विजयनगरम : अतीत में बहुत सी कहानियां सुनी गई होंगी. जैसे कि आध्यात्म की तलाश में मानव जाति से दूर जंगलों में अकेले रहने वाले लोग आदि. हालांकि यह अविश्वसनीय है कि इस युग में भी ऐसे लोग हैं! जी हां, ऐसा ही एक मामला आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले के दथिराजेरु मंडल के पेदाकड़ा गांव में देखने को मिला है.
वन क्षेत्र में पिछले सात दशकों से अकेली रह रही 75 वर्षीया पद्मावती देवी नाम की महिला इसका उदाहरण हैं. वे 15 साल की बहुत छोटी उम्र में जंगल में चली गई. पद्मावती गांव के पास मारुपल्लीकोंडा गई और वहां पहले एक छोटी सी झोपड़ी में रहीं. हालांकि अब, हम वन क्षेत्र में एक मंदिर देख सकते हैं. लेकिन पहले यह जंगली जानवरों, सांपों आदि के साथ बहुत घना क्षेत्र था. पद्मावती के परिवार के सदस्यों और ग्रामीणों ने उसे वापस लाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसने मना कर दिया.
मंदिर का निर्माण किया गया
जैसे, पद्मावती वहां रह रही थीं. आसपास के ग्रामीणों ने मिलकर 40 साल पहले पहाड़ी पर भगवान वेंकटेश्वर मंदिर का निर्माण किया था. तब से वे मंदिर में ही रह रही हैं. कुछ ने स्वेच्छा से आगे आकर वहां बिजली, पेयजल की व्यवस्था की. यहां सोमवार और शनिवार को भक्त मंदिर में दर्शन करने आते हैं.
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कपूर ही उनका भोजन है
पद्मावती देवी कहती हैं कि भक्त दूध, फल और उपहार लाते हैं लेकिन मैं उनमें से कुछ भी स्वीकार नहीं करती हूं. मुझे अब तक कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं है. मैं तो सिर्फ कपूर खाकर, अगरबत्ती के धुंए को सांस में ले कर और 60 साल से दिन में दो बार कॉफी पीकर गुजारा कर रही हूं. मुझे बिल्कुल भी भूख नहीं लगती है. उन्हें बिना भोजन के एकाकी जीवन जीता देख भक्त भी हैरान रह जाते हैं.