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नेताजी का डलहौजी से है खास नाता, बावड़ी के पानी से हुए थे स्वस्थ्य

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का डलहौजी (हिमाचल प्रदेश) के साथ विशेष नाता रहा है. पांच मई, 1937 को नेताजी डलहौजी आए थे. इससे पूर्व अंग्रेजों ने उन्हें जेल में कैद कर रखा था. जहां उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था. नेताजी अपने मित्र डॉ. धर्मवीर के साथ डलहौजी आए. डॉ. धर्मवीर के निवास स्थान कायनांस एस्टेट बंगले में करीब छह महीने तक रहे थे.

नेताजी का डलहौजी से है खास नाता
नेताजी का डलहौजी से है खास नाता
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Published : Jan 23, 2021, 5:43 PM IST

डलहौजी : 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा' और 'जय हिन्द' इन नारों से आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 125वीं जयंती है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हैं, जिनसे आज का युवा वर्ग प्रेरणा लेता है.

नेताजी का डलहौजी से है खास नाता

23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में जन्मे नेताजी सुभाष चंद्र बोस का हिमाचल प्रदेश के डलहौजी शहर के साथ विशेष नाता रहा है. पांच मई, 1937 को नेताजी डलहौजी आए थे. इससे पूर्व अंग्रेजों ने उन्हें जेल में कैद कर रखा था. जहां उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था. आज हम नेताजी को उनकी 125वीं जयंती के मौके पर याद कर रहे हैं, और इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं डलहौजी में बिताए उनके दिनों के बारे में.

नेताजी ने डलहौजी में लिया था स्वास्थ्य लाभ
नेताजी के खराब होते स्वास्थ्य को देख हुए उन्हें रिहा कर दिया गया था. इसके बाद नेताजी अपने मित्र डॉ. धर्मवीर के साथ डलहौजी आए. डॉ. धर्मवीर के निवास स्थान कायनांस एस्टेट बंगले में करीब छह महीने तक यहां रहे. उस समय यहां पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत भी किया गया.

तीन किलोमीटर पैदल चल बावड़ी तक जाया करते थे बोस
यहीं रह कर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने स्वास्थ्य लाभ लिया. इस दौरान नेताजी यहां से तीन किलोमीटर दूर एक बावड़ी पर रोजाना जाया करते थे. नेताजी बावड़ी का पानी ही पिया करते थे. देवदार की आबोहवा के बीच नेताजी पूरी तरह स्वस्थ हो गए. इसके बाद से ही इस बावड़ी का नाम नेताजी के नाम पर सुभाष बावड़ी रखा गया.

डलहौजी प्रवास के दौरान किया आजाद हिंद फौज का गठन
माना यह भी जाता है कि नेताजी ने डलहौजी प्रवास के दौरान ही आजाद हिंद फौज का गठन किया और आजादी की लड़ाई की योजना बनाई. इसके अलावा डलहौजी के एक चौक का नाम भी सुभाष चौक रखा गया, जहां नेताजी की आदम कद प्रतिमा स्थापित है.

स्मारक बनवाकर की केवल खानापूर्ति
नेताजी की याद में सुभाष बावड़ी में स्मारक बनवाकर खानापूर्ति कर दी गई है. इसके बाद स्मारक के उचित रख-रखाव की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. यही वजह है कि इस स्मारक की हालत बेहद दयनीय हो चुकी है. अब ऐसे में सवाल यह है कि क्या स्मारक बनाकर ही जिम्मेदारी पूरी हो जाती है या फिर उन्हें उचित सम्मान देना भी जरूरी है.

नए सिरे से बावड़ी निर्माण की मांग
इसमें गलती सिर्फ सरकार-प्रशासन की मानी जाए या इसके जिम्मेदार बावड़ी पर शराब पीकर हुड़दंग मचाने वाले असामाजिक तत्व भी है. स्थानीय लोग सरकार-प्रशासन से नए सिरे से बावड़ी के निर्माण की मांग कर रहे हैं. सुभाष बावड़ी की ओर जाने वाले रास्ते की हालत भी बेहद खस्ता है. बावड़ी पर साफ-सफाई की व्यवस्था तक नहीं है. बावड़ी पर जगह-जगह गंदगी के ढेर नजर आते हैं.

उचित सम्मान देने की जरूरत
बावड़ी पर शराब पीकर हुड़दंग मचाने वाले असामाजिक तत्व शराब की खाली बोतलें तक यहां फेंककर चल जाते हैं, जिससे स्मारकों का सम्मान और अस्तित्व खतरे में है. सरकार-प्रशासन के चहिए कि स्मारक की ऐतिहासिक धरोहर के अस्तित्व को बचाया जाए. ताकि महान स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदान सिर्फ किताबों तक ही सीमित न रह जाए.
ये भी पढ़ें- नेताजी बोस: आज भी मिलती है उनकी जिंदगी से प्रेरणा

डलहौजी : 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा' और 'जय हिन्द' इन नारों से आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 125वीं जयंती है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हैं, जिनसे आज का युवा वर्ग प्रेरणा लेता है.

नेताजी का डलहौजी से है खास नाता

23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में जन्मे नेताजी सुभाष चंद्र बोस का हिमाचल प्रदेश के डलहौजी शहर के साथ विशेष नाता रहा है. पांच मई, 1937 को नेताजी डलहौजी आए थे. इससे पूर्व अंग्रेजों ने उन्हें जेल में कैद कर रखा था. जहां उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था. आज हम नेताजी को उनकी 125वीं जयंती के मौके पर याद कर रहे हैं, और इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं डलहौजी में बिताए उनके दिनों के बारे में.

नेताजी ने डलहौजी में लिया था स्वास्थ्य लाभ
नेताजी के खराब होते स्वास्थ्य को देख हुए उन्हें रिहा कर दिया गया था. इसके बाद नेताजी अपने मित्र डॉ. धर्मवीर के साथ डलहौजी आए. डॉ. धर्मवीर के निवास स्थान कायनांस एस्टेट बंगले में करीब छह महीने तक यहां रहे. उस समय यहां पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत भी किया गया.

तीन किलोमीटर पैदल चल बावड़ी तक जाया करते थे बोस
यहीं रह कर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने स्वास्थ्य लाभ लिया. इस दौरान नेताजी यहां से तीन किलोमीटर दूर एक बावड़ी पर रोजाना जाया करते थे. नेताजी बावड़ी का पानी ही पिया करते थे. देवदार की आबोहवा के बीच नेताजी पूरी तरह स्वस्थ हो गए. इसके बाद से ही इस बावड़ी का नाम नेताजी के नाम पर सुभाष बावड़ी रखा गया.

डलहौजी प्रवास के दौरान किया आजाद हिंद फौज का गठन
माना यह भी जाता है कि नेताजी ने डलहौजी प्रवास के दौरान ही आजाद हिंद फौज का गठन किया और आजादी की लड़ाई की योजना बनाई. इसके अलावा डलहौजी के एक चौक का नाम भी सुभाष चौक रखा गया, जहां नेताजी की आदम कद प्रतिमा स्थापित है.

स्मारक बनवाकर की केवल खानापूर्ति
नेताजी की याद में सुभाष बावड़ी में स्मारक बनवाकर खानापूर्ति कर दी गई है. इसके बाद स्मारक के उचित रख-रखाव की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. यही वजह है कि इस स्मारक की हालत बेहद दयनीय हो चुकी है. अब ऐसे में सवाल यह है कि क्या स्मारक बनाकर ही जिम्मेदारी पूरी हो जाती है या फिर उन्हें उचित सम्मान देना भी जरूरी है.

नए सिरे से बावड़ी निर्माण की मांग
इसमें गलती सिर्फ सरकार-प्रशासन की मानी जाए या इसके जिम्मेदार बावड़ी पर शराब पीकर हुड़दंग मचाने वाले असामाजिक तत्व भी है. स्थानीय लोग सरकार-प्रशासन से नए सिरे से बावड़ी के निर्माण की मांग कर रहे हैं. सुभाष बावड़ी की ओर जाने वाले रास्ते की हालत भी बेहद खस्ता है. बावड़ी पर साफ-सफाई की व्यवस्था तक नहीं है. बावड़ी पर जगह-जगह गंदगी के ढेर नजर आते हैं.

उचित सम्मान देने की जरूरत
बावड़ी पर शराब पीकर हुड़दंग मचाने वाले असामाजिक तत्व शराब की खाली बोतलें तक यहां फेंककर चल जाते हैं, जिससे स्मारकों का सम्मान और अस्तित्व खतरे में है. सरकार-प्रशासन के चहिए कि स्मारक की ऐतिहासिक धरोहर के अस्तित्व को बचाया जाए. ताकि महान स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदान सिर्फ किताबों तक ही सीमित न रह जाए.
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