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विदेश मंत्री का श्रीलंका दौरा, जानें क्या है एजेंडा

श्रीलंका में भारत के उच्चायोग से मिली जानकारी के मुताबिक भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर श्रीलंका के दौरे पर हैं. मंगलवार शाम वह कोलंबो पहुंचे. इस दौरान वह श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और विदेश मंत्री दिनेश गुनवर्देना से मुलाकात करेंगे. पढ़ें ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी की रिपोर्ट...

external affairs minister jaishankar
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Published : Jan 5, 2021, 8:31 PM IST

नई दिल्ली : भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर मंगलवार को श्रीलंका पहुंच गए. वे वहां के राष्ट्रपति गोटाबाया, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और विदेश मंत्री दिनेश गुनवर्देना समेत कई प्रतिनिधियों से मुलाकात करेंगे. इस साल उनकी यह पहली विदेश यात्रा होगी. श्रीलंका में भी वे पहले विदेशी मेहमान होंगे, जो वहां जा रहे हैं. वे वहां पर द्विपक्षीय संबंधों पर विस्तार से चर्चा करेंगे. इनमें मछुआरों को छोड़ने से लेकर कोलंबो बंदरगाह पर चल रहे प्रजोक्ट के मुद्दे भी शामिल हैं.

विदेश मंत्री का दौरा 'भारत के लिए पड़ोसी प्रथम' की नीति को ही दर्शाता है. राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों को लेकर भारत साफ कर देना चाहता है कि उसकी राय कोई अलग नहीं है. पड़ोसियों के साथ उनकी नीति बहुत साफ है. सुरक्षा पर सबकी सहमति है. वे जिस तरह से अपनी सुरक्षा को देखते हैं, भारत भी वही नजरिया रखता है.

external affairs minister jaishankar
श्रीलंका पहुंचे विदेश मंत्री

सबसे पहले विदेशी अतिथि भारत के विदेश मंत्री

ऑब्जर्बर रिसर्च फाउंडेशन के एन साहित्य मूर्ति ने ईटीवी भारत को बताया कि विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ होने वाली बैठक को अलग से देखने की जरूरत नहीं है. कुछ दिन पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल श्रीलंका गए थे. जयशंकर की बैठक उसकी अगली कड़ी है. गोटाबाया द्वारा पद संभालने के बाद सबसे पहले विदेशी अतिथि भारत के विदेश मंत्री ही बने थे. गोटाबाया और महिंदा, दोनों ने विदेशी दौरे की शुरुआत भारत से ही की थी. श्रीलंका में संसदीय चुनाव के बाद विदेशी नेताओं के साथ होने वाली पहली वर्चुअल बैठक पीएम मोदी के साथ हुई. अभी पिछले पखवाड़े ही मछुआरों के मुद्दे पर दोनों देशों के संयुक्त वर्किंग ग्रुप की बैठक हुई थी. विदेश मंत्री की यात्रा को इसी कड़ी का एक हिस्सा मानना चाहिए. राजपक्षे 2019 में दोबारा से सत्ता में लौटे हैं.

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श्रीलंका पहुंचे विदेश मंत्री

मूर्ति के अनुसार भारत की नीति बहुत साफ है वह श्रीलंका की संप्रभुता का सम्मान करता है. वह अपने हित में फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है. इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर भारत की राय अलग नहीं है. वह उनसे पूरी तरह से सहमत है.

विदेश नीति में भारत 'पहले स्थान पर'

अजीत डोभाल की यात्रा के दौरान दोनों देशों ने मैरिटाइम सुरक्षा सहयोग को और अधिक मजबूत करने पर एकराय कायम की थी. श्रीलंका के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने बार-बार कहा है कि उनकी विदेश नीति में भारत 'पहले स्थान' पर है. इसमें सुरक्षा का मसला भी शामिल है. वर्तमान दौरा उसी का हिस्सा है.

हिंद महासागर क्षेत्र में श्रीलंका

मूर्ति कहते हैं कि भारत के पड़ोसी देशों (नेपाल से लेकर ईरान तक) पर चीन के बढ़ते प्रभाव के परिप्रेक्ष्य में देखें तो हम अपने आर्थिक संबंधों को पहले से अधिक मजबूत कर रहे हैं. श्रीलंका के साथ भी संबंधों को प्रगाढ़ किया जा रहा है. भारतीय हिंद महासागर क्षेत्र में श्रीलंका को काफी अहम भागीदार बनाया गया है.

विदेश मंत्री दिनेश गुनवर्दना ने भेजा न्योता

कुछ दिनों पहले ही विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा था कि इस यात्रा का महत्व बहुत अधिक है. दोनों देश परस्पर हितों को और अधिक मजबूत करने पर बातचीत करेंगे. श्रीलंका के विदेश मंत्री दिनेश गुनवर्दना ने एस जयशंकर को न्योता दिया था.

कई अहम मुद्दों पर चर्चा

साहित्य मूर्ति ने बताया कि दो मुद्दे बहुत अहम हैं. पहला विषय है - संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में श्रीलंका में हुए युद्ध अपराध पर होने वाली बहस. इस पर भारत की स्थिति क्या रहेगी, इस पर चर्चा होने की उम्मीद है. श्रीलंका के लिए यह बहुत ही अहम मुद्दा है. राजपक्षे सरकार ने पूरी प्रक्रिया का बहिष्कार किया है.

1987 में हुए समझौते का अहम हिस्सा

दूसरा विषय है- तमिलों का. नए संविधान के तहत चर्चा है कि प्रोविंशियल काउंसल की व्यवस्था खत्म हो जाएगी. तमिल आबादी इसका विरोध कर रही है. गोटाबाया ने चुनाव के दौरान अपने मैनिफेस्टो में इस वादे को शामिल किया था. भारत-श्रीलंका के बीच 1987 में हुए समझौते का यह एक अहम हिस्सा रह चुका है. यूएनएचआरसी से पहले इस विषय पर भारत किस तरह से अपनी स्थिति रखेगा, यह देखने वाली बात होगी.

पढ़ें-द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा के लिए 5-7 जनवरी तक श्रीलंका दौरा करेंगे विदेश मंत्री जयशंकर

दोस्ती को लगातार नया रूप देने का प्रयास

स्वास्थ्य क्षेत्र के अलावा साल 2020 आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी चुनौतीपूर्ण रहा है. नेपाल और चीन समेत भारत और उसके पड़ोस के बीच सीमा तनाव को लेकर स्थिति खराब रही है. चीन के प्रभाव को दूर रखने के लिए भारत दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपने पड़ोसियों के साथ लंबे समय से चली आ रही दोस्ती को लगातार नया रूप देने में लगा हुआ है.

नई दिल्ली : भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर मंगलवार को श्रीलंका पहुंच गए. वे वहां के राष्ट्रपति गोटाबाया, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और विदेश मंत्री दिनेश गुनवर्देना समेत कई प्रतिनिधियों से मुलाकात करेंगे. इस साल उनकी यह पहली विदेश यात्रा होगी. श्रीलंका में भी वे पहले विदेशी मेहमान होंगे, जो वहां जा रहे हैं. वे वहां पर द्विपक्षीय संबंधों पर विस्तार से चर्चा करेंगे. इनमें मछुआरों को छोड़ने से लेकर कोलंबो बंदरगाह पर चल रहे प्रजोक्ट के मुद्दे भी शामिल हैं.

विदेश मंत्री का दौरा 'भारत के लिए पड़ोसी प्रथम' की नीति को ही दर्शाता है. राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों को लेकर भारत साफ कर देना चाहता है कि उसकी राय कोई अलग नहीं है. पड़ोसियों के साथ उनकी नीति बहुत साफ है. सुरक्षा पर सबकी सहमति है. वे जिस तरह से अपनी सुरक्षा को देखते हैं, भारत भी वही नजरिया रखता है.

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श्रीलंका पहुंचे विदेश मंत्री

सबसे पहले विदेशी अतिथि भारत के विदेश मंत्री

ऑब्जर्बर रिसर्च फाउंडेशन के एन साहित्य मूर्ति ने ईटीवी भारत को बताया कि विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ होने वाली बैठक को अलग से देखने की जरूरत नहीं है. कुछ दिन पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल श्रीलंका गए थे. जयशंकर की बैठक उसकी अगली कड़ी है. गोटाबाया द्वारा पद संभालने के बाद सबसे पहले विदेशी अतिथि भारत के विदेश मंत्री ही बने थे. गोटाबाया और महिंदा, दोनों ने विदेशी दौरे की शुरुआत भारत से ही की थी. श्रीलंका में संसदीय चुनाव के बाद विदेशी नेताओं के साथ होने वाली पहली वर्चुअल बैठक पीएम मोदी के साथ हुई. अभी पिछले पखवाड़े ही मछुआरों के मुद्दे पर दोनों देशों के संयुक्त वर्किंग ग्रुप की बैठक हुई थी. विदेश मंत्री की यात्रा को इसी कड़ी का एक हिस्सा मानना चाहिए. राजपक्षे 2019 में दोबारा से सत्ता में लौटे हैं.

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श्रीलंका पहुंचे विदेश मंत्री

मूर्ति के अनुसार भारत की नीति बहुत साफ है वह श्रीलंका की संप्रभुता का सम्मान करता है. वह अपने हित में फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है. इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर भारत की राय अलग नहीं है. वह उनसे पूरी तरह से सहमत है.

विदेश नीति में भारत 'पहले स्थान पर'

अजीत डोभाल की यात्रा के दौरान दोनों देशों ने मैरिटाइम सुरक्षा सहयोग को और अधिक मजबूत करने पर एकराय कायम की थी. श्रीलंका के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने बार-बार कहा है कि उनकी विदेश नीति में भारत 'पहले स्थान' पर है. इसमें सुरक्षा का मसला भी शामिल है. वर्तमान दौरा उसी का हिस्सा है.

हिंद महासागर क्षेत्र में श्रीलंका

मूर्ति कहते हैं कि भारत के पड़ोसी देशों (नेपाल से लेकर ईरान तक) पर चीन के बढ़ते प्रभाव के परिप्रेक्ष्य में देखें तो हम अपने आर्थिक संबंधों को पहले से अधिक मजबूत कर रहे हैं. श्रीलंका के साथ भी संबंधों को प्रगाढ़ किया जा रहा है. भारतीय हिंद महासागर क्षेत्र में श्रीलंका को काफी अहम भागीदार बनाया गया है.

विदेश मंत्री दिनेश गुनवर्दना ने भेजा न्योता

कुछ दिनों पहले ही विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा था कि इस यात्रा का महत्व बहुत अधिक है. दोनों देश परस्पर हितों को और अधिक मजबूत करने पर बातचीत करेंगे. श्रीलंका के विदेश मंत्री दिनेश गुनवर्दना ने एस जयशंकर को न्योता दिया था.

कई अहम मुद्दों पर चर्चा

साहित्य मूर्ति ने बताया कि दो मुद्दे बहुत अहम हैं. पहला विषय है - संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में श्रीलंका में हुए युद्ध अपराध पर होने वाली बहस. इस पर भारत की स्थिति क्या रहेगी, इस पर चर्चा होने की उम्मीद है. श्रीलंका के लिए यह बहुत ही अहम मुद्दा है. राजपक्षे सरकार ने पूरी प्रक्रिया का बहिष्कार किया है.

1987 में हुए समझौते का अहम हिस्सा

दूसरा विषय है- तमिलों का. नए संविधान के तहत चर्चा है कि प्रोविंशियल काउंसल की व्यवस्था खत्म हो जाएगी. तमिल आबादी इसका विरोध कर रही है. गोटाबाया ने चुनाव के दौरान अपने मैनिफेस्टो में इस वादे को शामिल किया था. भारत-श्रीलंका के बीच 1987 में हुए समझौते का यह एक अहम हिस्सा रह चुका है. यूएनएचआरसी से पहले इस विषय पर भारत किस तरह से अपनी स्थिति रखेगा, यह देखने वाली बात होगी.

पढ़ें-द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा के लिए 5-7 जनवरी तक श्रीलंका दौरा करेंगे विदेश मंत्री जयशंकर

दोस्ती को लगातार नया रूप देने का प्रयास

स्वास्थ्य क्षेत्र के अलावा साल 2020 आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी चुनौतीपूर्ण रहा है. नेपाल और चीन समेत भारत और उसके पड़ोस के बीच सीमा तनाव को लेकर स्थिति खराब रही है. चीन के प्रभाव को दूर रखने के लिए भारत दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपने पड़ोसियों के साथ लंबे समय से चली आ रही दोस्ती को लगातार नया रूप देने में लगा हुआ है.

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