदब की जो तहज़ीब है उसकी मशाल थाम सकता हूं. उर्दू अदब की जो तहज़ीब असद भोपाली, ताज भोपाली, कैफी भोपाली जैसे शायरों से आती है". (Story of tiltle Bhopali)(Tiltle Bhopali used by several writers poets)

भोपाल। भोपाल के सूरमाओं के साथ जुड़ा भोपाली टाइटल अपने आपमें सुकून देने वाला वो रोमांच हैं जो हर कोई महसूस नहीं कर सकता. तमाम लोग जो देश-दुनिया के किसी भी हिस्से में बस गए होंगे, लेकिन उनका नाम भोपाली तखल्लुस के साथ ही मुकम्मिल हो सका है. ये शोले के सूरमा भोपाली पर खत्म नहीं होता, भोपाली की कहानी शायर से लेकर सहाफी और तंज मजे से लेकर मैदान- ए- हॉकी तक भोपाली कई और भी हैं.

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असद भोपाली
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असद भोपाली

सूरमा भोपाली से पहले तखल्लुस भोपाली: शोले फिल्म में सूरमा भोपाली का जो कैरेक्टर 'अमां कां जा रिए' बोलता है और आप ठहाका लगाकर हंसते हैं. असल में इस रोल की इंस्पिरेशन जावेद अख्तर साहब को नाहर सिंह से मिली थी, ये आप जानते ही होंगे. लेकिन सूरमा भोपाली से लेकर आज के भोपाली जोक्स तक भोपालियों के जिस अंदाज पर आप अपनी हंसी रोक नहीं पाते ये ज़ुबान, ये अंदाज़ तखल्लुस भोपाली का दिया हुआ था. तखल्लुस भोपाली ने पानदान वाली खाला और गफ्फूर मियां के नाम से दो कैरेक्टर तैयार किए थे जो तंज और मजे के उसी लहजे में बात करते थे जिसे आप आज भोपाली कहते हैं. वैसे सूरमा भोपाली के पहले भी फिल्म अधिकार में प्राण बन्ने खां भोपाली का किरदार निभा चुके थे. लेकिन भोपाली लहजे को शोले और सूरमा भोपाली के जरिए ही पूरी दुनिया में पहचान मिली. बाद में सूरमा भोपाली के नए जमाने के वर्जन के बतौर लईक भोपाली भी आए. लेकिन इनका वजन जरा कम था.

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असद भोपाली

शायर असद भोपाली से मंजर भोपाली तक: उर्दू अदब में भोपाल का नाम बहुत तहजीब से लिया जाता है. और अगर ये कहा जाए कि उर्दू अदब में एक चौथाई काम भोपाल में ही मुकम्मिल हो गया तो गलत नहीं होगा. मशहूर शायर असद भोपाली से शुरू कीजिए फिर शैरी भोपाली जिनकी गजल नूरजहां की आवाज पाकर अमर हो गई. साहिर भोपाली भी उसी दौर के शायर. कुछ बी ग्रेड फिल्मों में इनकी शायरी इस्तेमाल भी हुई. वकील भोपाली, शाहिद भोपाली, अर्शी भोपाली, ज़ुल्फी भोपाली, मोहसिन भोपाली तक जो पाकिस्तान में रहे लेकिन उम्र भर भोपाली बनकर. आखिरी सांस भी भोपाली पहचान के साथ ही ली. इनमें भोपाल से जुड़े शायरों के दो अजीम नाम ताज भोपाली और कैफ भोपाली का है. इसी कड़ी में वो नाम जिनसे आज की पीढ़ी बावस्ता है वो हैं मंजर भोपाली.

शायरी में भोपाली बेहिसाब: भोपाली शायरों की फेहरिस्त लंबी है. अशरफ नदीम भोपाली का नाम सुना है आपने. सरवत जैदी भोपाली को जानते हैं. सहर भोपाली के साथ दखलन भोपाली भी शायर हुए हैं. अजमद भोपाली, अब्दुल मजीद भोपाली, जलील अनवर भोपाली, शमीमुद्दीन सैफ भोपाली, नासिर भोपाली, नुसरुद्दीन अनवर भोपाली, बेदार भोपाली देखिए तो सही भोपाल में भोपाली शायरों की भी फौज हुआ करती थी.

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असद भोपाली

सूरमा भोपाली ही नहीं कॉमेडियन जगदीप के और भी कई किरदार हैं यादगार

शकीला बानो ने भोपाली होना क्यों चुना : इन तमाम पुरुषों में एक महिला भी थीं कव्वाल से पहले शायरा. शकीला बानों भोपाली. भोपाल का कर्ज इस बेटी ने इस तरह से अदा किया कि मरते दम तक अपने नाम के साथ भोपाली जोड़े रही शकीला. देश दुनिया में जहां गई भोपाली बनकर. हॉकी प्लेयर में हबीब भोपाली और आरिफ भोपाली दो चर्चित नाम हुए. इनमें से आरिफ भोपाली तो पाकिस्तान में बस गए, लेकिन वहां भी रहे तो भोपाली बनकर.

tiltle bhopali used by several writers poets
असद भोपाली

ये हैं खालिस भोपाली पत्रकार: भोपाल में पैदा होने की वजह से या यहां बस जाने की वजह से आप भोपाली पत्रकार नहीं हो जाते. इन पत्रकारों से सीखिए कि भोपाली पत्रकार होने की शर्त क्या है. इरफान भोपाली जिन्होंने भोपाल के इतिहास पर बहुत काम किया. रहमान खान भोपाली विंध्याचल नाम से अखबार निकाला करते थे. अजमत भोपाली ने नया दौर अखबार निकाला. बासित भोपाली शायर भी थे और सहाफी भी इनका मशहूर शेर था 'सारा आलम आईना, बासित जैसी निगाहें वैसे नजारे'. फरहत भोपाली कायनात नाम से मैगज़ीन निकाला करते थे. इसी फेहरिस्त में थे नकवी भोपाली जिन्होंने सरमाया मैगज़ीन निकाली.

tiltle bhopali used by several writers poets
सूरमा भोपाली

बरकतउल्ला भोपाली से कौन नहीं वाकिफ: भारत के पहले प्रधानमंत्री भी कहे जाते हैं बरकतउल्ला भोपाली. असल में पहली हिंदुस्तानी सरकार 1015 में अफगानिस्तान में बनी थी हांलाकि, ये हिंदुस्तान की अस्थाई सरकार थी. जिसमें मौलवी बरकतउल्ला भोपाली प्रधानमंत्री थे. भोपाल में ही जन्मे यहीं तरबीयत मिली और यहीं पूरी हुई पढ़ाई भी भोपाली तो नाम के साथ आना ही था.

भोपाली से मेरा वजूद: देश दुनिया में आज की पीढ़ी के बीच शायर मंजर भोपाली की बदौलत भोपाल सुर्खियां पाए हुए है. भोपाली ना हुए होते तो क्या फर्क होता. मंज़र भोपाली से जब ये सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि- "मेरा वजूद भोपाली होने में है. मैं कुछ नहीं हूं अगर भोपाली मेरे नाम से हटा लिया जाए. इसी पहचान के साथ मैं दो सौ साल पुरानी उर्दू अदब की जो तहज़ीब है उसकी मशाल थाम सकता हूं. उर्दू अदब की जो तहज़ीब असद भोपाली, ताज भोपाली, कैफी भोपाली जैसे शायरों से आती है". (Story of tiltle Bhopali)(Tiltle Bhopali used by several writers poets)

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