रायपुर: छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी प्रदेशों में बोली जाने वाली गोंडी की विभिन्न बोलियों को मिलाकर एक मानक गोंडी भाषा के लिए प्रयास शुरू किया है ताकि गोंडी आठवीं अनुसूची में शामिल हो सके. राज्य सरकार ने उन सभी 6 प्रदेशों से गोंडी के विशेषज्ञों को बुलाया है, जहां गोंडी बोली जाती है.
गोंडी को मानक रूप देने की पहल: गोंडी को मानक रूप देने के लिए मानक गोंडी डिक्शनरी तैयार करने की कोशिश की जा रही है. इसी कवायद के तहत छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अलग अलग राज्यों से गोंडी समाज के बुद्धिजीवी और समाज के लोग जुटे और गहन चर्चा की गई.
साल 2014 में शुरू हुई थी कोशिश: दिल्ली में साल 2014 में गोंडी के मानक रुप के लिए पहल की गई थी. 3000 शब्दों का मानकीकरण कर प्रकाशन किया गया था. कांकेर के रिटायर्ड शिक्षक शेर सिंह आचला ने बताया कि ''10 हजार शब्द का मानक शब्दकोश बनाने की तैयारी चल रही है.'' मध्यप्रदेश के हरदा से आए शिव प्रसाद धुर्वे ने बताया कि मध्यप्रदेश से करीब 7000 शब्दों का मानकीकरण कर लिया गया है. गोंडी का मानकीकरण होने से शासन प्रशासन से सहयोग मिलेगा. छत्तीसगढ़ सरकार की यह एक अच्छी कोशिश है.''
सबसे पुरानी भाषा है गोंडी: अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण नेताम ने बताया कि ''गोंडी भाषा अति प्राचीन भाषा है. एक समृद्ध गोंडी भाषा से हमारे समाज और संगठन का विस्तार भी होगा.'' पूर्व जज नरसिंह उसेंडी का कहना है कि ''आठवीं अनुसूची में इसे भाषा का दर्जा दिया जाए.'' कांकेर के सहायक शिक्षक मुकेश कुमार उसेंडी कहते हैं कि ''अपनी भाषा को बचाने के लिए हमें सरकार से ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है. एक गोंडवाना लैंड भी होना चाहिए.''
छत्तीसगढ़ सरकार की हो रही तारीफ: छत्तीसगढ़ में कुछ सालों से गोंडी के साथ ही हल्बी के लिए भी प्रयास हो रहे हैं. प्रायमरी स्कूलों में पहली से पांचवी तक क्षेत्रीय भाषा को पढ़ाया जा रहा है. अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के उपाध्यक्ष डॉ वेदवती मंडावी के मुताबिक अभी इस दिशा में और काम किए जाने की जरूरत है. छत्तीसगढ़ की तरह ही महाराष्ट्र में भी नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा को महत्व दिया जा रहा है. नागपुर के प्रोफेसर श्याम कुरेटी ने छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयास की तारीफ की है.