ETV Bharat / bharat

अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने राजद्रोह कानून खत्म नहीं करने का किया समर्थन - Sedition law challenge SC hearing

सुप्रीम कोर्ट राजद्रोह कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 मई को सुनवाई करेगा. अदालत ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए और समय दिया. इससे पहले शीर्ष अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 'एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया' और पूर्व मेजर-जनरल एस जी वोम्बटकेरे की याचिकाओं की सुनवाई पर सहमत होते हुए कहा था कि उसकी मुख्य चिंता 'कानून का दुरुपयोग' है.

ag-kk-venugopal
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल
author img

By

Published : May 5, 2022, 3:24 PM IST

नई दिल्ली : भारत के अटॉर्नी जनरल (AG) केके वेणुगोपाल ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राजद्रोह से संबंधित धारा 124A को खत्म नहीं किया जाना चाहिए और केवल इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए शीर्ष अदालत को दिशानिर्देश निर्धारित करने चाहिए. अटॉर्नी जनरल ने हनुमान चालीसा का पाठ करने के संबंध में एक व्यक्ति को हिरासत में लिए जाने की घटना का हवाला दिया और कहा कि राजद्रोह और स्वतंत्रता के तहत क्या आ सकता है, यह पता लगाना होगा.

भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इस मामले में पिछले साल नोटिस जारी किया गया था, लेकिन केंद्र के जवाब का अब भी इंतजार है. शीर्ष अदालत ने इस मामले में केके वेणुगोपाल की टिप्पणी भारत के अटॉर्नी जनरल के तौर पर केंद्र की तरफ से नहीं, बल्कि उनकी हैसियत से मांगी थी.

केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए और अदालत से कहा कि राजद्रोह कानून पर केंद्र का रुख एजी से अलग हो सकता है और स्वतंत्र होगा. उन्होंने कहा कि याचिका पर जवाब का मसौदा वकीलों के स्तर पर तैयार कर लिया गया है लेकिन सक्षम प्राधिकारी ने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है और इसलिए इसे दायर नहीं किया गया है. इस पर कोर्ट ने केंद्र की खिंचाई करते हुए कहा कि नोटिस 9-10 महीने पहले जारी किया गया था और अब तब कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. साथ ही शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि मामले में सरकार का प्रथम दृष्टया क्या विचार है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मामला कानूनी प्रावधानों की जांच से संबंधित है और सॉलिसिटर जनरल मेहता द्वारा बहस शुरू की जा सकती है, लेकिन मेहता ने सुनवाई के स्थगन पर जोर दिया.

गुरुवार को सुनवाई के दौरान, मामले को बड़ी पीठ को सौंपने का भी मुद्दा उठाया गया, क्योंकि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के फैसले ने राजद्रोह कानून की शर्त को बरकरार रखा था और याचिकाकर्ताओं ने इसे चुनौती दी थी. वहीं एजी केके वेणुगोपाल ने कहा कि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के फैसले की समीक्षा करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह 'पूरी तरह से संतुलित' है. एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी कहा कि केदारनाथ के फैसले से अलग यह मामला आगे बढ़ सकता है.

यह भी पढ़ें- राजद्रोह कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 मई को सुनवाई करेगा कोर्ट

इस पर, पीठ ने कहा कि वह पहले यह तय करेगी कि क्या मामले को बड़ी पीठ के पास भेजा जाना है और इस पर पक्षकारों से जवाब मांगा है. अदालत ने मामले को 10 मई को दोपहर 2 बजे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया ताकि यह तय किया जा सके कि मामले को बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए या नहीं. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह प्रत्येक वकील को आधे घंटे का समय देंगे और स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई को स्थगित नहीं किया जाएगा.

नई दिल्ली : भारत के अटॉर्नी जनरल (AG) केके वेणुगोपाल ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राजद्रोह से संबंधित धारा 124A को खत्म नहीं किया जाना चाहिए और केवल इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए शीर्ष अदालत को दिशानिर्देश निर्धारित करने चाहिए. अटॉर्नी जनरल ने हनुमान चालीसा का पाठ करने के संबंध में एक व्यक्ति को हिरासत में लिए जाने की घटना का हवाला दिया और कहा कि राजद्रोह और स्वतंत्रता के तहत क्या आ सकता है, यह पता लगाना होगा.

भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इस मामले में पिछले साल नोटिस जारी किया गया था, लेकिन केंद्र के जवाब का अब भी इंतजार है. शीर्ष अदालत ने इस मामले में केके वेणुगोपाल की टिप्पणी भारत के अटॉर्नी जनरल के तौर पर केंद्र की तरफ से नहीं, बल्कि उनकी हैसियत से मांगी थी.

केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए और अदालत से कहा कि राजद्रोह कानून पर केंद्र का रुख एजी से अलग हो सकता है और स्वतंत्र होगा. उन्होंने कहा कि याचिका पर जवाब का मसौदा वकीलों के स्तर पर तैयार कर लिया गया है लेकिन सक्षम प्राधिकारी ने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है और इसलिए इसे दायर नहीं किया गया है. इस पर कोर्ट ने केंद्र की खिंचाई करते हुए कहा कि नोटिस 9-10 महीने पहले जारी किया गया था और अब तब कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. साथ ही शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि मामले में सरकार का प्रथम दृष्टया क्या विचार है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मामला कानूनी प्रावधानों की जांच से संबंधित है और सॉलिसिटर जनरल मेहता द्वारा बहस शुरू की जा सकती है, लेकिन मेहता ने सुनवाई के स्थगन पर जोर दिया.

गुरुवार को सुनवाई के दौरान, मामले को बड़ी पीठ को सौंपने का भी मुद्दा उठाया गया, क्योंकि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के फैसले ने राजद्रोह कानून की शर्त को बरकरार रखा था और याचिकाकर्ताओं ने इसे चुनौती दी थी. वहीं एजी केके वेणुगोपाल ने कहा कि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के फैसले की समीक्षा करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह 'पूरी तरह से संतुलित' है. एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी कहा कि केदारनाथ के फैसले से अलग यह मामला आगे बढ़ सकता है.

यह भी पढ़ें- राजद्रोह कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 मई को सुनवाई करेगा कोर्ट

इस पर, पीठ ने कहा कि वह पहले यह तय करेगी कि क्या मामले को बड़ी पीठ के पास भेजा जाना है और इस पर पक्षकारों से जवाब मांगा है. अदालत ने मामले को 10 मई को दोपहर 2 बजे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया ताकि यह तय किया जा सके कि मामले को बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए या नहीं. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह प्रत्येक वकील को आधे घंटे का समय देंगे और स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई को स्थगित नहीं किया जाएगा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.