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चैत्र नवरात्र में हरिद्वार स्थित सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर के करें दर्शन, बेहद खास है महिमा

हरिद्वार में मां काली का ऐसा दक्षिण मुखी मंदिर है. जिसकी महिमा दूर-दूर तक है. इस मंदिर में माता की मूर्ति का मुख तो पूर्व दिशा की ओर है, लेकिन मंदिर का नाम दक्षिण काली मंदिर है. इस मंदिर में काले और सफेद रंग के नाग-नागिन के जोड़े भी रहते हैं. जानिए नवरात्रि के अलावा शनिवार के दिन यहां दर्शन करना क्यों खास है...

Siddhpeeth Dakshin Kali Temple at Haridwar
हरिद्वार स्थित सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर
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Published : Apr 2, 2022, 3:50 PM IST

हरिद्वारः मां दुर्गा की उपासना के लिए खास महत्व रखने वाले चैत्र नवरात्रि की शुरुआत आज से हो रही है. नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों में पूजा की जाती है. नवरात्रि के दिनों में श्रद्धालु विभिन्न मंदिरों में जाकर माता का आशीर्वाद लेते हैं. हरिद्वार में भी कई मंदिर और सिद्ध पीठ हैं. जहां माता रानी के दर्शन कर सकते हैं, लेकिन एक मंदिर बेहद खास है. जिसे दक्षिण काली मंदिर के नाम से जाना जाता है.

ईटीवी भारत आज आपको मां काली के सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर की महिमा से रूबरू कराएगा. जिसका काफी महत्व माना जाता है. जो नील धारा क्षेत्र में स्थित है. वैसे तो किसी भी मंदिर का नाम उसमें रखी मूर्ति या भगवान के नाम पर रखा जाता है, लेकिन हरिद्वार का यह मंदिर अपने मुख की वजह से जाना जाता है. जिसमें माता की मूर्ति का मुख तो पूर्व दिशा की ओर है, लेकिन मंदिर का नाम दक्षिण काली मंदिर है.

मान्‍यता है कि यहां आने वाले हर भक्‍त की मुराद जरूर पूरी होती है. मंदिर में स्‍थापित मां काली की प्रतिमा का मुख पूरब दिशा की ओर है, लेकिन गंगा की दिशा यहां पर दक्षिण की ओर है. यही वजह है कि इस मंदिर को दक्षिण काली मंदिर के नाम से जाना जाता है. यही कारण है कि यहां देश दुनिया से लोग दक्षिण मुखी मां काली के दर्शन करने आते हैं. नवरात्र के दौरान यहां नौ दिन नहीं बल्कि पंद्रह दिन तक विशेष पूजा चलती है.

चैत्र नवरात्र में सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर के करें दर्शन.

बाबा कामराज ने की थी स्‍थापना: इस सिद्धपीठ के बारे में धार्मिक ग्रंथों में भी उल्लेख भी मिलता है. बताया जाता है कि इस मंदिर की स्‍थापना बाबा कामराज ने की थी. काली मां ने उन्‍हें स्‍वप्‍न में इस मंदिर की स्‍थापना करने का निर्देश दिया था. इसके अलावा बाबा कामराज ने इसी जगह पर आल्‍हा और उनकी पत्‍नी मछला को यहां पर दीक्षा दी थी. बाबा कामराज ने गंगा के किनारे 1008 नरमुंडों पर मां को स्थापित किया था और तभी से इसके गर्भगृह में मां स्थापित हैं.

2700 साल पुराना त्रिशूल, शनिवार का है विशेष महत्व: इस मंदिर के गर्भ गृह के कोने में 2700 साल पुराना त्रिशूल आज भी लगा हुआ है. जिससे इस मंदिर की प्राचीनता का सरलता से अंदाजा लगाया जा सकता है. नवरात्रि के अलावा प्रत्येक शनिवार को वे लोग ज्यादा पहुंचते हैं, जो परेशान हैं. इस मंदिर में आकर उनका तनाव और परेशानी दूर होती है.

हमेशा रहते हैं नाग-नागिन और अजगर: स्‍थानीय लोग बताते हैं कि यहां पर काले और सफेद रंग के नाग-नागिन के जोड़े रहते हैं. साथ ही अजगर भी निवास करता है. हालांकि, ये किसी को नजर नहीं आते. ये केवल सावन के दिनों में ही दिखाई देते हैं, लेकिन आज तक इन्‍होंने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है.

क्या कहते हैं महंत: बीते कई सालों से मंदिर संभालने वाले आचार्य पवन दत्त मिश्र का कहना है कि यह एक पौराणिक सिद्धपीठ है. यहां विराजमान मैया सबके कष्ट हरने वाली हैं. बताया जाता है की सतयुग व त्रेता में समुद्र मंथन के समय जब भगवान शंकर ने विषपान किया था तो वे विष का असर कम करने के लिए गंगा के इसी स्थान पर आकर स्नान किया था. तभी से गंगा का यह विशेष स्थान नील धारा के नाम से जाना जाता है. यह क्षेत्र कजरी वन नाम से इतिहास में दर्ज है. यही पास में सहला इंदल व तोतापुरी जी महाराज जी राम कृष्ण परमहंस जी के गुरु थे, उनका भी वट वृक्ष के नीचे आज भी स्थान है.

ये भी पढ़ें - नवरात्रि स्पेशल 2022: नमक की बोरी में आई थीं माता बालासुंदरी, शिवालिक पहाड़ियों के बीच है मां का भव्य दरबार

15 दिन के होते हैं नवरात्र: सभी जगह नवरात्रि नौ दिन के होते हैं, लेकिन काली की इस पीठ में नवरात्र पूरे पंद्रह दिन के होती है. अमावस्या और प्रतिपदा की संधि काल में माई का दस विधि से दिव्य स्नान होता है. जिसे पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद महाराज स्वयं करते हैं. जो श्रृंगार इस दिन किया जाता है, वो श्रृंगार सप्तमी की रात्रि तक चलता है. उस दिन स्नान करने के बाद ही कपड़ों को बदला जाता है.

क्या कहते हैं श्रद्धालु: श्रद्धालु अनुज का कहना है कि वे बीते कई सालों से आ रहे हैं. बताते हैं कि माई ने पूज्य गुरुदेव व महाराज को माध्यम बनाकर यहां का कायाकल्प कर दिया है. न केवल शनिवार बल्कि लगभग रोज ही भारी संख्या में लोग यहां माई के दर्शन करने आते हैं. यहां पर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

कैसे पहुंचे सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिरः चंडी देवी पैदल मार्ग के सामने मां काली के इस मंदिर तक कार के जरिए आने के लिए चंडीघाट पुल से होकर पहुंचना होगा. जबकि, बस या ट्रेन से आने वाले श्रद्धालुओं को बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से ऑटो आसानी से मिला जाता है. यहां तक आने के लिए करीब डेढ़ सौ रुपए खर्च करने होंगे.

हरिद्वारः मां दुर्गा की उपासना के लिए खास महत्व रखने वाले चैत्र नवरात्रि की शुरुआत आज से हो रही है. नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों में पूजा की जाती है. नवरात्रि के दिनों में श्रद्धालु विभिन्न मंदिरों में जाकर माता का आशीर्वाद लेते हैं. हरिद्वार में भी कई मंदिर और सिद्ध पीठ हैं. जहां माता रानी के दर्शन कर सकते हैं, लेकिन एक मंदिर बेहद खास है. जिसे दक्षिण काली मंदिर के नाम से जाना जाता है.

ईटीवी भारत आज आपको मां काली के सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर की महिमा से रूबरू कराएगा. जिसका काफी महत्व माना जाता है. जो नील धारा क्षेत्र में स्थित है. वैसे तो किसी भी मंदिर का नाम उसमें रखी मूर्ति या भगवान के नाम पर रखा जाता है, लेकिन हरिद्वार का यह मंदिर अपने मुख की वजह से जाना जाता है. जिसमें माता की मूर्ति का मुख तो पूर्व दिशा की ओर है, लेकिन मंदिर का नाम दक्षिण काली मंदिर है.

मान्‍यता है कि यहां आने वाले हर भक्‍त की मुराद जरूर पूरी होती है. मंदिर में स्‍थापित मां काली की प्रतिमा का मुख पूरब दिशा की ओर है, लेकिन गंगा की दिशा यहां पर दक्षिण की ओर है. यही वजह है कि इस मंदिर को दक्षिण काली मंदिर के नाम से जाना जाता है. यही कारण है कि यहां देश दुनिया से लोग दक्षिण मुखी मां काली के दर्शन करने आते हैं. नवरात्र के दौरान यहां नौ दिन नहीं बल्कि पंद्रह दिन तक विशेष पूजा चलती है.

चैत्र नवरात्र में सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर के करें दर्शन.

बाबा कामराज ने की थी स्‍थापना: इस सिद्धपीठ के बारे में धार्मिक ग्रंथों में भी उल्लेख भी मिलता है. बताया जाता है कि इस मंदिर की स्‍थापना बाबा कामराज ने की थी. काली मां ने उन्‍हें स्‍वप्‍न में इस मंदिर की स्‍थापना करने का निर्देश दिया था. इसके अलावा बाबा कामराज ने इसी जगह पर आल्‍हा और उनकी पत्‍नी मछला को यहां पर दीक्षा दी थी. बाबा कामराज ने गंगा के किनारे 1008 नरमुंडों पर मां को स्थापित किया था और तभी से इसके गर्भगृह में मां स्थापित हैं.

2700 साल पुराना त्रिशूल, शनिवार का है विशेष महत्व: इस मंदिर के गर्भ गृह के कोने में 2700 साल पुराना त्रिशूल आज भी लगा हुआ है. जिससे इस मंदिर की प्राचीनता का सरलता से अंदाजा लगाया जा सकता है. नवरात्रि के अलावा प्रत्येक शनिवार को वे लोग ज्यादा पहुंचते हैं, जो परेशान हैं. इस मंदिर में आकर उनका तनाव और परेशानी दूर होती है.

हमेशा रहते हैं नाग-नागिन और अजगर: स्‍थानीय लोग बताते हैं कि यहां पर काले और सफेद रंग के नाग-नागिन के जोड़े रहते हैं. साथ ही अजगर भी निवास करता है. हालांकि, ये किसी को नजर नहीं आते. ये केवल सावन के दिनों में ही दिखाई देते हैं, लेकिन आज तक इन्‍होंने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है.

क्या कहते हैं महंत: बीते कई सालों से मंदिर संभालने वाले आचार्य पवन दत्त मिश्र का कहना है कि यह एक पौराणिक सिद्धपीठ है. यहां विराजमान मैया सबके कष्ट हरने वाली हैं. बताया जाता है की सतयुग व त्रेता में समुद्र मंथन के समय जब भगवान शंकर ने विषपान किया था तो वे विष का असर कम करने के लिए गंगा के इसी स्थान पर आकर स्नान किया था. तभी से गंगा का यह विशेष स्थान नील धारा के नाम से जाना जाता है. यह क्षेत्र कजरी वन नाम से इतिहास में दर्ज है. यही पास में सहला इंदल व तोतापुरी जी महाराज जी राम कृष्ण परमहंस जी के गुरु थे, उनका भी वट वृक्ष के नीचे आज भी स्थान है.

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15 दिन के होते हैं नवरात्र: सभी जगह नवरात्रि नौ दिन के होते हैं, लेकिन काली की इस पीठ में नवरात्र पूरे पंद्रह दिन के होती है. अमावस्या और प्रतिपदा की संधि काल में माई का दस विधि से दिव्य स्नान होता है. जिसे पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद महाराज स्वयं करते हैं. जो श्रृंगार इस दिन किया जाता है, वो श्रृंगार सप्तमी की रात्रि तक चलता है. उस दिन स्नान करने के बाद ही कपड़ों को बदला जाता है.

क्या कहते हैं श्रद्धालु: श्रद्धालु अनुज का कहना है कि वे बीते कई सालों से आ रहे हैं. बताते हैं कि माई ने पूज्य गुरुदेव व महाराज को माध्यम बनाकर यहां का कायाकल्प कर दिया है. न केवल शनिवार बल्कि लगभग रोज ही भारी संख्या में लोग यहां माई के दर्शन करने आते हैं. यहां पर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

कैसे पहुंचे सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिरः चंडी देवी पैदल मार्ग के सामने मां काली के इस मंदिर तक कार के जरिए आने के लिए चंडीघाट पुल से होकर पहुंचना होगा. जबकि, बस या ट्रेन से आने वाले श्रद्धालुओं को बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से ऑटो आसानी से मिला जाता है. यहां तक आने के लिए करीब डेढ़ सौ रुपए खर्च करने होंगे.

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