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'घर वालों ने तिलक लगाकर भेजा था, पिछली बार गोली खाई थी, इस बार', नालंदा के कारसेवक ने सुनाई विध्वंस की कहानी

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 1, 2024, 7:53 PM IST

Updated : Jan 1, 2024, 8:48 PM IST

Nalanda Karsevak: 'पहली बार मुझे गोली मार दी गई लेकिन मैंने हार नहीं मानी और दूसरी बार रामलला की जन्मस्थली अयोध्या गया. 6 दिसंबर 1992 को सरयू में स्नान करके वहां की मिट्टी अपने साथ ले गए. सोच लिया था कि विध्वंस करके ही जाएंगे. घरवालों ने आरती तिलक करके हमें भेजा था.' जानें राम मंदिर आंदोलन में भाग लेने वाले नालंदा के कारसेवक प्रमोद कुमार की संघर्ष की कहानी.

नालंदा के कारसेवक प्रमोद कुमार की दास्तां
नालंदा के कारसेवक प्रमोद कुमार की दास्तां
कारसेवक प्रमोद कुमार की आपबीती

पटना: बाबरी विध्वंस के गवाह रहे कारसेवक प्रमोद कुमार आज गुमनामी की जिंदगी जीने को बेबस हैं. मुख्य रूप से बिहार के पटना जिला अंतर्गत मोकामा के मोल्दीयार टोला निवासी रामाश्रय प्रसाद सिंह के पुत्र हैं. प्रमोद कुमार ने पटना के ANS कॉलेज बाढ़ से LLB किया. 1986 में पास आउट हुए थे. प्रमोद बताते हैं कि कैसे उनकी आंखों के सामने उनके साथी और कई लोगों को मौत की नींद सुला दिया गया था. "हमारे घर वालों ने हमें टीका लगाकर कहा अब विध्वंस करके आना नहीं तो गोली खा लेना पर मत आना."

पटना के कारसेवक प्रमोद कुमार की दास्तां: 1985 में बिहार स्टेट बार काउंसिल की ओर से स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था. उसके बाद वे 1987 में बाढ़ सिविल कोर्ट में बतौर वकील के तौर पर प्रशिक्षण शुरू किया जो आज तक जारी है. उनका जन्म सन 10 जनवरी 1955 को हुआ था. उससे पहले वे निजी को कंपनी में काम भी कर चुके हैं.

संभाल चुके हैं कारसेवक संयोजक का प्रभार: उसके बाद वह शुरुआती पढ़ाई के दौर से ही श्री राम जन्मभूमि आंदोलन में 1989 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तहसील के बौद्धिक प्रमुख के रूप में जुड़े. इस दौरान विहिप के अधिकारी तहसील स्तर पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने आया करते थे, तो विहिप के अधिकारियों द्वारा उनके कामों से संतुष्ट होकर कारसेवक संयोजक का प्रभार दिया.

1990 में हुई थी संघर्ष की असल शुरुआत: इसके बाद वे लगातार संघ के कार्यों में जुड़े रहकर लोगों को जागरूक करने का काम किया. प्रमोद कुमार ने बताया कि "सन 1990 में कारसेवकों को अयोध्या बुलाया गया. जिसके बाद बिहार के अपने 101 साथियों के साथ बिहार से अयोध्या के लिए रवाना हुआ. लेकिन उस वक्त के मुलायम सिंह की सरकार को इस बात की जानकारी हो गई थी तो मुगलसराय स्टेशन से अयोध्या जाने वाली रेल और सड़क मार्ग को छावनी में बदल दिया था."

कई कारसेवकों को लिया गया हिरासत में: इस दौरान इनके कई कारसेवकों को मुगलसराय स्टेशन पर हिरासत में ले लिया गया था. जिनमें सिर्फ 7 अलग अलग बोगी में टीका मिटाकर चढ़ गए और प्रतापगढ़ के रास्ते पैदल चलते हुए 3 दिन में अयोध्या पहुंचे थे. जिसके लिए स्थानीय लोगों ने मदद किया था और रात्रि विश्राम प्रतापगढ़ के लोगों ने आर्य समाज मंदिर में ठहराया था. उसके अगले सुबह गांव वालों ने पुलिस से बचने के लिए खेत के जरिए 1 लाख 33 हजार बोल्ट के सहारे खेत नदी पार करते हुए पहुंचे थे.

जब राम भक्तों पर चली थी गोलियां: 30 अक्टूबर 1990 को राज्य सरकार ने जब लाखों की संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों से आए राम भक्तों पर गोली चलवायी, उस समय मस्जिद की गुम्बद पर चढ़कर भगवा ध्वज फहराया गया था, जिसकी अगुवाई प्रमोद कुमार कर रहे थे. गोलियों की बौछार के कारण कई लोगों की मौत हो गई थी, जिससे कारसेवकों ने वापस आकर पुनः बैठक कर 1 नवंबर को प्रतिबद्ध होकर बाबरी मस्जिद के विध्वंस की प्लानिंग की.

पुलिस से धक्का मुक्की: जब वे लोग जाने लगे तो पुलिस वालों ने रोका और कारसेवकों के बीच पुलिस से धक्का मुक्की होने लगी. इस दौरान पुलिस को कारसेवकों पर गोली चलानी पड़ी और उस समय भी कारसेवकों की मौत हो गई. उसके बाद फिर सभी कारसेवकों को रणनीति बनाकार घर भेज दिया गया.

6 दिसंबर को विवादित ढांचा का विध्वंस: उसके बाद 5 दिसंबर 1992 को फिर सभी कारसेवक अपने माध्यमों से अयोध्या पहुंचे. कारसेवकों ने इस बार प्रण किया था कि बाबरी के ढांचा को विध्वंस कर के ही लौटना है. इस कार्य के लिए घर वालों का आशीर्वाद मिला. 6 दिसंबर को सभी कारसेवक श्री राम जन्मभूमि मंदिर कार्य के लिए 12 बजे दोपहर को पहुंचना था लेकिन वे लोग उससे पहले ढांचा विध्वंस के लिए सरयू नदी में स्नान कर मिट्टी लेकर पहुंचे और शाम 6 बजे तक ढांचा को विध्वंस कर दिया.

5 सेवकों की दबकर मौत: बाबरी विध्वंस से पहले उसमें श्री रामचंद्र जी, माता जानकी, श्री लखन लाल जी, श्री हनुमान जी के अलावा छोटे छोटे प्रतीक चिन्ह थे. उस दौरान बाबरी ढांचा विध्वंस के दौरान 5 सेवकों की दबकर मौत हो गई थी, जिनमें एक लखीसराय ज़िले के गंगासराय गांव निवासी दिनेश चंद्र सिंह की दबकर मौत हो गई थी.

प्रमोद कुमार को लगी थी गोली: 7 दिसंबर को 40 की संख्या में कारसेवकों ने दोपहर को मंदिर के गर्भगृह में घुसकर भगवान श्री राम का सिंहासन बना दिया और फिर बाद में मंदिर के पुजारी द्वारा 4 मूर्ति लाकर दिये गये है. इस दौरान प्रमोद कुमार को भी एक गोली लगी थी, जिसके बाद वह 6 महीने तक इलाजरत रहे थे. प्रमोद और उनके साथियों ने मिलकर मूर्ति स्थापित कर दीप अर्पण किया. उसके बाद सभी कारसेवकों ने पूजा अर्चना कर प्रसाद किया और वापस घर लौट गए.

भड़काऊ भाषण देने का आरोप: जब वे बिहार अपने साथियों के साथ लौटे, उसके 2 से 4 दिन बाद बिहार सरकार प्रमोद कुमार सहित उनके 18 साथी को हिरासत में ले लिया. उस दौरान पुलिस ने कहा कि प्रमोद कुमार को छोड़कर बाकी साथी जा सकते हैं. सभी को भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.

कोई पूछने वाला नहीं: 24 घंटे हिरासत में रखने के बाद सभी को छोड़ दिया गया था. 16 साल तक प्रमोद कुमार पर भड़काऊ भाषण को लेकर मुक़दमा चला. जब बाबरी विध्वंस का आंदोलन चल रहा था तब वह 30 वर्ष के थे. गौरतलब है 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा. जिसके लिए देश विदेश से ख़ास मेहमानों को न्योता दिया गया है. लेकिन आज प्रमोद कुमार सिंह को इस बात का दुःख है कि जिसने अयोध्या के लिए कुर्बानी दी गोली खाई, आज वह लाचार हैं. कोई पूछने वाला नहीं है.

सड़क हादसे में बायां पैर टूटा: अभी भी प्रमोद वकालत के साथ अपने कार्यों को निरंतर जारी रखे हुए हैं. आपको बता दें कि प्रमोद सिंह बाढ़ सिविल कोर्ट में बतौर अधिवक्ता सह एपीपी हैं. उनकी शादी बिहारशरीफ के लहेरी थाना क्षेत्र में हुई है. 1976 को मंजू देवी से शादी हुई थी और 2019 उनका गंभीर बीमारी के कारण देहांत हो गया. जिनसे दो संतान एक पुत्र और एक पुत्री हैं. बाढ़ में बेटे के साथ किराए के मकान में रहते हैं. बचपन में ही मां की मौत हो चुकी थी और पिता घर से अलग हो गए. इनका परवरिश चाचा के द्वारा मोकामा में ही किया गया था. एक सड़क हादसे में बायां पैर टूट गया जिससे वह विकलांग हो गए हैं.

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कारसेवक प्रमोद कुमार की आपबीती

पटना: बाबरी विध्वंस के गवाह रहे कारसेवक प्रमोद कुमार आज गुमनामी की जिंदगी जीने को बेबस हैं. मुख्य रूप से बिहार के पटना जिला अंतर्गत मोकामा के मोल्दीयार टोला निवासी रामाश्रय प्रसाद सिंह के पुत्र हैं. प्रमोद कुमार ने पटना के ANS कॉलेज बाढ़ से LLB किया. 1986 में पास आउट हुए थे. प्रमोद बताते हैं कि कैसे उनकी आंखों के सामने उनके साथी और कई लोगों को मौत की नींद सुला दिया गया था. "हमारे घर वालों ने हमें टीका लगाकर कहा अब विध्वंस करके आना नहीं तो गोली खा लेना पर मत आना."

पटना के कारसेवक प्रमोद कुमार की दास्तां: 1985 में बिहार स्टेट बार काउंसिल की ओर से स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था. उसके बाद वे 1987 में बाढ़ सिविल कोर्ट में बतौर वकील के तौर पर प्रशिक्षण शुरू किया जो आज तक जारी है. उनका जन्म सन 10 जनवरी 1955 को हुआ था. उससे पहले वे निजी को कंपनी में काम भी कर चुके हैं.

संभाल चुके हैं कारसेवक संयोजक का प्रभार: उसके बाद वह शुरुआती पढ़ाई के दौर से ही श्री राम जन्मभूमि आंदोलन में 1989 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तहसील के बौद्धिक प्रमुख के रूप में जुड़े. इस दौरान विहिप के अधिकारी तहसील स्तर पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने आया करते थे, तो विहिप के अधिकारियों द्वारा उनके कामों से संतुष्ट होकर कारसेवक संयोजक का प्रभार दिया.

1990 में हुई थी संघर्ष की असल शुरुआत: इसके बाद वे लगातार संघ के कार्यों में जुड़े रहकर लोगों को जागरूक करने का काम किया. प्रमोद कुमार ने बताया कि "सन 1990 में कारसेवकों को अयोध्या बुलाया गया. जिसके बाद बिहार के अपने 101 साथियों के साथ बिहार से अयोध्या के लिए रवाना हुआ. लेकिन उस वक्त के मुलायम सिंह की सरकार को इस बात की जानकारी हो गई थी तो मुगलसराय स्टेशन से अयोध्या जाने वाली रेल और सड़क मार्ग को छावनी में बदल दिया था."

कई कारसेवकों को लिया गया हिरासत में: इस दौरान इनके कई कारसेवकों को मुगलसराय स्टेशन पर हिरासत में ले लिया गया था. जिनमें सिर्फ 7 अलग अलग बोगी में टीका मिटाकर चढ़ गए और प्रतापगढ़ के रास्ते पैदल चलते हुए 3 दिन में अयोध्या पहुंचे थे. जिसके लिए स्थानीय लोगों ने मदद किया था और रात्रि विश्राम प्रतापगढ़ के लोगों ने आर्य समाज मंदिर में ठहराया था. उसके अगले सुबह गांव वालों ने पुलिस से बचने के लिए खेत के जरिए 1 लाख 33 हजार बोल्ट के सहारे खेत नदी पार करते हुए पहुंचे थे.

जब राम भक्तों पर चली थी गोलियां: 30 अक्टूबर 1990 को राज्य सरकार ने जब लाखों की संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों से आए राम भक्तों पर गोली चलवायी, उस समय मस्जिद की गुम्बद पर चढ़कर भगवा ध्वज फहराया गया था, जिसकी अगुवाई प्रमोद कुमार कर रहे थे. गोलियों की बौछार के कारण कई लोगों की मौत हो गई थी, जिससे कारसेवकों ने वापस आकर पुनः बैठक कर 1 नवंबर को प्रतिबद्ध होकर बाबरी मस्जिद के विध्वंस की प्लानिंग की.

पुलिस से धक्का मुक्की: जब वे लोग जाने लगे तो पुलिस वालों ने रोका और कारसेवकों के बीच पुलिस से धक्का मुक्की होने लगी. इस दौरान पुलिस को कारसेवकों पर गोली चलानी पड़ी और उस समय भी कारसेवकों की मौत हो गई. उसके बाद फिर सभी कारसेवकों को रणनीति बनाकार घर भेज दिया गया.

6 दिसंबर को विवादित ढांचा का विध्वंस: उसके बाद 5 दिसंबर 1992 को फिर सभी कारसेवक अपने माध्यमों से अयोध्या पहुंचे. कारसेवकों ने इस बार प्रण किया था कि बाबरी के ढांचा को विध्वंस कर के ही लौटना है. इस कार्य के लिए घर वालों का आशीर्वाद मिला. 6 दिसंबर को सभी कारसेवक श्री राम जन्मभूमि मंदिर कार्य के लिए 12 बजे दोपहर को पहुंचना था लेकिन वे लोग उससे पहले ढांचा विध्वंस के लिए सरयू नदी में स्नान कर मिट्टी लेकर पहुंचे और शाम 6 बजे तक ढांचा को विध्वंस कर दिया.

5 सेवकों की दबकर मौत: बाबरी विध्वंस से पहले उसमें श्री रामचंद्र जी, माता जानकी, श्री लखन लाल जी, श्री हनुमान जी के अलावा छोटे छोटे प्रतीक चिन्ह थे. उस दौरान बाबरी ढांचा विध्वंस के दौरान 5 सेवकों की दबकर मौत हो गई थी, जिनमें एक लखीसराय ज़िले के गंगासराय गांव निवासी दिनेश चंद्र सिंह की दबकर मौत हो गई थी.

प्रमोद कुमार को लगी थी गोली: 7 दिसंबर को 40 की संख्या में कारसेवकों ने दोपहर को मंदिर के गर्भगृह में घुसकर भगवान श्री राम का सिंहासन बना दिया और फिर बाद में मंदिर के पुजारी द्वारा 4 मूर्ति लाकर दिये गये है. इस दौरान प्रमोद कुमार को भी एक गोली लगी थी, जिसके बाद वह 6 महीने तक इलाजरत रहे थे. प्रमोद और उनके साथियों ने मिलकर मूर्ति स्थापित कर दीप अर्पण किया. उसके बाद सभी कारसेवकों ने पूजा अर्चना कर प्रसाद किया और वापस घर लौट गए.

भड़काऊ भाषण देने का आरोप: जब वे बिहार अपने साथियों के साथ लौटे, उसके 2 से 4 दिन बाद बिहार सरकार प्रमोद कुमार सहित उनके 18 साथी को हिरासत में ले लिया. उस दौरान पुलिस ने कहा कि प्रमोद कुमार को छोड़कर बाकी साथी जा सकते हैं. सभी को भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.

कोई पूछने वाला नहीं: 24 घंटे हिरासत में रखने के बाद सभी को छोड़ दिया गया था. 16 साल तक प्रमोद कुमार पर भड़काऊ भाषण को लेकर मुक़दमा चला. जब बाबरी विध्वंस का आंदोलन चल रहा था तब वह 30 वर्ष के थे. गौरतलब है 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा. जिसके लिए देश विदेश से ख़ास मेहमानों को न्योता दिया गया है. लेकिन आज प्रमोद कुमार सिंह को इस बात का दुःख है कि जिसने अयोध्या के लिए कुर्बानी दी गोली खाई, आज वह लाचार हैं. कोई पूछने वाला नहीं है.

सड़क हादसे में बायां पैर टूटा: अभी भी प्रमोद वकालत के साथ अपने कार्यों को निरंतर जारी रखे हुए हैं. आपको बता दें कि प्रमोद सिंह बाढ़ सिविल कोर्ट में बतौर अधिवक्ता सह एपीपी हैं. उनकी शादी बिहारशरीफ के लहेरी थाना क्षेत्र में हुई है. 1976 को मंजू देवी से शादी हुई थी और 2019 उनका गंभीर बीमारी के कारण देहांत हो गया. जिनसे दो संतान एक पुत्र और एक पुत्री हैं. बाढ़ में बेटे के साथ किराए के मकान में रहते हैं. बचपन में ही मां की मौत हो चुकी थी और पिता घर से अलग हो गए. इनका परवरिश चाचा के द्वारा मोकामा में ही किया गया था. एक सड़क हादसे में बायां पैर टूट गया जिससे वह विकलांग हो गए हैं.

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Last Updated : Jan 1, 2024, 8:48 PM IST
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