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Sedition Law: राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर SC ने लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं होंगी

उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर बुधवार को रोक लगा दी. कोर्ट ने केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार औपनिवेशिक युग के कानून पर फिर से गौर नहीं कर लेती, तब तक राजद्रोह के आरोप में कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए.

Sedition Law
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Published : May 11, 2022, 11:49 AM IST

Updated : May 11, 2022, 2:39 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर भी रोक लगाई है. साथ ही नई प्राथमिकियां दर्ज नहीं करने के लिए कहा है.

पीठ ने कहा कि अदालतों द्वारा आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी. उसने कहा कि प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जुलाई के तीसरे सप्ताह में सुनवाई होगी और तब तक केंद्र के पास प्रावधान पर फिर से गौर करने का समय होगा. इससे पहले केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सलाह दी थी कि पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी को राजद्रोह के आरोप में दर्ज प्राथमिकियों की निगरानी करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है.

मेहता ने पीठ से कहा कि राजद्रोह के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करना बंद नहीं किया जा सकता क्योंकि यह प्रावधान एक संज्ञेय अपराध से संबंधित है और 1962 में एक संविधान पीठ ने इसे बरकरार रखा था. केंद्र ने राजद्रोह के लंबित मामलों के संबंध में न्यायालय को सुझाव दिया कि इस प्रकार के मामलों में जमानत याचिकाओं पर शीघ्रता से सुनवाई की जा सकती है, क्योंकि सरकार हर मामले की गंभीरता से अवगत नहीं हैं और ये आतंकवाद, धन शोधन जैसे पहलुओं से जुड़े हो सकते हैं. विधि अधिकारी ने कहा कि अंतत: लंबित मामले न्यायिक मंच के समक्ष हैं और हमें अदालतों पर भरोसा करने की जरूरत है.

  • We've made our positions very clear & also informed the court about intention of our PM. We respect the court & its independence. But there's a 'Lakshman Rekha' (line) that must be respected by all organs of the state in letter & spirit:Law Min Kiren Rijiju on SC staying sedition pic.twitter.com/Z4vR0FUmvt

    — ANI (@ANI) May 11, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र से कहा था कि राजद्रोह के संबंध में औपनिवेशिक युग के कानून पर किसी उपयुक्त मंच द्वारा पुनर्विचार किए जाने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा के मुद्दे पर 24 घंटे के भीतर वह अपने विचार स्पष्ट करे. शीर्ष अदालत राजद्रोह संबंधी कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

क्या कहते हैं कानून मंत्री: राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट की रोक पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि हमने अपनी स्थिति बहुत स्पष्ट कर दी है. अपने प्रधानमंत्री की मंशा के बारे में भी अदालत को सूचित कर दिया है. हम अदालत और उसकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं लेकिन एक 'लक्ष्मण रेखा' होनी चाहिए, जिसका राज्य के सभी अंगों को अक्षरश: सम्मान करना चाहिए.

महबूबा मुफ्ती का बयान: पीडीएफ प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि अगर हमारा देश छात्रों, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों पर देशद्रोह के आरोप लगाता रहा तो हमारी स्थिति श्रीलंका से भी बदतर हो जाएगी. उम्मीद है कि बीजेपी, श्रीलंका से सबक सीखेगी और सांप्रदायिक तनाव, बहुसंख्यकवाद को रोकेगी.

यह भी पढ़ें- देशद्रोह के मौजूदा आरोपियों से कैसे निपटेगी सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर भी रोक लगाई है. साथ ही नई प्राथमिकियां दर्ज नहीं करने के लिए कहा है.

पीठ ने कहा कि अदालतों द्वारा आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी. उसने कहा कि प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जुलाई के तीसरे सप्ताह में सुनवाई होगी और तब तक केंद्र के पास प्रावधान पर फिर से गौर करने का समय होगा. इससे पहले केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सलाह दी थी कि पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी को राजद्रोह के आरोप में दर्ज प्राथमिकियों की निगरानी करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है.

मेहता ने पीठ से कहा कि राजद्रोह के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करना बंद नहीं किया जा सकता क्योंकि यह प्रावधान एक संज्ञेय अपराध से संबंधित है और 1962 में एक संविधान पीठ ने इसे बरकरार रखा था. केंद्र ने राजद्रोह के लंबित मामलों के संबंध में न्यायालय को सुझाव दिया कि इस प्रकार के मामलों में जमानत याचिकाओं पर शीघ्रता से सुनवाई की जा सकती है, क्योंकि सरकार हर मामले की गंभीरता से अवगत नहीं हैं और ये आतंकवाद, धन शोधन जैसे पहलुओं से जुड़े हो सकते हैं. विधि अधिकारी ने कहा कि अंतत: लंबित मामले न्यायिक मंच के समक्ष हैं और हमें अदालतों पर भरोसा करने की जरूरत है.

  • We've made our positions very clear & also informed the court about intention of our PM. We respect the court & its independence. But there's a 'Lakshman Rekha' (line) that must be respected by all organs of the state in letter & spirit:Law Min Kiren Rijiju on SC staying sedition pic.twitter.com/Z4vR0FUmvt

    — ANI (@ANI) May 11, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र से कहा था कि राजद्रोह के संबंध में औपनिवेशिक युग के कानून पर किसी उपयुक्त मंच द्वारा पुनर्विचार किए जाने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा के मुद्दे पर 24 घंटे के भीतर वह अपने विचार स्पष्ट करे. शीर्ष अदालत राजद्रोह संबंधी कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

क्या कहते हैं कानून मंत्री: राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट की रोक पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि हमने अपनी स्थिति बहुत स्पष्ट कर दी है. अपने प्रधानमंत्री की मंशा के बारे में भी अदालत को सूचित कर दिया है. हम अदालत और उसकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं लेकिन एक 'लक्ष्मण रेखा' होनी चाहिए, जिसका राज्य के सभी अंगों को अक्षरश: सम्मान करना चाहिए.

महबूबा मुफ्ती का बयान: पीडीएफ प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि अगर हमारा देश छात्रों, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों पर देशद्रोह के आरोप लगाता रहा तो हमारी स्थिति श्रीलंका से भी बदतर हो जाएगी. उम्मीद है कि बीजेपी, श्रीलंका से सबक सीखेगी और सांप्रदायिक तनाव, बहुसंख्यकवाद को रोकेगी.

यह भी पढ़ें- देशद्रोह के मौजूदा आरोपियों से कैसे निपटेगी सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

Last Updated : May 11, 2022, 2:39 PM IST
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