अमृतसर : भारत को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने में असंख्य सपूतों ने तन-मन-धन की परवाह किए बिना अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. अंग्रेजों की गुलामी में भारत में एक समय ऐसा भी था जब देश के हर हिस्से में क्रांति का माहौल था. स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हर शख्स की एक ही मांग थी- आजादी. हर कोई इस बात को लेकर व्याकुल था कि आखिर कब आजाद हवा में सांस ले सकेंगे. आजादी के इन्हीं परवानों में एक नाम है- राम मोहम्मद सिंह आजाद. आजादी के रणबांकुरों की शौर्यगाथा में यह नाम उधम सिंह के नाम से लोकप्रिय है.
दरअसल, राम मोहम्मद सिंह का मकसद देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराना था. आजादी उन अत्याचारी शासकों से, जो भारतीयों पर उनकी ही मातृभूमि पर अत्याचार कर रहे थे.
राष्ट्रीय एकता का संदेश देने वाले राम मोहम्मद सिंह ने कारनामा भी ऐसा किया कि अंग्रेज तय ही नहीं कर पाए कि पहले राम मोहम्मद को मारा जाए या उनका नाम खत्म किया जाए. अंग्रेजों को डर था कि राम मोहम्मद सिंह के जीते जी गोरों की 'फूट डालो और राज करो' की सबसे सफल नीति कामयाब नहीं हो सकती. इसलिए अंग्रेजों ने क्रांतिकारी राम मोहम्मद को सूली पर चढ़ा दिया. यह नाम क्षेत्र के तीन प्रमुख धर्मों की एकता को दर्शाता है.
राम मोहम्मद सिंह आजाद- राम: हिंदू, मोहम्मद: मुस्लिम, सिंह: सिख और आजाद: मुक्त.
जिस क्रांतिकारी के नाम से ब्रिटिश सरकार भयभीत थी, उस शख्स का नाम शहीद-ए-आजम उधम सिंह है. जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए उधम सिंह इंग्लैंड गए थे और 1940 में उन्होंने माइकल ओ'डायर को लंदन के कैक्सटन हॉल में खुलेआम गोली मारी थी. इस समय उधम सिंह का नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद था, इस कारण मर्डर ट्रायल के दौरान अंग्रेजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था.
अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर, 1899 को संगरूर (पंजाब) में हुआ था. जन्म के समय उनका नाम शेर सिंह था.
पंजाब के रहने वाले बरखा सिंह बताते हैं कि मां की मृत्यु के बाद शेर सिंह के परिवार में, उनके पिता थे. पिता बीमार रहते थे, इसलिए उनके चाचा चंचल सिंह शेर सिंह को सुनाम से अमृतसर अनाथालय ले गए.
अमृतसर अनाथालय में शेर सिंह को उधम सिंह का नाम मिला. महज 17 साल की उम्र में उधम के भाई साधु सिंह की भी मौत हो गई. उधम 19 साल के थे जब उन्होंने ब्रिटिश सरकार की क्रूरता और जलियांवाला बाग का खूनी नरसंहार देखा. उधम सिंह बैठक वाले कमरे में पानी परोस रहे थे कि अचानक गोलियों की बौछार शुरू हो गई. उधम सिंह ने इस नरसंहार का बदला लेने का संकल्प लिया.
उधम सिंह के बारे में लेखक प्रो. प्रशांत गौरव बताते हैं कि भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत के दौरान ही जनरल आर. डायर की मौत हो चुकी थी, वह भारत में ही मर चुके थे, लेकिन जलियांवाला बाग में गोलियां चलाने का आदेश देने वाला माइकल ओ'डायर इंग्लैंड चला गया थे. उधम सिंह को जैसे ही माइकल ओ'डायर का पता लगा, वह लंदन पहुंचने की कोशिशों में जुट गए.
बकौल प्रो. प्रशांत, उधम पहले दक्षिण अफ्रीका गए, इसके बाद इंग्लैंड और फिर अमेरिका गए. अमेरिका में उधम ने बम बनाना और पिस्टल हैंडलिंग जैसी चीजों की बारीकी सीखी.
लंदन में अलग-अलग तरह के काम करने के दौरान भी उधम सिंह का ध्यान अपने लक्ष्य से भटका नहीं था. वे लगातार डायर को ढूंढते रहे.
उधम सिंह के बारे में पंजाब के एक अन्य निवासी गुरचरण सिंह बताते हैं कि लंदन पहुंचने के बाद, उधम सिंह छिपकर छोटे-मोटे काम करते रहे, वह बढ़ई, इलेक्ट्रीशियन जैसे कई अन्य काम भी जानते थे. इस दौरान वे लगातार माइकल ओ'डायर की तलाश में भी लगे रहे. उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य माइकल ओ'डायर को मारना था. उधम सिंह ने माइकल ओ'डायर को मारने से पहले तत्कालीन गदर पार्टी के साथ संबंध भी विकसित किए.
भगत सिंह के कहने पर 1927 में उधम सिंह पंजाब लौट गए. मुल्तान में हथियार रखने और आर्म्स एक्ट के तहत 'गदर दी गूंज' के पर्चे बांटने के आरोप में उधम को गिरफ्तार किया गया. साल 1931 तक उधम सिंह जेल में रहे. रिहा होने के बाद भी उधम ब्रिटिश पुलिस की निगरानी में थे. कश्मीर जाकर उधम पुलिस से बचने में कामयाब रहे और 1934 में इंग्लैंड जा पहुंचे.
लेखक प्रो. प्रशांत गौरव बताते हैं कि कई जगहों पर घूमने के बाद उधम सिंह लंदन पहुंचे थे. लंदन के पहले उधम रूस, मिस्र, फ्रांस, इथोपिया और जर्मनी जा चुके थे. लंदन में उधम सिंह ने इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया और माइकल ओ'डायर से जुड़ी अपनी योजना पर भी काम शुरू कर दिया.
लंदन में उधम सिंह ने एक दिन एक पोस्टर देखा जिसमें बताया गया था कि माइकल ओ'डायर 13 मार्च, 1940 को कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन के समारोह को संबोधित करेंगे. यह जानकर उधम सिंह बहुत खुश हुए. डायर को मारने के लिए उधम ने तैयारी शुरू की और योजना के मुताबिक निश्चित तारीख और समय पर कैक्सटन हॉल पहुंच गए.
प्रो. प्रशांत गौरव बताते हैं कि, माइकल ओ'डायर की हत्या के लिए उधम सिंह उस हॉल में पहुंचे, और अपनी पिस्तौल उसी आकार में काटी गई एक किताब में छिपा दी. उधम आखिरी पंक्ति में बैठे. जैसे ही माइकल ओ'डायर बोलने के लिए तैयार हुए, उधम पीछे की सीट छो़ड़ आगे की पंक्ति में पहुंच गए. जिस समय डायर मंच पर जा रहे थे, उसी समय उधम सिंह, ने गोली दागी और मौके पर ही माइकल ओ'डायर की मौत हो गई.
भले ही कई लोगों के सामने माइकल ओ'डायर की हत्या और मौके पर ही मौत भी हुई, लेकिन मर्डर के ट्रायल मुकदमे के दौरान राम मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से अंग्रेज सरकार भ्रमित हो गई.
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शहीद-ए-आजम भगत सिंह के भतीजे जगमोहन सिंह बताते हैं कि उधम सिंह ने खुद अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद घोषित किया था. इसी नाम के साथ उन्होंने माइकल ओ'डायर को गोली मारी थी. उधम सिंह के हाथ से लिखा पत्र आज भी मेरे पास है. अंग्रेज बुरी तरह डरे हुए थे.
बकौल जगमोहन सिंह, अंग्रेजों का मानना था कि राम मोहम्मद सिंह का नाम मिटा दो, नहीं तो भारत में फिर एकता पनपेगी. हम उधम सिंह को कभी इस बात का श्रेय नहीं दे सके कि उन्होंने साल 1919 में इंग्लैंड में जाकर अंग्रेजों को एकता का संदेश. उधम सिंह के ऐसा करने से अंग्रेज काफी डर गए थे.
गौरतलब है कि 31 जुलाई, 1940 को भारत के महान सपूत उधम सिंह को लंदन की पैटनविले जेल में फांसी दे दी गई. उनके शरीर को जेल के भीतर ही दफना दिया गया. पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह के प्रयासों के बाद, इंग्लैंड ने 31 जुलाई, 1974 को उधम सिंह के अवशेष भारत को सौंपे.
शहीद उधम सिंह कॉलेज में प्रो. अश्विनी गोयल बताते हैं कि उधम सिंह के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार सुनाम स्टेडियम में किए जाने के बाद सुनाम कॉलेज में अस्थि कलश की स्थापना की गई. पुस्तकालय में स्थापित कलश को यहां पढ़ने वाले बच्चे नमन करते हैं, और उधम सिंह के त्याग और बलिदान से प्रेरित होते हैं.