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सौरव गांगुली का जमीन आवंटन रद्द, HC ने कहा- कोई नहीं कर सकता कानून से ऊपर होने का दावा

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सौरव गांगुली को जमीन का आवंटन रद्द कर दिया और भारी जुर्माना भी लगाया है. कोर्ट ने इस मामले में यह भी कहा कि कोई भी कानून से ऊपर, विशिष्ट होने का दावा नहीं कर सकता.

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Published : Sep 28, 2021, 4:26 PM IST

Updated : Sep 28, 2021, 4:39 PM IST

कोलकाता : कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (हिडको) द्वारा पूर्व क्रिकेटर और वर्तमान बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली को एक शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के उद्देश्य से आवंटित एक भूखंड का आवंटन रद्द कर दिया.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ ने राज्य सरकार और राज्य के स्वामित्व वाले पश्चिम बंगाल हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (HIDCO) पर 50000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है. गांगुली एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी पर 10000 रुपये का जुर्माना लगाया है.

आवंटन प्रक्रिया के दौरान हिडको के आचरण के खिलाफ कड़ा विरोध व्यक्त करते हुए कोर्ट ने कहा कि सौरव गांगुली शर्तें मामने के लिए सक्षम हैं. कोर्ट ने यह मानते हुए कहा कि गांगुली सिस्टम के साथ खेलने में सक्षम थे.

तथ्यों ने स्पष्ट रूप से स्थापित किया कि प्रतिवादी संख्या 9 अपनी शर्तों को निर्धारित करने की स्थिति में थे, जैसे कि यह ऐसा मामला नहीं था जहां राज्य अपनी संपत्ति से निपट रहा था, जहां निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक था. इस बार भी उसे बिना किसी विज्ञापन के प्लॉट आवंटित किया गया था.

कोर्ट ने आगे कहा कि आवंटन प्रक्रिया के दौरान वास्तविक जांच नहीं की गई थी और राज्य मंत्रिमंडल या हिडको के निदेशक मंडल द्वारा उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था. अदालत ने आगे टिप्पणी की, उन्होंने बंद आंखों से एक भूखंड आवंटित करने का फैसला किया. जैसे कि यह एक राज्य की संपत्ति नहीं थी बल्कि एक निजी लिमिटेड कंपनी थी. जिसे कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना अपनी इच्छा के अनुसार अपनी संपत्ति से निपटने की अनुमति हो.

कोर्ट ने स्वीकार किया कि गांगुली ने क्रिकेट में देश का नाम रोशन किया है. यह मानते हुए कि कानून की नजर में हर कोई समान है और किसी से विशेष व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए. देश हमेशा खिलाड़ियों के साथ खड़ा होता है, खासकर जो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देश का प्रतिनिधित्व करते हैं.

यह भी एक सच्चाई है कि सौरव गांगुली ने क्रिकेट में देश का नाम रोशन किया है लेकिन जब कानून की बात आती है, तो हमारी संवैधानिक योजना यह है कि सभी समान हैं और कोई भी कानून से ऊपर होने का दावा नहीं कर सकता है.

एक जनहित याचिका (पीआईएल) में यह कहा गया था कि आवंटन भूखंडों के आवंटन के लिए नियमों, विनियमों और नीतियों के पूर्ण उल्लंघन में किया गया था. अदालत के ध्यान में यह भी लाया गया कि गांगुली को किए गए आवंटन को चुनौती देने वाले मुकदमे के पहले दौर में, सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में आवंटन निर्धारित किया था और प्रतिवादी अधिकारियों के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की थी.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद गांगुली ने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री से अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्कूल के निर्माण के लिए प्लॉट के आवंटन के लिए अनुरोध किया था. इसी के तहत उन्हें प्लॉट आवंटित किया गया.

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस तरह का आवंटन एक अवैध प्रक्रिया के अनुसार किया गया और देय लीज प्रीमियम ₹ 10.98 करोड़ से घटाकर ₹ 5.27 करोड़ कर दिया गया. यह भी प्रस्तुत किया गया था कि गांगुली का भूखंड के लिए आवेदन करने का कोई रिकॉर्ड नहीं है और उन्होंने पद का दुरुपयोग करके मुख्यमंत्री से सीधे बात की थी.

दूसरी ओर प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि सरकार अपने विवेक पर भूखंडों को आवंटित करने की शक्ति सुरक्षित रखती है. इस तरह के आवंटन की शर्तों को भी संशोधित कर सकती है. यह आगे प्रस्तुत किया गया था कि चूंकि गांगुली को परियोजना को लागू करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था, इसलिए आवंटन के लिए ऐसा अनुरोध किया गया. कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि गांगुली के साथ पक्षपात किया गया.

कोर्ट ने कहा कि जैसा कि पिछले मुकदमेबाजी से स्पष्ट है कि प्रतिवादी संख्या 9 की सत्ता के गलियारों तक अच्छी पहुंच थी. जो कि मामले के तथ्यों से बहुत बड़ा है. उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री को दिनांक 09 जुलाई के पत्र के माध्यम से एक अनुरोध प्रस्तुत किया.

2012 में विद्यालय निर्माण के लिए 2.5 एकड़ भूमि आवंटित करने का अनुरोध किया गया. पत्र में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि भूखंड को किसी धर्मार्थ संस्थान को आवंटित करने के लिए आवेदन किया जा रहा है. पत्र की सामग्री से यह स्पष्ट है कि यह सादे और सरल वाणिज्यिक उद्यम के लिए इस्तेमाल किया जाना था.

यह भी पढ़ें-भवानीपुर उपचुनाव से संबंधित याचिका खारिज

बेंच ने आगे कहा कि मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट और इस कोर्ट द्वारा निर्धारित नियमों, विनियमों और कानून को प्रभारी व्यक्तियों की सनक और पसंद पर पूरी तरह से अलविदा दिया गया. याचिका को खारिज करने से पहले कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर मनमानी शक्ति का ऐसा प्रयोग जारी रहता है, तो इसका प्रयोग करने वाले व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा.

कोलकाता : कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (हिडको) द्वारा पूर्व क्रिकेटर और वर्तमान बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली को एक शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के उद्देश्य से आवंटित एक भूखंड का आवंटन रद्द कर दिया.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ ने राज्य सरकार और राज्य के स्वामित्व वाले पश्चिम बंगाल हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (HIDCO) पर 50000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है. गांगुली एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी पर 10000 रुपये का जुर्माना लगाया है.

आवंटन प्रक्रिया के दौरान हिडको के आचरण के खिलाफ कड़ा विरोध व्यक्त करते हुए कोर्ट ने कहा कि सौरव गांगुली शर्तें मामने के लिए सक्षम हैं. कोर्ट ने यह मानते हुए कहा कि गांगुली सिस्टम के साथ खेलने में सक्षम थे.

तथ्यों ने स्पष्ट रूप से स्थापित किया कि प्रतिवादी संख्या 9 अपनी शर्तों को निर्धारित करने की स्थिति में थे, जैसे कि यह ऐसा मामला नहीं था जहां राज्य अपनी संपत्ति से निपट रहा था, जहां निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक था. इस बार भी उसे बिना किसी विज्ञापन के प्लॉट आवंटित किया गया था.

कोर्ट ने आगे कहा कि आवंटन प्रक्रिया के दौरान वास्तविक जांच नहीं की गई थी और राज्य मंत्रिमंडल या हिडको के निदेशक मंडल द्वारा उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था. अदालत ने आगे टिप्पणी की, उन्होंने बंद आंखों से एक भूखंड आवंटित करने का फैसला किया. जैसे कि यह एक राज्य की संपत्ति नहीं थी बल्कि एक निजी लिमिटेड कंपनी थी. जिसे कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना अपनी इच्छा के अनुसार अपनी संपत्ति से निपटने की अनुमति हो.

कोर्ट ने स्वीकार किया कि गांगुली ने क्रिकेट में देश का नाम रोशन किया है. यह मानते हुए कि कानून की नजर में हर कोई समान है और किसी से विशेष व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए. देश हमेशा खिलाड़ियों के साथ खड़ा होता है, खासकर जो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देश का प्रतिनिधित्व करते हैं.

यह भी एक सच्चाई है कि सौरव गांगुली ने क्रिकेट में देश का नाम रोशन किया है लेकिन जब कानून की बात आती है, तो हमारी संवैधानिक योजना यह है कि सभी समान हैं और कोई भी कानून से ऊपर होने का दावा नहीं कर सकता है.

एक जनहित याचिका (पीआईएल) में यह कहा गया था कि आवंटन भूखंडों के आवंटन के लिए नियमों, विनियमों और नीतियों के पूर्ण उल्लंघन में किया गया था. अदालत के ध्यान में यह भी लाया गया कि गांगुली को किए गए आवंटन को चुनौती देने वाले मुकदमे के पहले दौर में, सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में आवंटन निर्धारित किया था और प्रतिवादी अधिकारियों के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की थी.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद गांगुली ने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री से अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्कूल के निर्माण के लिए प्लॉट के आवंटन के लिए अनुरोध किया था. इसी के तहत उन्हें प्लॉट आवंटित किया गया.

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस तरह का आवंटन एक अवैध प्रक्रिया के अनुसार किया गया और देय लीज प्रीमियम ₹ 10.98 करोड़ से घटाकर ₹ 5.27 करोड़ कर दिया गया. यह भी प्रस्तुत किया गया था कि गांगुली का भूखंड के लिए आवेदन करने का कोई रिकॉर्ड नहीं है और उन्होंने पद का दुरुपयोग करके मुख्यमंत्री से सीधे बात की थी.

दूसरी ओर प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि सरकार अपने विवेक पर भूखंडों को आवंटित करने की शक्ति सुरक्षित रखती है. इस तरह के आवंटन की शर्तों को भी संशोधित कर सकती है. यह आगे प्रस्तुत किया गया था कि चूंकि गांगुली को परियोजना को लागू करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था, इसलिए आवंटन के लिए ऐसा अनुरोध किया गया. कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि गांगुली के साथ पक्षपात किया गया.

कोर्ट ने कहा कि जैसा कि पिछले मुकदमेबाजी से स्पष्ट है कि प्रतिवादी संख्या 9 की सत्ता के गलियारों तक अच्छी पहुंच थी. जो कि मामले के तथ्यों से बहुत बड़ा है. उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री को दिनांक 09 जुलाई के पत्र के माध्यम से एक अनुरोध प्रस्तुत किया.

2012 में विद्यालय निर्माण के लिए 2.5 एकड़ भूमि आवंटित करने का अनुरोध किया गया. पत्र में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि भूखंड को किसी धर्मार्थ संस्थान को आवंटित करने के लिए आवेदन किया जा रहा है. पत्र की सामग्री से यह स्पष्ट है कि यह सादे और सरल वाणिज्यिक उद्यम के लिए इस्तेमाल किया जाना था.

यह भी पढ़ें-भवानीपुर उपचुनाव से संबंधित याचिका खारिज

बेंच ने आगे कहा कि मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट और इस कोर्ट द्वारा निर्धारित नियमों, विनियमों और कानून को प्रभारी व्यक्तियों की सनक और पसंद पर पूरी तरह से अलविदा दिया गया. याचिका को खारिज करने से पहले कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर मनमानी शक्ति का ऐसा प्रयोग जारी रहता है, तो इसका प्रयोग करने वाले व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा.

Last Updated : Sep 28, 2021, 4:39 PM IST
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