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श्रीलंका में आगे क्या होगा, क्या कहता है यहां का संविधान, जानें

श्रीलंका में आगे क्या होगा, इस वक्त कहना मुश्किल है. प्रदर्शनकारियों को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे का इंतजार है. उनका कहना है कि जब तक वे औपचारिक तौर पर पद से नहीं हट जाते हैं, तब तक वे लोग राष्ट्रपति भवन में ही डटे रहेंगे. ऐसे में सवाल ये है कि श्रीलंका का संविधान क्या कहता है. अगर राजपक्षे इस्तीफा दे देते हैं, तो उनकी जगह किसे राष्ट्रपति बनाया जा सकता है. जानें इन सवालों के जवाब.

श्रीलंका में विरोध प्रदर्शन
श्रीलंका में विरोध प्रदर्शन
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Published : Jul 10, 2022, 5:50 PM IST

नई दिल्ली : क्योंकि श्रीलंका के राष्ट्रपति इस्तीफा देने वाले हैं. लिहाजा कमान कौन संभालेगा, इसको लेकर अटकलें लगने लगीं हैं. यहां के संविधान में बताया है कि अगर राष्ट्रपति इस्तीफा दे देते हैं, तो प्रधानमंत्री को अंतरिम राष्ट्रपति के तौर पर शपथ दिलाई जाएगी. लेकिन उनकी नियुक्ति को मंजूरी संसद देगा. संसद की बैठक एक महीने के अंदर होनी चाहिए. अगर संसद ने अनुमोदन नहीं किया, तो वे पद पर बने नहीं रह सकते हैं. राष्ट्रपति बनने के तीन दिनों के अंदर इसकी सूचना संसद को दे दी जानी चाहिए.

अभी रानिल विक्रमसिंघे प्रधानमंत्री हैं. पर, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विक्रमसिंघे ने खुद ही इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है. दूसरी अहम बात यह है कि वह अपनी पार्टी के एकमात्र सदस्य हैं. विपक्षी दल का दावा है कि विपक्ष के पास 225 में से 113 सदस्यों का समर्थन है. विपक्ष का नेतृत्व अभी सजिथ प्रेमदासा कर रहे हैं. विपक्ष को विक्रमसिंघे के नाम पर भी आपत्ति है.

जाहिर है, अगर विक्रमसिंघे किसी भी कारण से राष्ट्रपति नहीं बन पाते हैं, तो वहां के स्पीकर को कार्यवाहक राष्ट्रपति की शपथ दिलवाई जा सकती है. वर्तमान संकट में इसकी संभावना सबसे अधिक दिखती है. महिंदा यप्पा अभयवर्द्धना स्पीकर हैं. लेकिन वह गोटबाया की पार्टी से संबंध रखते हैं. इसलिए संवैधानिक रूप से इनकी संभावना प्रबल होते हुए भी विपक्ष इन्हें पद पर बिठाने को तैयार नहीं है.

श्रीलंका के संविधान के मुताबिक अगर ऐसी स्थिति बनती है, तो फिर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को राष्ट्रपति पद पर आसीन किया जा सकता है. पर, उनका अनुमोदन भी संसद ही करेगा, तभी वह पद पर बने रह सकते हैं. दूसरी ओर विपक्ष का दावा है कि सजिथ प्रेमदासा को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार स्थिति और बिगड़ सकती है, यदि गोटबाया राजपक्ष ने इस्तीफा नहीं दिया. वैसे तो उन्होंने 13 जुलाई को इस्तीफा देने की बात कही है. लेकिन प्रदर्शनकारियों को आशंका है कि जब तक वह पद से औपचारिक तौर पर नहीं हटते हैं, वे राष्ट्रपति भवन पर के कब्जा नहीं हटाएंगे.

एक और विकल्प है, चुनाव का. पर विशेषज्ञों का मानना है कि देश की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि चुनाव करवाने के लिए पैसा कहां से आएगा, कहना मुश्किल है. वह ऐसे में जबकि लोगों के पास दवाई, ईंधन और खाने की कमी है.

ये भी पढ़ें : श्रीलंका : सेना ने की शांति की अपील, राष्ट्रपति भवन में मिले नोटों के 'बंडल'

नई दिल्ली : क्योंकि श्रीलंका के राष्ट्रपति इस्तीफा देने वाले हैं. लिहाजा कमान कौन संभालेगा, इसको लेकर अटकलें लगने लगीं हैं. यहां के संविधान में बताया है कि अगर राष्ट्रपति इस्तीफा दे देते हैं, तो प्रधानमंत्री को अंतरिम राष्ट्रपति के तौर पर शपथ दिलाई जाएगी. लेकिन उनकी नियुक्ति को मंजूरी संसद देगा. संसद की बैठक एक महीने के अंदर होनी चाहिए. अगर संसद ने अनुमोदन नहीं किया, तो वे पद पर बने नहीं रह सकते हैं. राष्ट्रपति बनने के तीन दिनों के अंदर इसकी सूचना संसद को दे दी जानी चाहिए.

अभी रानिल विक्रमसिंघे प्रधानमंत्री हैं. पर, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विक्रमसिंघे ने खुद ही इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है. दूसरी अहम बात यह है कि वह अपनी पार्टी के एकमात्र सदस्य हैं. विपक्षी दल का दावा है कि विपक्ष के पास 225 में से 113 सदस्यों का समर्थन है. विपक्ष का नेतृत्व अभी सजिथ प्रेमदासा कर रहे हैं. विपक्ष को विक्रमसिंघे के नाम पर भी आपत्ति है.

जाहिर है, अगर विक्रमसिंघे किसी भी कारण से राष्ट्रपति नहीं बन पाते हैं, तो वहां के स्पीकर को कार्यवाहक राष्ट्रपति की शपथ दिलवाई जा सकती है. वर्तमान संकट में इसकी संभावना सबसे अधिक दिखती है. महिंदा यप्पा अभयवर्द्धना स्पीकर हैं. लेकिन वह गोटबाया की पार्टी से संबंध रखते हैं. इसलिए संवैधानिक रूप से इनकी संभावना प्रबल होते हुए भी विपक्ष इन्हें पद पर बिठाने को तैयार नहीं है.

श्रीलंका के संविधान के मुताबिक अगर ऐसी स्थिति बनती है, तो फिर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को राष्ट्रपति पद पर आसीन किया जा सकता है. पर, उनका अनुमोदन भी संसद ही करेगा, तभी वह पद पर बने रह सकते हैं. दूसरी ओर विपक्ष का दावा है कि सजिथ प्रेमदासा को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार स्थिति और बिगड़ सकती है, यदि गोटबाया राजपक्ष ने इस्तीफा नहीं दिया. वैसे तो उन्होंने 13 जुलाई को इस्तीफा देने की बात कही है. लेकिन प्रदर्शनकारियों को आशंका है कि जब तक वह पद से औपचारिक तौर पर नहीं हटते हैं, वे राष्ट्रपति भवन पर के कब्जा नहीं हटाएंगे.

एक और विकल्प है, चुनाव का. पर विशेषज्ञों का मानना है कि देश की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि चुनाव करवाने के लिए पैसा कहां से आएगा, कहना मुश्किल है. वह ऐसे में जबकि लोगों के पास दवाई, ईंधन और खाने की कमी है.

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