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Watch : एथलेटिक्स के क्षितिज पर नया सितारा विथ्या रामराज, ट्रक ड्राइवर की बेटी ने एशियन गेम्स में दिलाया कांस्य पदक

देश की गोल्डन गर्ल पीटी उषा के 39 साल पुराने रिकॉर्ड की बराबरी करते हुए कोयंबटूर के एक ट्रक ड्राइवर की 25 वर्षीय बेटी भारतीय ट्रैक और फील्ड पर नई ट्रैक क्वीन बनकर उभरी हैं. एशियाई खेल की 400 मीटर बाधा दौड़ में उन्होंने कांस्य पदक जीता, जबकि उनकी जुड़वा बहन निथ्या चौथे स्थान पर रहीं. बेटियों की सफलता में उनकी कड़ी मेहनत और धैर्य तो है ही साथ ही उनके माता-पिता की वर्षों की तपस्या शामिल है. चेन्नई ब्यूरो चीफ एमसी राजन की रिपोर्ट.

Vithya Ramraj
नई एथलीट क्वीन विथ्या रामराज
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 8, 2023, 10:31 PM IST

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चेन्नई : भारत की नई एथलीट क्वीन विथ्या रामराज (Vithya Ramraj) ने देश की पहली गोल्डन गर्ल पीटी उषा की याद दिला दी है. विथ्या कोयंबटूर की हैं. उनके पिता ट्रक ड्राइवर हैं. विथ्या ने 55.68 सेकेंड में 400 मीटर बाधा दौड़ पार कर कांस्य पदक जीता, जबकि उनकी जुड़वा बहन निथ्या चौथे स्थान पर रहीं.

कुछ साल पहले एक टूर्नामेंट में विथ्या ने फटे जूते पहनकर गोल्ड जीता था. तब उनके पैर से खून भी निकल रहा था. उस वक्त शायद ही किसी को अंदाजा होगा कि एक दिन यह लड़की अपनी जीत से पूरे देश का मान बढ़ाएगी. यह उनके दृढ़ संकल्प, मेहनत, लगन, धैर्य और उम्मीद का परिणाम है. ट्रक ड्राइवर की इस बेटी ने कितनी बाधाएं पार की, उसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. वह तीन बहन हैं. उनकी माता गृहणी हैं.

उनके लिए कांस्य पदक काफी मायने रखता है. उन्होंने पायली एक्सप्रेस पीटी उषा के रिकॉर्ड की बराबरी की है. उनकी जुड़वा बहन निथ्या चौथे स्थान पर रहीं. शायद क्षण भर की बात थी, वरना वह मेडल भी जीत सकती थीं. विथ्या ने इसी एशियन गेम में 1600 मीटर रिले मिक्स्ड प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल भी जीता.

उनका परिवार मीनाक्षीपुरम के एक रेंटल रूम में रहता आ रहा था. अब उन्होंने अपना एक नया घर बनवा लिया है. सबसे बड़ी बहन की शादी हो चुकी है. दोनों छोटी बहनें अपने सपने की उड़ान को पंख दे रही हैं. हालांकि, वैसा परिवार जिन्हें दो जून की रोटी जुटाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, उनके लिए यह रास्ता चुनना आसान नहीं था. साथ-साथ समाज की चुनौतियां अलग थीं. उनके पिता से भी लोगों ने पूछा, आखिर वे लड़कियां हैं, उनकी शादी किस तरह से करेंगे. उनकी मां मीना ने बताया कि उन्हें पग-पग पर इस तरह के सवालों का सामना करना पड़ा है.

दूसरे क्या कहते हैं, उन्होंने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया. ईटीवी भारत से बात करती हुईं मीना ने बताया कि 'मेरी आर्थिक स्थिति क्या है, यह मैं जानती हूं, फिर भी हमने अपनी बेटी के लिए पैसे जुटाए, ये अलग बात है कि इससे मेरा आर्थिक बोझ बढ़ गया.' मीना ने कहा कि 'एक जूते की कीमत 25 हजार रुपये और वह भी बहुत दिनों तक चलने वाला नहीं है.' वैसे, एशियन गेम्स में उनकी बेटी का खर्च सरकार ने वहन किया. खेल कोटे से ही दोनों बहनों को अब नौकरी भी मिल चुकी है.

विथ्या तीन बार नेशनल चैंपियन रह चुकी हैं. निथ्या ने भी राज्य लेवल पर प्रतियोगिता में कई मेडल जीते हैं. उनकी उम्र की लड़कियां शादी को प्राथमिकता देती हैं, लेकिन विथ्या और निथ्या ने दूसरा रास्ता अपनाया. और अब जो जीत उन्हें मिली, उसके सपने वे लंबे समय से देख रही थीं.

कम कमाई के साथ एक ट्रक ड्राइवर होने के बावजूद रामराज ने पड़ोसियों और रिश्तेदारों की बातों को नजरअंदाज कर दिया, साथ ही अपनी बेटियों की महत्वाकांक्षा को साकार करने में उनका समर्थन करने के लिए कड़ी मेहनत की. जब लड़कियों ने स्कूल में ट्रॉफियां जीतीं, तो उन्होंने उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए उन्हें एक कोच के अंडर रखा.

पिता रामराज बताते हैं कि 'शुरुआत में मेरी बेटियां घिसे-पिटे जूतों के साथ प्रशिक्षण लेती थीं, जबकि अन्य ब्रांडेड जूतों के साथ मैदान पर आती थीं. फिर परिवार चलाना ही मुश्किल हो गया. और तीन बेटियों के साथ, हम चुपचाप अपने प्रियजनों के उपहास को सहते रहे. लेकिन, दोनों बेटियों ने खेल को चुना और देश के लिए प्रशंसा अर्जित की.'

हालांकि, जब वह बताता है कि पूरा गांव विथ्या और निथ्या के हांग्जो से लौटने पर एक भव्य उत्सव के साथ उनका स्वागत करने का इंतजार कर रहा है, तो उसके आंखों में आंसू आ जाते हैं. उनकी उपलब्धि की सराहना करने वाले पोस्टर और बैनर के साथ, वे गांव का गौरव हैं. सभी बाधाओं को पार करते हुए, उन्होंने खेल के विश्व मानचित्र पर अवर्णनीय मीनाक्षीपुरम के लिए एक स्थान सुनिश्चित किया है.

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चेन्नई : भारत की नई एथलीट क्वीन विथ्या रामराज (Vithya Ramraj) ने देश की पहली गोल्डन गर्ल पीटी उषा की याद दिला दी है. विथ्या कोयंबटूर की हैं. उनके पिता ट्रक ड्राइवर हैं. विथ्या ने 55.68 सेकेंड में 400 मीटर बाधा दौड़ पार कर कांस्य पदक जीता, जबकि उनकी जुड़वा बहन निथ्या चौथे स्थान पर रहीं.

कुछ साल पहले एक टूर्नामेंट में विथ्या ने फटे जूते पहनकर गोल्ड जीता था. तब उनके पैर से खून भी निकल रहा था. उस वक्त शायद ही किसी को अंदाजा होगा कि एक दिन यह लड़की अपनी जीत से पूरे देश का मान बढ़ाएगी. यह उनके दृढ़ संकल्प, मेहनत, लगन, धैर्य और उम्मीद का परिणाम है. ट्रक ड्राइवर की इस बेटी ने कितनी बाधाएं पार की, उसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. वह तीन बहन हैं. उनकी माता गृहणी हैं.

उनके लिए कांस्य पदक काफी मायने रखता है. उन्होंने पायली एक्सप्रेस पीटी उषा के रिकॉर्ड की बराबरी की है. उनकी जुड़वा बहन निथ्या चौथे स्थान पर रहीं. शायद क्षण भर की बात थी, वरना वह मेडल भी जीत सकती थीं. विथ्या ने इसी एशियन गेम में 1600 मीटर रिले मिक्स्ड प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल भी जीता.

उनका परिवार मीनाक्षीपुरम के एक रेंटल रूम में रहता आ रहा था. अब उन्होंने अपना एक नया घर बनवा लिया है. सबसे बड़ी बहन की शादी हो चुकी है. दोनों छोटी बहनें अपने सपने की उड़ान को पंख दे रही हैं. हालांकि, वैसा परिवार जिन्हें दो जून की रोटी जुटाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, उनके लिए यह रास्ता चुनना आसान नहीं था. साथ-साथ समाज की चुनौतियां अलग थीं. उनके पिता से भी लोगों ने पूछा, आखिर वे लड़कियां हैं, उनकी शादी किस तरह से करेंगे. उनकी मां मीना ने बताया कि उन्हें पग-पग पर इस तरह के सवालों का सामना करना पड़ा है.

दूसरे क्या कहते हैं, उन्होंने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया. ईटीवी भारत से बात करती हुईं मीना ने बताया कि 'मेरी आर्थिक स्थिति क्या है, यह मैं जानती हूं, फिर भी हमने अपनी बेटी के लिए पैसे जुटाए, ये अलग बात है कि इससे मेरा आर्थिक बोझ बढ़ गया.' मीना ने कहा कि 'एक जूते की कीमत 25 हजार रुपये और वह भी बहुत दिनों तक चलने वाला नहीं है.' वैसे, एशियन गेम्स में उनकी बेटी का खर्च सरकार ने वहन किया. खेल कोटे से ही दोनों बहनों को अब नौकरी भी मिल चुकी है.

विथ्या तीन बार नेशनल चैंपियन रह चुकी हैं. निथ्या ने भी राज्य लेवल पर प्रतियोगिता में कई मेडल जीते हैं. उनकी उम्र की लड़कियां शादी को प्राथमिकता देती हैं, लेकिन विथ्या और निथ्या ने दूसरा रास्ता अपनाया. और अब जो जीत उन्हें मिली, उसके सपने वे लंबे समय से देख रही थीं.

कम कमाई के साथ एक ट्रक ड्राइवर होने के बावजूद रामराज ने पड़ोसियों और रिश्तेदारों की बातों को नजरअंदाज कर दिया, साथ ही अपनी बेटियों की महत्वाकांक्षा को साकार करने में उनका समर्थन करने के लिए कड़ी मेहनत की. जब लड़कियों ने स्कूल में ट्रॉफियां जीतीं, तो उन्होंने उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए उन्हें एक कोच के अंडर रखा.

पिता रामराज बताते हैं कि 'शुरुआत में मेरी बेटियां घिसे-पिटे जूतों के साथ प्रशिक्षण लेती थीं, जबकि अन्य ब्रांडेड जूतों के साथ मैदान पर आती थीं. फिर परिवार चलाना ही मुश्किल हो गया. और तीन बेटियों के साथ, हम चुपचाप अपने प्रियजनों के उपहास को सहते रहे. लेकिन, दोनों बेटियों ने खेल को चुना और देश के लिए प्रशंसा अर्जित की.'

हालांकि, जब वह बताता है कि पूरा गांव विथ्या और निथ्या के हांग्जो से लौटने पर एक भव्य उत्सव के साथ उनका स्वागत करने का इंतजार कर रहा है, तो उसके आंखों में आंसू आ जाते हैं. उनकी उपलब्धि की सराहना करने वाले पोस्टर और बैनर के साथ, वे गांव का गौरव हैं. सभी बाधाओं को पार करते हुए, उन्होंने खेल के विश्व मानचित्र पर अवर्णनीय मीनाक्षीपुरम के लिए एक स्थान सुनिश्चित किया है.

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