करनाल : एकादशी के व्रत का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का विधान है. एकादशी व्रत अपने नियमों को लेकर बेहद कठिन माना जाता है. हर माह के दोनों पक्षों को एकादशी व्रत होता है, वहीं माघ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है.
षटतिला एकादशी 28 जनवरी शुक्रवार को है. इस एकादशी पर तिल का बहुत महत्व माना गया है. इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करने और तिल के पानी में नहाने, तिलों का दान करने तिल से हवन और तर्पण आदि करने का विशेष महत्व है. ज्योतिष के अनुसार इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा और मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
भगवान विष्णु की पूजा करें - षटशिला एकादशी की पूजा विधि में पंडित पवन शर्मा ने बताया कि प्रातः काल स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें पुष्प धूप आदि अर्पित करें. इस दिन व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्णु की आराधना करें. साथ ही रात्रि में जागरण व हवन करें इसके बाद द्वादशी के दिन प्रातः काल उठकर स्नान के बाद भगवान विष्णु को भोग लगाएं और पंडित को भोजन कराने के बाद स्वयं ग्रहण करें.
षटतिला एकादशी के व्रत का महत्व- भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी का व्रत सच्चे मन से करने पर सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और घर में सुख समृद्धि का वास होता है. मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति इस एकादशी का व्रत नहीं रहता और केवल कथा सुनता है तो उसे यज्ञ के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है. साथ ही इस एकादशी का व्रत करने वाले उपासक को कष्टों से मुक्ति मिलती है. इस एकादशी व्रत के पुण्य फल से व्यक्ति को तीन तरह के पापों से मुक्ति मिलती है. पहला वाचिक, दूसरा मानसिक और तीसरा शारीरिक. मान्यता है कि व्यक्ति को जितना पुण्य कन्यादान हजारों साल की तपस्या और यज्ञों के करने से मिलता है उतना ही फल केवल इस एकादशी के व्रत से मिलता है.
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षटतिला एकादशी पर तिल का प्रयोग- षटतिला अर्थात तिल छह प्रकार से प्रयोग की जाने वाली एकादशी. इस दिन दिलों का 6 प्रकार से प्रयोग किया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रह्लाद पर अत्याचार कर रहा था तब भगवान विष्णु क्रोधित हो गए थे. गुस्से में भगवान को पसीना आ गया और जब पसीना जमीन पर गिरा तब तिल की उत्पत्ति हुई थी. इसलिए हिंदू धर्म में तिल का विशेष महत्व है. षठ तिला एकादशी के दिन तिल का 6 प्रकार से प्रयोग किया जाता है. पहला तिल मिश्रित जल से स्नान, दूसरा तिल के तेल से मालिश, तीसरा तिल से हवन करना, चौथा तिल वाले पानी का सेवन करना, पांचवा तिल का दान करना और छठा और अंतिम तिल से बने पदार्थों का सेवन करना. इन 6 तरीकों से तिल का प्रयोग करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की कृपा से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं जिससे व्यक्ति को स्वर्ग में स्थान मिलता है.
षटतिला एकादशी शुभ मुहूर्त- एकादशी तिथि प्रारंभ 23 जनवरी दिन शुक्रवार को मध्य रात्रि 2:16 से.
एकादशी तिथि समाप्त- 28 जनवरी दिन शुक्रवार को मध्य रात्रि 11: 35 तक.