बेंगलुरू : कांग्रेस पार्टी के टिकट पर बेंगलुरू शहर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले युसूफ शरीफ को स्क्रैप बाबू, गुजरी बाबू और केजीएफ बाबू जैसे नामों से भी जाना जाता है. अब वे कर्नाटक के अमीर नेताओं की लिस्ट में शामिल हो चुके हैं.
युसूफ शरीफ द्वारा की गई जानकारी के अनुसार उनके पास ₹1745 करोड़ से अधिक की संपत्ति है. इसमें 97.98 करोड़ की चल संपत्ति, 1,643.59 करोड़ की अचल संपत्ति शामिल है. साथ ही उनके पास 19.53 लाख रूपये नकद, पत्नी व आश्रितों के पास कुल मिलाकर 1745 करोड़ की राशि उनके द्वारा डीसी कार्यालय में नामांकन के दौरान घोषित की गई है.
अब तक केपीसीसी अध्यक्ष डीके शिवकुमार, मंत्री एमटीबी नागराज ही कर्नाटक के सबसे अमीर राजनेताओं की सूची में शामिल थे. कर्नाटक बीजेपी के एमटीबी नागराज और उनकी पत्नी के पास 1,220 करोड़ रुपये की संपत्ति है. डीके शिवकुमार भारत के सबसे अमीर राजनेताओं में से एक हैं. 2018 में चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करते हुए शिवकुमार ने अपनी कुल 840 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की थी.
अब केजीएफ बाबू राजनीति में प्रवेश करके सूची में सबसे ऊपर हो गए हैं. केजीएफ बाबू की दो पत्नियां और पांच बच्चे हैं. पहली पत्नी रुखसाना ताज के पास 1.57 लाख व दूसरी पत्नी शाजिया तरनम के पास 89,000 कैश है. बेटी के पास 25 हजार रुपए नकद, बेटे के पास पांच हजार रुपए नकद की घोषणा उन्होंने की है.
केजीएफ बाबू के एक बैंक खाते में उनकी पहली और दूसरी पत्नी को क्रमश: 16.87 करोड़ व 16.99 करोड़ जमा हैं. बेटी के नाम पर 7.38 लाख, बेटा के नाम पर 11.52 लाख और म्यूचुअल फंड शेयर व अन्य निवेश 17.62 करोड़ रुपये के हैं. उनका 17.61 करोड़ की पांच निर्माण कंपनियों में निवेश है और 58.13 करोड़ का कर्ज भी है.
उनके पास एक रॉल्स रॉयस कार है जिसकी कीमत 2.01 करोड़ रूपये है. यह उन्होंने अभिनेता अमिताभ बच्चन से खरीदी थी. इसके अलावा उनके पास दो टोयोटा फॉर्च्यूनर और कई अन्य लक्जरी प्रीमियम कारें हैं. साथ ही लगभग 150 करोड़ रूपये के आभूषण पत्नियों और बच्चों के पास हैं.
युसूफ शरीफ ने अपना करियर एक स्क्रैप डीलर के रूप में शुरू किया और अब एक राजनेता हैं. वह हाल ही में उस समय चर्चा में आए जब आरटीओ अधिकारियों ने अमिताभ बच्चन से खरीदी गई उनकी रोल्स रॉयस कार को जब्त कर लिया, क्योंकि इसे उनके नाम पर ट्रांसफर नहीं किया गया था.
कौन हैं स्क्रैप बाबू
यूसुफ कोलार गोल्ड फील्ड के एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके माता-पिता के 14 बच्चे हैं और वे उनमें सबसे बड़े हैं. आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण यूसुफ ने कोई शिक्षा प्राप्त नहीं की. उन्हें अपने छोटे भाइयों और बहनों को खिलाने के लिए कमाई शुरू करनी पड़ी.
उन्होंने रिश्तेदारों से कर्ज लेकर कोलार में एक छोटी स्क्रैप की दुकान शुरू की. 2001 में उनकी किस्मत पलट गई. कोलार गोल्ड फील्ड्स ने कच्चे सोने को शुद्ध करने के लिए इस्तेमाल किए गए 21 मिल टैंकों की नीलामी करने का फैसला किया. यूसुफ ने अपने सारे संसाधन जुटाए और 7 लाख रुपये में नीलामी जीत ली.
कबाड़ में मिला 13 किलो सोना
मिल के टैंक बहुत पुराने थे और ब्रिटिश काल के थे. यूसुफ जानते थे कि उन्हें लाभ होगा क्योंकि प्रत्येक टैंक का आकार 50x 50 मीटर था. लेकिन उन्हें हैरानी हुई कि एक टैंक में उन्हें 13 किलो शुद्ध सोना मिला. एक स्थानीय समाचार चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा कि एक टैंक में लगभग दो फीट का कंक्रीट था और उसमें एक छेद था.
फिर उसने अपने एक भरोसेमंद कर्मचारी के साथ सोना निकाला और अपने घर ले गया. 2001 में उस समय सोने की कीमत लगभग 4300 रुपये प्रति 10 ग्राम (24 कैरेट) थी. यानी बाबू को एक शॉट में 5.59 करोड़ रुपये मिले. लोहे की मिल की टंकियों के कबाड़ से होने वाले लाभ को भी जोड़ा जाए तो 7 लाख रुपये के निवेश से उन्हें लगभग 6 करोड़ रुपये का लाभ हुआ.
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2002 में युसूफ ने 1 करोड़ रुपये में एक पुरानी जावा मोटरसाइकिल फैक्ट्री की नीलामी जीती और इससे तीन गुना लाभ कमाया. उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने सरकारी और अदालती नीलामी के माध्यम से संपत्ति और कारखाने खरीदे. यूसुफ ने अब तक 1745 करोड़ रुपये की संपत्ति अर्जित की है.
वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल भी कभी बेचते थे स्क्रैप
भारत के बड़े उद्योगपतियों में शामिल वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल भी कभी स्क्रैप बिजनेस से जुड़े थे. वह स्क्रैप डीलर थे. वह पटना के रहने वाले हैं. उनके पिता द्वारका प्रसाग अग्रवाल अल्युमिनियम कंडक्टर बिजनेस के मालिक थे. अनिल ने पटना के मिलर हाईस्कूल से पढ़ाई की थी. हालांकि, उनका पढ़ाई में मन नहीं लगा. वे जल्द ही पिता के बिजनेस से जुड़ गए. 19 साल की उम्र में ही वह मुंबई चले गए थे. शुरुआती दिनों में वह दूसरे राज्यों के केबल कंपनियों से मेटल इकट्ठा किया करते थे. उसे बेचने के लिए वे मुंबई आते थे. उन्होंने अपनी कंपनी का नाम एनामेल्ड कॉपर रखा था. उसके बाद उन्होंने जेली फील्ड केबल और स्टरलाइट कंपनी की शुरुआत की. कुछ समय बाद ही उन्होंने मेटल बनाने का फैसला कर लिया. 2003 में उन्होंने वेदांता रिसोर्सेस की नींव रखी.