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असम की जमीन मेघालय को दे रहे हैं सीएम हिमंत सरमा : कांग्रेस - असम से राज्यसभा सांसद रिपुन बोरा

असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों ने बीते दिनों दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी और दोनों राज्यों के बीच सीमा समझौते से संबंधित दस्तावेज सौंपे था. वहीं, कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि असम के सीएम राज्य की जमीन मेघालय को दे रहे हैं. साथ ही कांग्रेस ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने की बात कही है. ईटीवी भारत संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट..

Congress leader Ripun Bora
राज्यसभा सांसद रिपुन बोरा
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Published : Jan 24, 2022, 9:50 PM IST

Updated : Jan 25, 2022, 6:13 AM IST

नई दिल्ली : असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों द्वारा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दोनों राज्यों के बीच सीमा समझौते से संबंधित दस्तावेज सौंपे जाने के कुछ दिनों बाद, कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि सीमा मुद्दे (Assam Meghalaya border row) के किसी भी समाधान के लिए संसद की मंजूरी की आवश्यकता होती है. कांग्रेस ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाएगी.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और असम से राज्यसभा सांसद रिपुन बोरा (Congress leader Ripun Bora) ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि असम और मेघालय दोनों संवैधानिक सीमा साझा करते हैं, न कि ऐतिहासिक सीमा. इसलिए, दशकों से चले आ रहे सीमा विवाद के स्थायी समाधान के लिए संसद की सहमति की आवश्यकता है. बोरा ने कहा कि संसद के आगामी सत्र में इस मुद्दे को उठाने के अलावा कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर उच्चतम न्यायालय में भी जाएगी.

कांग्रेस सांसद का कहना है कि हम इस मुद्दे को संसद में जरूर उठाएंगे क्योंकि सीमा विवाद का कोई भी समाधान संवैधानिक होना चाहिए. उन्होंने कहा कि 1985 में, असम और मेघालय सरकार ने न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ को दोनों राज्यों के बीच बॉर्डर के सीमांकन के लिए एक समिति का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया था. बोरा ने आगे कहा कि समिति ने मेघालय सरकार के कुछ दावों और सिफारिशों को भी खारिज कर दिया था.

मेघालय बनने के बाद दोनों राज्यों में कभी भी सीमा मुद्दे पर आम सहमति नहीं बनी है. बोरा ने कहा कि अचानक असम के सीएम अपनी जमीन दूसरे राज्य को दे देते हैं जो बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है. हम भी समाधान चाहते हैं, लेकिन असम के हितों की कीमत पर नहीं होना चाहिए.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Assam CM Himanta Biswa Sarma) और उनके मेघालय समकक्ष कोनराड संगमा (Conrad Sangma) के बीच निरंतर बातचीत के बाद, दोनों राज्य अपने सीमा विवादों को सुलझाने पर सहमत हुए. बोरा ने दावा किया कि स्थलाकृतिक सर्वेक्षण रिपोर्ट (topographical survey report) हैं, जिससे हमारे इस दावे का पता लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा असम की जमीन मेघालय को दे रहे हैं.

यह भी पढ़ें- अमित शाह से मिले असम-मेघालय के मुख्यमंत्री, सीमा समझौते के बारे में दी जानकारी

बता दें, असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों द्वारा जिस समझौते पर काम किया जा रहा है, उसका दोनों राज्यों की सीमा पर रहने वाले कई गारो गांवों (Garo villages) के लोग विरोध कर रहे हैं. हाल ही में असम के मुख्यमंत्री को सौंपे गए एक ज्ञापन में गारो गांवों के प्रतिनिधियों का दावा है कि संसद ने असम पुनर्संगठन (मेघालय) अधिनियम 1969 पारित किया था और पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम 1971 के तहत असम के अंदर अलग राज्य मेघालय (Meghalaya within the State of Assam) का गठन किया जाएगा.

इन वर्षों में दोनों राज्यों ने विभिन्न समुदायों के बीच कई झड़पें देखीं. मेघालय को 1972 में असम से अलग कर बनाया गया था. बता दें, असम और मेघालय 885 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं.

नई दिल्ली : असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों द्वारा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दोनों राज्यों के बीच सीमा समझौते से संबंधित दस्तावेज सौंपे जाने के कुछ दिनों बाद, कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि सीमा मुद्दे (Assam Meghalaya border row) के किसी भी समाधान के लिए संसद की मंजूरी की आवश्यकता होती है. कांग्रेस ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाएगी.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और असम से राज्यसभा सांसद रिपुन बोरा (Congress leader Ripun Bora) ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि असम और मेघालय दोनों संवैधानिक सीमा साझा करते हैं, न कि ऐतिहासिक सीमा. इसलिए, दशकों से चले आ रहे सीमा विवाद के स्थायी समाधान के लिए संसद की सहमति की आवश्यकता है. बोरा ने कहा कि संसद के आगामी सत्र में इस मुद्दे को उठाने के अलावा कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर उच्चतम न्यायालय में भी जाएगी.

कांग्रेस सांसद का कहना है कि हम इस मुद्दे को संसद में जरूर उठाएंगे क्योंकि सीमा विवाद का कोई भी समाधान संवैधानिक होना चाहिए. उन्होंने कहा कि 1985 में, असम और मेघालय सरकार ने न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ को दोनों राज्यों के बीच बॉर्डर के सीमांकन के लिए एक समिति का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया था. बोरा ने आगे कहा कि समिति ने मेघालय सरकार के कुछ दावों और सिफारिशों को भी खारिज कर दिया था.

मेघालय बनने के बाद दोनों राज्यों में कभी भी सीमा मुद्दे पर आम सहमति नहीं बनी है. बोरा ने कहा कि अचानक असम के सीएम अपनी जमीन दूसरे राज्य को दे देते हैं जो बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है. हम भी समाधान चाहते हैं, लेकिन असम के हितों की कीमत पर नहीं होना चाहिए.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Assam CM Himanta Biswa Sarma) और उनके मेघालय समकक्ष कोनराड संगमा (Conrad Sangma) के बीच निरंतर बातचीत के बाद, दोनों राज्य अपने सीमा विवादों को सुलझाने पर सहमत हुए. बोरा ने दावा किया कि स्थलाकृतिक सर्वेक्षण रिपोर्ट (topographical survey report) हैं, जिससे हमारे इस दावे का पता लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा असम की जमीन मेघालय को दे रहे हैं.

यह भी पढ़ें- अमित शाह से मिले असम-मेघालय के मुख्यमंत्री, सीमा समझौते के बारे में दी जानकारी

बता दें, असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों द्वारा जिस समझौते पर काम किया जा रहा है, उसका दोनों राज्यों की सीमा पर रहने वाले कई गारो गांवों (Garo villages) के लोग विरोध कर रहे हैं. हाल ही में असम के मुख्यमंत्री को सौंपे गए एक ज्ञापन में गारो गांवों के प्रतिनिधियों का दावा है कि संसद ने असम पुनर्संगठन (मेघालय) अधिनियम 1969 पारित किया था और पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम 1971 के तहत असम के अंदर अलग राज्य मेघालय (Meghalaya within the State of Assam) का गठन किया जाएगा.

इन वर्षों में दोनों राज्यों ने विभिन्न समुदायों के बीच कई झड़पें देखीं. मेघालय को 1972 में असम से अलग कर बनाया गया था. बता दें, असम और मेघालय 885 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं.

Last Updated : Jan 25, 2022, 6:13 AM IST
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