जबलपुर। सन 1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब बड़े पैमाने पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से सिख और सिंधी परिवार भारत आए. जबलपुर के मदन महल इलाके में पंजाबियों की एक बड़ी बस्ती है. मदन महल इलाके में एक बड़ा गुरुद्वारा है और एक राम मंदिर है. पंजाबी हिंदू गुरुद्वारा भी जाते हैं और राम मंदिर में भी पूजा पाठ करने के लिए आते हैं. पंजाबियों के ज्यादातर त्यौहार इसी मंदिर में मनाए जाते हैं. यहीं पर इस जमाने से करवा चौथ का त्यौहार भी मनाया जाता रहा है. जो आज भी जारी है.
जबलपुर की पंजाबी संस्कृति: पंजाब से आए सिख लोग अपने साथ अपनी संस्कृति भी लेकर आए थे और आज भी इस इलाके में पंजाबियों की संस्कृति को अनुभव किया जा सकता है. पंजाबियों के कई त्यौहार और परंपराएं बाकी देश ने भी अपना ली इन्हीं में से एक परंपरा करवा चौथ का व्रत भी है. राम मंदिर की पुजारी गीता पांडे बताती हैं कि शुरुआत में केवल सिख समाज के लोग ही करवा चौथ का व्रत करते थे, लेकिन अब धीरे-धीरे यह व्रत और त्योहार सभी लोग मानने लगे हैं.
पूजा की अनोखी परंपरा: गीता पांडे मदन महल के इस मंदिर की पूजा का विधान करवाती है. वह बताती है कि सभी महिलाएं अपने घरों से पूजा की थाली सजा कर लाती हैं. जिसमें पकवान के साथ फल फूल और दिया होता है. सभी महिलाएं एक साथ एक गोल में बैठ जाती हैं. इसके बाद गीता पांडे बीरो रानी की कहानी शुरू करती हैं. कहानी के दौरान सभी महिलाएं अपनी थाली को एक दूसरे को देती जाती है. इसी बीच में गीता पांडे के साथ सिख महिलाएं पंजाबी में एक कहावत दोहराती जाती हैं जो पंजाबी में होती है इसमें कुछ बातों की मनाही है, जिसे महिलाएं गाकर दोहराती हैं, जिसमें कहा जाता है कि करवा चौथ में क्या नहीं करना चाहिए करवा चौथ के दिन कड़ाई से जुड़ा हुआ काम नहीं किया जाता. वहीं कोई खेत नहीं जाता, किसी सोते हुए को नहीं जगाया जाता और किसी रूठे हुए को नहीं मनाया जाता.
बीरो रानी की प्रेम कहानी: गीता पांडे बताती हैं कि यह व्रत वीरो रानी की एक दंत कथा पर आधारित है. जिसमें बीरो रानी की प्रेम और समर्पण की कथा सुनाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि एक समय में पंजाब में बीरो रानी रहती थी. उन्होंने एक बार करवा चौथ का व्रत किया, लेकिन रात को जब चंद्रमा नहीं निकला तो उनके छोटे भाई ने दूर जंगल में आग लगा दी. वहां से उठती हुई रोशनी को उसने चांद मानकर बीरो रानी का व्रत तुड़वा दिया. व्रत तो टूट गया लेकिन चांद निकला नहीं था. ऐसी स्थिति में बीरो रानी के पिता जो एक राजा था. वह मूर्छित हो जाता है, फिर भी बीरो यह प्रण करती हैं कि जब तक उनके पति ठीक नहीं हो जाएंगे, तब तक वे उनकी सेवा करेंगे और यह क्रम लगातार 1 साल चलता रहता है.
इस दौरान राजा की याददाश्त भी खो जाती है. वह अपनी पत्नी तक को भूल जाते हैं, लेकिन बीरों के तपस्या और उनकी सेवा की वजह से दूसरे साल ठीक करवा चौथ के दिन राजा पूरी तरह ठीक हो जाता है और बीरो रानी और उनके परिवार सुखचैन से रहने लगता है.
निर्जला व्रत करती हैं महिलाएं: करवा चौथ का त्यौहार परिवार में संबंधों की कहानी भी है. इसमें व्रत करने वाली महिला को उसकी सास सुबह सरगी देती है. जो सूर्य उगने के पहले दी जाती है. इसके बाद सुहागन दिन भर पानी तक नहीं पीती. शाम में जब चांद निकलता है, तब सबसे पहले चांद को जल चढ़ाया जाता है और चांद को देखने के बाद चलनी के भीतर से पति को देखते हुए पति ही पत्नी को पानी पिलाता है. आजकल करवा चौथ के व्रत में पति भी पत्नियों के लिए व्रत रखने लगे हैं.
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आज पूरे देश मैं मनाया जाता है करवा चौथ: इस पूजन में सुहाग वती देवी की पूजा की जाती है. जिन्हें लक्ष्मी जी का रूप माना जाता है. वहीं दूसरी पूजा चंद्रमा की जाती है. हिंदू समाज का यही एक खूबसूरत रूप है. जिसमें वह एक दूसरे समुदायों की अच्छी परंपराओं का आदान-प्रदान कर लेता है. गुजरातियों की गरबा पूजा को आज पूरे देश ने अपना लिया है. बंगालियों की दुर्गा पूजा महाराष्ट्र का गणेश उत्सव और पंजाबियों का करवा चौथ आज पूरे देश में मनाया जाता है.