पटनाः कहा जाता है कि अगर आपके अंदर जुनून हो और जिद हो तो इंसान अपने लक्ष्य को आसानी से पा जाता. उसी कहावत को चरितार्थ कर रही है पटना के नाट्रेडेम एकेडमी की छात्रा आध्या चौधरी (Story OF Novel The Only Heiress Writer Adhya Choudhary) ने महज 14 साल की उम्र में सामाजिक कुरीतियों पर 200 पन्नों का द ओनली हेयरेस नामक उपन्यास महज 3 महीने में लिखकर इतिहास रच डाला. दादा के मृत्यु के बाद मिली प्रेरणा पर आध्या ने उपन्यास रच कर महिला विरोधी सोच और इससे महिलाओं को होने वाले मानसिक सहित अन्य परेशानियों पर करारा प्रहार किया है.
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" मैं अपने मम्मी-पापा की इकलौती संतान हूं. महज कुछ महीने पहले मेरे दादा जी का देहांत हो गया था. इसके बाद समाज के लोगों ने कहा कि मेरे पापा से कहा कि आपने अपने पिता का दाह संस्कार तो कर दिया, लेकिन आप की मौत पर आपको आग कौन देगा, क्योंकि आपकी तो मात्र एक ही बेटी है. लोगों की इन्हीं बातों ने झकझोड़ दिया और मुझे उपन्यास लिखने के लिए प्रेरित कर दिया."-आध्या चौधरी, लेखिका
मूल रूप से समस्तीपुर की है आध्याः आध्या चौधरी मूल रूप से समस्तीपुर की रहने वाली है. वर्तमान में पटना के राजीव नगर में अपने परिवार के साथ रहती है. आध्या ने महज 3 महीने में 200 पन्नों का उपन्यास लिख डाला. लोगों की ओर से परिवार में बेटा नहीं होने पर किये जा रहे कामेंट ने आध्या को अंदर से झझकोर कर रख दिया और उसने अपनी भावनों को कागज पर उतार कर उपन्यास का शक्ल दे दिया.
मैथिली विवाह प्रथा का भी है विवरणः आध्या के उपन्यास में कुल 6 चैप्टर हैं. अंग्रेजी में लिखे गये इस उपन्यास का टाइटल The Only Heiress है, जिसका अर्थ इकलौती संतान. आध्या बताती है कि वह अपने दादा से अधिक जुड़ी थीय दादा कहते थे कि कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप लड़का है या लड़की. सिर्फ आपके अंदर जुनून होना चाहिए और आपको जीवन जीने का तरीका पता होना चाहिए. अपने उपन्यास में मैथिली विवाह का जिक्र है. इसके अलावा बेटियों के लिए दहेज प्रथा सहित सामाजिक कुरितियों का जिक्र है. अध्या आगे अन्य सामाजिक मुद्दों पर लिखने की तैयारी में है.
बेटियों के प्रति समाज की धारण पर आधारित है उपन्यासः एकल बेटियों वाले परिवार के प्रति समाज की धारणा और कामेंट ने आध्या को अंदर से झझकोर दिया.आध्या बताती है कि दादा जी मौत के बाद मेरा कोई भाई नहीं होने पर लोगों की बातों से मैं कई रातों तक इसी मुद्दे पर सोचती रही और उसने ठान लिया कि अब मेरे मन को शांति तभी मिलेगी जब मैं इस पर एक बुक लिख डालूं, जिससे समाज में पल रहे कुरीतियां भी खत्म हो.
पढ़ाई के साथ लेखन आसान नहीं थाः आध्या कहती हैं कि समाज में लड़कियों के साथ हो रहे भेदभाव को लेकर मैंने यह उपन्यास लिखने का मन बना लिया था और इसे 200 पन्ने का उपन्यास महज 3 महीने में लिख डाला. पढ़ाई के साथ-साथ उपन्यास लिखना आसान नहीं था लेकिन माता-पिता के साथ ने मुझे कभी हार ने नहीं दिया.
11 पुस्त बाद पहली लड़की की कहानी है यह उपन्यासः मैं पढ़ाई के दौरान भी बचे हुए समय और दो से तीन बजे रात तक में जागकर मैंने 3 महीने में द ओनली हेयरेस नाम का उपन्यास लिखा है. इस उपन्यास में एक महिला की कहानी को दर्शाया गया है. वह अपने खानदान में 11 पुस्त बाद जन्म लेने वाली पहली लड़की है. कैसे एक लड़की को समाज में भेदभाव के साथ पाला जाता है. फिर शादी के बाद मायके से लेकर ससुराल तक कई बंदिशों में उन्हें जीना पड़ता है. इसी में उसे अपने वजूद को भी तलाश ना होता है.
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