नई दिल्ली : पेगासस जासूसी मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के शासन द्वारा शासित एक लोकतांत्रिक देश में व्यक्तियों की अंधाधुंध जासूसी की अनुमति नहीं दी जा सकती है. यह केवल संविधान के तहत कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन करके पर्याप्त वैधानिक सुरक्षा उपायों के साथ ही संभव है.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने लोकतंत्र में व्यक्तियों की अंधाधुंध निगरानी की प्रथा, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ठंडा प्रभाव डालता है, के खिलाफ अपना कड़ा विरोध व्यक्त किया.
कोर्ट ने कहा कि निगरानी का प्रेस की स्वतंत्रता पर ठंडा प्रभाव पड़ेगा. कोर्ट ने कहा कि पत्रकारिता के स्रोतों की सुरक्षा प्रेस की स्वतंत्रता के लिए बुनियादी शर्तों में से एक है.
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आदेश में कहा गया कि इस तरह के अधिकार का एक महत्वपूर्ण और आवश्यक परिणाम सूचना के स्रोतों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है. पत्रकारिता स्रोतों की सुरक्षा प्रेस की स्वतंत्रता के लिए बुनियादी शर्तों में से एक है. इस तरह की सुरक्षा के बिना, स्रोतों को जनहित के मुद्दों पर जनता को सूचित करने के लिए प्रेस की सहायता करने से रोका जा सकता है. एक लोकतांत्रिक समाज में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए पत्रकारिता के स्रोतों के संरक्षण के महत्व और इस पर जासूसी तकनीकों के संभावित ठंडे प्रभाव को ध्यान में रखते हुए वर्तमान मामले में र्कोट का कार्य बहुत महत्वपूर्ण है. इस आलोक में यह न्यायालय सच्चाई का निर्धारण करने और यहां लगाए गए आरोपों की तह तक जाने के लिए मजबूर है.