हैदराबाद: अफगानिस्तान में तालिबान का राज कायम हो गया है. सत्ता कब्जाने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब यहां महिलाओं की क्या स्थिति होगी. इसको लेकर पूरी दुनिया में सवाल उठने शुरू हो गए हैं.
वहीं, तालिबान ने इसको लेकर कहा कि शरिया कानून के तहत ही अफगानिस्तान में महिलाओं को रहना होगा और उन्हें मुस्लिम कानून के तहत ही आजादी मिलेगी, लेकिन अब सवाल यह उठता है कि तालिबान के राज में शरिया कानून की कैसी व्याख्या है या तालिबान की नजर में शरिया कानून क्या है. ऐसे में जानना जरूरी है कि तालिबान के शासनकाल में शरिया कानून कैसा होगा और इससे महिलाओं के हालातों पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
क्या है शरिया कानून?
शरिया कानून इस्लाम की कानूनी प्रणाली है, जो कुरान और इस्लामी विद्वानों के फैसलों पर आधारित है, और मुसलमानों की दिनचर्या के लिए एक आचार संहिता के रूप में कार्य करता है. यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि वे (मुसलमान) जीवन के सभी क्षेत्रों में दैनिक दिनचर्या से लेकर व्यक्तिगत तक खुदा की इच्छाओं का पालन करते हैं. अरबी में शरीयत का अर्थ वास्तव में 'रास्ता' है और यह कानून के एक निकाय का उल्लेख नहीं करता है. शरिया कानून मूल रूप से कुरान और सुन्ना की शिक्षाओं पर निर्भर करता है, जिसमें पैगंबर मोहम्मद की बातें, शिक्षाएं और अभ्यास के बारे में लिखा है. शरिया कानून मुसलमानों के जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसका कितनी सख्ती से पालन किया जाता है.
शरिया कानून के तहत सजा ताज़ीर, यानि अगर अपराध की गंभीरता कम हो तो वो मुस्लिम कोर्ट के जज पर निर्भर करता है कि वो किस तरह की सजा सुनाता है. दूसरा है क़िसस, यानि अपराधों के परिणामस्वरूप अपराधी को पीड़ित के समान ही पीड़ा का सामना करना पड़ता है, वहीं तीसरा है, हुदूद यानिस सबसे गंभीर प्रकार का अपराध है, जिसे खुदा के कानून के खिलाफ माना जाता है. हुदद अपराधों में चोरी, डकैती, अश्लीलता और शराब पीना शामिल है और इसके तहत सजा का प्रावधान किया गया है, जिसमें हाथ पैर काट देना, कोड़े मारना और मौत की सजा तक देने का प्रावधान है. क़िसास एक इस्लामी शब्द है, जिसका अर्थ है 'आंख के बदले आंख'. हत्या के मामले में अगर अपराधी पर आरोप साबित हो जाता है, तो इस कानून के तहत अदालत को हत्यारे की जान लेने का अधिकार देता है.
तालिबान का शरिया कानून
1996 से 2001 तक अपने शासन के दौरान शरिया कानून के अत्यंत सख्त नियम को लागू करने के लिए तालिबान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा की गई, जिसमें सार्वजनिक पत्थरबाजी, कोड़े मारना, फांसी देकर किसी को बीच बाजार लटका देना तक शामिल था. शरिया कानून के तहत तालिबान ने देश में किसी भी प्रकार की गीत-संगीत को बैन कर दिया था. इस बार भी कंधार रेडियो स्टेशन पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने गीत बजाने पर पाबंदी लगा दी है. वहीं, पिछली बार चोरी करने वालों के हाथ काट लिए जाते थे. इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, शरिया कानून का हवाला देकर तालिबान ने अफगानिस्तान में बड़े नरसंहार किए. वहीं, करीब एक लाख 60 हजार लोगों को भूखा रखने के लिए उनका अनाज जला दिया गया और उनके खेतों में आग लगा दी गई थी. तालिबान के शासन के तहत, पेंटिंग, फोटोग्राफी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, वहीं किसी भी तरह की फिल्म पर भी प्रतिबंध था.
महिलाओं पर तालिबान शासन का प्रभाव
तालिबान के शासन के तहत महिलाओं को प्रभावी रूप से नजरबंद कर दिया गया था और उनकी पढ़ाई-लिखाई पर पाबंदी लगा दी गई थी. वहीं, आठ साल की उम्र से ऊपर की सभी लड़कियों के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य था और वो अकेले घर से बाहर नहीं निकल सकती थीं. इस बार भी तालिबान ने इसी नियम को लागू किया है. महिलाओं के लिए हाई-हिल्स सैंडल या जूते पहनने पर पाबंदी थी. तालिबान का मानना है कि हाई हिल्स जूतों से पुरूषों के मन में गलत ख्याल आते हैं. इसके साथ ही महिलाओं और लड़कियों के लिए खिड़की से देखना मना था और वो घर की बालकनी में भी नहीं आ सकती थी.