प्रयागराज: संगम नगरी प्रयागराज के इलाहाबाद संग्रहालय में करीब 10 करोड़ की लागत से आजाद गैलरी तैयार की गई है. चंद्रशेखर आजाद के नाम पर बनी इस गैलरी में उनके जीवन से जुड़े अहम पहलुओं का विस्तृत वर्णन ऑडियो-वीडियो के माध्यम से दर्शाया गया है. इसके साथ ही 1857 की प्रथम क्रांति से लेकर 1947 तक की आजादी के महत्वपूर्ण घटनाओं का भी वर्णन आजाद गैलरी में देखने और सुनने को लोगों को मिलेगा. इस गैलरी का सबसे बड़ा आकर्षण चंद्रशेखर आजाद की पिस्टल बमतुल बुखारा (Bamtul Bukhara Pistol) है.
आजाद गैलरी का हुआ उद्घाटन
इलाहाबाद संग्रहालय में बनी इस आजाद गैलरी में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के साथ ही उनके साथ के वीर सेनानियों को केंद्र में बनायी गयी है. इसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांति कारियों की वीर गाथा की फोटो, ग्राफिक्स और ऑडियो विजुअल के जरिये प्रदर्शित की गई है. इसके अलावा अभिलेखी दस्तावेजों, कलाकृतियां और प्रतिकृतियों को मल्टीमीडिया व अन्य तकनीकी माध्यमों द्वारा गैलरी में देश की आजादी की कहानी दिखेगी. इस आजाद गैलरी में चंद्रशेखर आजाद की पिस्टल बमतुल बुखारा लोगों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र रहेगी. 25 सितंबर को करोड़ो की लागत से बनकर तैयार हुई इस आजाद गैलरी का उद्घाटन उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने किया है. इस दौरान राज्यपाल ने अपने हाथों से आजाद की प्रिय पिस्टल को संग्रहालय की आजाद गैलरी में स्थापित किया.
बुखारा पिस्टल आकर्षण का केंद्र
इलाहाबाद संग्रहालय में 10 करोड़ की लागत से बनी आजाद गैलरी में चंद्रशेखर आजाद की सबसे प्रिय पिस्टल को सेंटर में रखा गया है. आजाद ने अपनी इस पिस्टल का नाम बमतुल बुखारा रखा था. बमतुल बुखारा वही पिस्टल है, जिससे आजाद ने अंग्रेजों से लोहा लेने के दौरान जब अंतिम गोली बची थी तो इसी बमतुल बुखारा से खुद को गोली मारकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी. आजाद गैलरी में आने वाले इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों के लिए यह पिस्टल अब अत्यधिक आकर्षण का केंद्र होगी. आजाद गैलरी के उद्घाटन के समय 25 सितंबर को इस पिस्टल को राज्यपाल ने अपने हाथों से म्यूजियम में स्थापित किया है.
पिस्टल से नहीं निकलता है धुंआ
इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक सुनील गुप्ता ने बताया कि कोल्ट कंपनी की ये पिस्टल 1903 की बनी हुई है. यह 32 बोर की हैमरलेस सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल है. जिसमें एक बार 8 गोलियों की एक मैगजीन लगती है. इसकी खासियत यह है कि इसमें फायर करने के बाद भी धुंआ नहीं निकलता है. यही वजह थी कि इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में आजाद की अंग्रेजों से मुठभेड़ हुई तो वह पेड़ के पीछे से फायर कर रहे थे. इसके बाद भी अंग्रेज काफी देर तक नहीं जान सके की फायर कहां से हो रहा है.
आजाद गैलरी में दिखेगा 90 साल का इतिहास
इलाहाबाद राष्टीय संग्रहालय की प्रतिदर्श व्याख्याता डॉ. संजू मिश्रा के मुताबिक देश में शहीद चंद्रशेखर आजाद पर बनी यह पहली ऐसी गैलरी है, जिसमें उनके बारे में अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां लोगों को आसानी से मिल सकेंगी. राष्ट्रीय संग्रहालय में बनाये गए आजाद गैलरी में देश की आजादी और आजादी की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 से लेकर 1947 तक कि आजादी के जश्न की दास्तान इस गैलरी में देखने को मिलेगी. 1857 से लेकर 1947 तक की 90 साल की पूरी गाथा की झलक इस गैलरी में देखने को लोगों को मिलेगी. यहां आने वाले पर्यटकों को 1857 की पहली क्रांति से लेकर 1947 के देश की आजादी के दौर तक के 90 साल के इतिहास को ऑडियो और वीडियो के साथ डिजिटल माध्यम से देखने को लोगों को मिलेगा.
सेंट्रल म्यूजियम ने तैयार किया डिजाइन
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने गैलरी के निर्माण के लिए 10 करोड़ रुपये मंजूर किये थे. जिसके बाद इसका डिजाइन नेशनल काउंसिल आफ सेंट्रल म्यूजियम ने तैयार किया है. आजाद गैलरी में प्रवेश करते ही बंगाल विभाजन की फूटती चिंगारी नजर आती है तो वहीं स्वदेशी आंदोलन की लपटें, भारत छोड़ो आंदोलन, आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस, राइटर बिल्डिंग, काकोरी कांड, चटगांव शस्त्रागार छपा, स्वतंत्रता संघर्ष के चित्रित स्मारक, डाक टिकट, साइमन कमीशन और लाला लाजपत राय की शहादत, सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की घटना हो या जलियांवाला गोली कांड इन सभी घटनाओं की जानकारी भी इस गैलरी में मिलेगी.
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