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श्रीलंकाई आर्थिक संकट और चीन कनेक्शन, भारत पर यह पड़ सकता है असर

श्रीलंका के वित्त मंत्री ने 7 सितंबर को बयान दिया कि देश, विदेशी मुद्रा संकट का सामना कर रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि राजस्व में अनुमान से 7.5 अरब डॉलर से 8.0 अरब डॉलर से अधिक की में गिरावट है.

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Published : Sep 10, 2021, 5:09 PM IST

हैदराबाद : श्रीलंका इन दिनों आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. जुलाई के अंत में श्रीलंका का विदेशी भंडार गिरकर 2.8 अरब डॉलर पर आ गया. इसे शेष वर्ष के दौरान अपने विदेशी ऋण को चुकाने के लिए लगभग $2.0 बिलियन का भुगतान करना होगा.

क्या है आर्थिक संकट का कारण

माना जा रहा है कि कोविड-19 सर्वव्यापी महामारी की वजह से यह संकट आया है. दरअसल, श्रीलंका में पर्यटन एक प्रमुख उद्योग है. विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद के अनुसार देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 10 प्रतिशत पर्यटन उद्योग से जुड़ा है. चाय और कपड़ा उद्योग भी महामारी की चपेट में आ गए हैं, जिससे निर्यात प्रभावित हुआ है. श्रीलंका की अर्थव्यवस्था 2020 में रिकॉर्ड 3.6 प्रतिशत तक सिकुड़ गई, जबकि विदेशी विनिमय दरों में वृद्धि का मतलब था कि देश के पास आयात के लिए भुगतान करने के लिए कम और कम डॉलर हैं. श्रीलंका खाद्य और अन्य वस्तुओं का शुद्ध आयातक है, इसलिए भुगतान करने के लिए उसे विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता है.

आर्थिक संकट का क्या प्रभाव

संकट ने देश में भोजन और दवा की कमी को जन्म दे दिया है. कुछ खाद्य पदार्थों जैसे चीनी, दूध पाउडर और रसोई गैस की कमी हो गई है. 1970 के दशक में सिरिमावो भंडारनायके सरकार के दौरान देश ने खाद्य संकट का अनुभव किया था.

श्रीलंका सरकार द्वारा उठाए गए कदम

राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने खाद्य कीमतों को नियंत्रित करने और कुछ खाद्य पदार्थों की कमी के बीच जमाखोरी को रोकने के लिए 30 अगस्त को आपातकाल की घोषणा की. अप्रैल 2021 में सरकार ने रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया और केवल जैविक दृष्टिकोण अपनाया. सरकार ने मोटर वाहनों और एयर कंडीशनर से लेकर बीयर, कपड़ों के सामान, सौंदर्य प्रसाधन और यहां तक ​​कि हल्दी जैसे मसालों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है.

चीन कारक और भारत पर इसका प्रभाव

चीन हमेशा भारत के दक्षिणी पड़ोसी श्रीलंका में एक मजबूत आधार स्थापित करना चाहता है. ऐसा करने से उसे दो फायदे होंगे. सबसे पहले, यह हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की नौसैनिक श्रेष्ठता के लिए एक सीधी चुनौती होगी.

दूसरा, चीन एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक समुद्री मार्ग में पैर जमा लेगा और कच्चे तेल के अपने समुद्री व्यापार को सुरक्षित करने के लिए बेहतर स्थिति में होगा. प्रमुख शिपिंग मार्गों के चौराहे पर श्रीलंका के रणनीतिक स्थान के कारण, चीन ने बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है, जिसका अनुमान 2006 और 2019 के बीच $12 बिलियन है.

चीन, श्रीलंका का सबसे बड़ा लेनदार है. जून 2019 तक श्रीलंका के सार्वजनिक क्षेत्र को चीन का ऋण केंद्र सरकार के विदेशी ऋण का 15% था, जिससे चीन देश का सबसे बड़ा द्विपक्षीय लेनदार बन गया. अपने कर्ज को चुकाने में असमर्थ श्रीलंका ने चीन को अव्यवहार्य हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल के लीज पर दे दिया.

यह भी पढ़ें-जानें क्याें श्रीलंकाई प्रधानमंत्री की इटली यात्रा काे लेकर शुरू हुआ विवाद

आर्थिक संकट इसे अपनी नीतियों को बीजिंग के हितों के साथ संरेखित करने के लिए आगे बढ़ा सकता है जो भारत के हित के लिए हानिकारक होगा. भारत पहले से ही अफगानिस्तान और म्यांमार के साथ कूटनीतिक तंगी पर है. बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देश भी बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए चीन की ओर रुख कर रहे हैं.

हैदराबाद : श्रीलंका इन दिनों आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. जुलाई के अंत में श्रीलंका का विदेशी भंडार गिरकर 2.8 अरब डॉलर पर आ गया. इसे शेष वर्ष के दौरान अपने विदेशी ऋण को चुकाने के लिए लगभग $2.0 बिलियन का भुगतान करना होगा.

क्या है आर्थिक संकट का कारण

माना जा रहा है कि कोविड-19 सर्वव्यापी महामारी की वजह से यह संकट आया है. दरअसल, श्रीलंका में पर्यटन एक प्रमुख उद्योग है. विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद के अनुसार देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 10 प्रतिशत पर्यटन उद्योग से जुड़ा है. चाय और कपड़ा उद्योग भी महामारी की चपेट में आ गए हैं, जिससे निर्यात प्रभावित हुआ है. श्रीलंका की अर्थव्यवस्था 2020 में रिकॉर्ड 3.6 प्रतिशत तक सिकुड़ गई, जबकि विदेशी विनिमय दरों में वृद्धि का मतलब था कि देश के पास आयात के लिए भुगतान करने के लिए कम और कम डॉलर हैं. श्रीलंका खाद्य और अन्य वस्तुओं का शुद्ध आयातक है, इसलिए भुगतान करने के लिए उसे विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता है.

आर्थिक संकट का क्या प्रभाव

संकट ने देश में भोजन और दवा की कमी को जन्म दे दिया है. कुछ खाद्य पदार्थों जैसे चीनी, दूध पाउडर और रसोई गैस की कमी हो गई है. 1970 के दशक में सिरिमावो भंडारनायके सरकार के दौरान देश ने खाद्य संकट का अनुभव किया था.

श्रीलंका सरकार द्वारा उठाए गए कदम

राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने खाद्य कीमतों को नियंत्रित करने और कुछ खाद्य पदार्थों की कमी के बीच जमाखोरी को रोकने के लिए 30 अगस्त को आपातकाल की घोषणा की. अप्रैल 2021 में सरकार ने रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया और केवल जैविक दृष्टिकोण अपनाया. सरकार ने मोटर वाहनों और एयर कंडीशनर से लेकर बीयर, कपड़ों के सामान, सौंदर्य प्रसाधन और यहां तक ​​कि हल्दी जैसे मसालों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है.

चीन कारक और भारत पर इसका प्रभाव

चीन हमेशा भारत के दक्षिणी पड़ोसी श्रीलंका में एक मजबूत आधार स्थापित करना चाहता है. ऐसा करने से उसे दो फायदे होंगे. सबसे पहले, यह हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की नौसैनिक श्रेष्ठता के लिए एक सीधी चुनौती होगी.

दूसरा, चीन एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक समुद्री मार्ग में पैर जमा लेगा और कच्चे तेल के अपने समुद्री व्यापार को सुरक्षित करने के लिए बेहतर स्थिति में होगा. प्रमुख शिपिंग मार्गों के चौराहे पर श्रीलंका के रणनीतिक स्थान के कारण, चीन ने बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है, जिसका अनुमान 2006 और 2019 के बीच $12 बिलियन है.

चीन, श्रीलंका का सबसे बड़ा लेनदार है. जून 2019 तक श्रीलंका के सार्वजनिक क्षेत्र को चीन का ऋण केंद्र सरकार के विदेशी ऋण का 15% था, जिससे चीन देश का सबसे बड़ा द्विपक्षीय लेनदार बन गया. अपने कर्ज को चुकाने में असमर्थ श्रीलंका ने चीन को अव्यवहार्य हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल के लीज पर दे दिया.

यह भी पढ़ें-जानें क्याें श्रीलंकाई प्रधानमंत्री की इटली यात्रा काे लेकर शुरू हुआ विवाद

आर्थिक संकट इसे अपनी नीतियों को बीजिंग के हितों के साथ संरेखित करने के लिए आगे बढ़ा सकता है जो भारत के हित के लिए हानिकारक होगा. भारत पहले से ही अफगानिस्तान और म्यांमार के साथ कूटनीतिक तंगी पर है. बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देश भी बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए चीन की ओर रुख कर रहे हैं.

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