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उत्तराखंड : ऋषिगंगा में बनी रहस्यमयी झील, विशेषज्ञ करेंगे जांच - ऋषिगंगा में बनी रहस्यमयी झील

उत्तराखंड में तपोवन त्रासदी को लेकर राहत और बचाव कार्य जारी है. वहीं सरकार के सामने एक और चिंता ऋषिगंगा पर बनी नई झील के रूप में दिखाई दे रही है. सरकार ने वैज्ञानिकों से इसका अध्ययन कराने का फैसला लिया है.

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Published : Feb 13, 2021, 5:15 PM IST

देहरादून : उत्तराखंड के चमोली जिले में सात फरवरी को ग्लेशियर टूटने के बाद कहर बरपाने वाली ऋषिगंगा नदी के पास झील बनने की बढ़ती आशंकाओं के बीच राज्य सरकार ने सावधान रहने के लिए कहा है. इस मामले में सरकार ने अब हेलीकॉप्टर से नई झील क्षेत्र में ही कुछ एक्सपर्ट वैज्ञानिकों को भेजने का निर्णय कर लिया है. ताकी इसका अध्ययन किया जा सकेगा.

जानकारों का कहना है कि सरकार को एक अध्ययन यह भी करना चाहिए कि आखिरकार सात फरवरी को जो जल सैलाब उमड़ा, वह पानी इस क्षेत्र में कहां पर और कैसे इकट्ठा हुआ था? ऋषिगंगा पर बनी झील को लेकर वैज्ञानिकों की टीम सैटेलाइट के जरिए मौजूदा स्थिति को भांपने में जुटी हुई है. इस मामले में सरकार भी झील के अध्ययन को कराने के लिए प्रयासरत है.

ऋषिगंगा में बनी 400 मीटर लंबी झील,

एक तरफ सरकार मानती है कि इस झील के अध्ययन को जल्द से जल्द कराने के लिए स्थितियां तैयार की जा रही हैं, तो दूसरी तरफ वैज्ञानिक इस पूरे घटनाक्रम पर सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहे हैं.

करीब 400 मीटर लंबी बनी झील
इस संबंध में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि उन्हें इस झील की जानकारी है. सैटेलाइट के जरिए इस पर नजर भी रखी जा रही है. झील से सावधान रहने की जरूरत है, लेकिन घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है. सीएम त्रिवेंद्र ने कहा कि यह झील करीब 400 मीटर लंबी है. ऋषिगंगा से इसके मुहाने पर सिल्ट आया है. रॉकिंग गार्ड के जरिए इसको पोस्ट किया गया.

इस झील की 12 मीटर ऊंचाई नजर आ रही है. हालांकि, इसमें कितना पानी है और यह कितनी गहरी है, इसकी जानकारी सरकार के पास नहीं है. सीएम ने कहा कि इन्हीं हालातों को देखते हुए वैज्ञानिकों की टीम वहां भेजी जा रही है. साथ ही कुछ एक्सपर्ट लोगों को भी हेलीकॉप्टर से झील के पास ही ड्रॉप किए जाने की योजना है. यह लोग करीब 3 से 4 घंटे झील की स्थितियों का अध्ययन कर सरकार को रिपोर्ट देंगे.

बारीक क्षेत्र में बनी है यह झील
इस घटना को लेकर प्रदेश के वैज्ञानिकों ने भी अपनी एक अलग सोच रखी है. पर्यावरणविद एसपी सती कहते हैं कि सरकार इस झील का अध्ययन कर रही है. सरकार की तरफ से यह अच्छा प्रयास है, लेकिन सवाल यह भी है कि इतने दिनों तक झील का पता यहां पर क्यों नहीं चल सका?

उन्होंने कहा, यहां पर तमाम एजेंसियां निगरानी के लिए विभिन्न टूल्स यूज कर रही थी. एसपी सती ने कहा कि इस झील से खतरे की कोई स्थिति नहीं है. यह झील बेहद बारीक क्षेत्र में तैयार हुई है. इसके आसपास मलवा है.

ये भी पढ़ें: अक्टूबर तक चलेगा किसानों का आंदोलन, बनाई जा रही रूपरेखा : टिकैत

पर्यावरणविद एसपी सती ने कहा कि सरकार को इस बात का भी अध्ययन करवाना चाहिए कि सात फरवरी को जो पानी का सैलाब आया, वह कैसे आया? उन्होंने कहा, ग्लेशियर के टूटने जैसी कोई भी घटना यहां नहीं हुई थी. यदि एक बड़ा पहाड़ टूट कर पानी में गिरा है, तो इतना पानी कहां पर काटा जिससे पानी का इतना बड़ा सैलाब ऋषि गंगा नदी में आ गया.

देहरादून : उत्तराखंड के चमोली जिले में सात फरवरी को ग्लेशियर टूटने के बाद कहर बरपाने वाली ऋषिगंगा नदी के पास झील बनने की बढ़ती आशंकाओं के बीच राज्य सरकार ने सावधान रहने के लिए कहा है. इस मामले में सरकार ने अब हेलीकॉप्टर से नई झील क्षेत्र में ही कुछ एक्सपर्ट वैज्ञानिकों को भेजने का निर्णय कर लिया है. ताकी इसका अध्ययन किया जा सकेगा.

जानकारों का कहना है कि सरकार को एक अध्ययन यह भी करना चाहिए कि आखिरकार सात फरवरी को जो जल सैलाब उमड़ा, वह पानी इस क्षेत्र में कहां पर और कैसे इकट्ठा हुआ था? ऋषिगंगा पर बनी झील को लेकर वैज्ञानिकों की टीम सैटेलाइट के जरिए मौजूदा स्थिति को भांपने में जुटी हुई है. इस मामले में सरकार भी झील के अध्ययन को कराने के लिए प्रयासरत है.

ऋषिगंगा में बनी 400 मीटर लंबी झील,

एक तरफ सरकार मानती है कि इस झील के अध्ययन को जल्द से जल्द कराने के लिए स्थितियां तैयार की जा रही हैं, तो दूसरी तरफ वैज्ञानिक इस पूरे घटनाक्रम पर सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहे हैं.

करीब 400 मीटर लंबी बनी झील
इस संबंध में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि उन्हें इस झील की जानकारी है. सैटेलाइट के जरिए इस पर नजर भी रखी जा रही है. झील से सावधान रहने की जरूरत है, लेकिन घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है. सीएम त्रिवेंद्र ने कहा कि यह झील करीब 400 मीटर लंबी है. ऋषिगंगा से इसके मुहाने पर सिल्ट आया है. रॉकिंग गार्ड के जरिए इसको पोस्ट किया गया.

इस झील की 12 मीटर ऊंचाई नजर आ रही है. हालांकि, इसमें कितना पानी है और यह कितनी गहरी है, इसकी जानकारी सरकार के पास नहीं है. सीएम ने कहा कि इन्हीं हालातों को देखते हुए वैज्ञानिकों की टीम वहां भेजी जा रही है. साथ ही कुछ एक्सपर्ट लोगों को भी हेलीकॉप्टर से झील के पास ही ड्रॉप किए जाने की योजना है. यह लोग करीब 3 से 4 घंटे झील की स्थितियों का अध्ययन कर सरकार को रिपोर्ट देंगे.

बारीक क्षेत्र में बनी है यह झील
इस घटना को लेकर प्रदेश के वैज्ञानिकों ने भी अपनी एक अलग सोच रखी है. पर्यावरणविद एसपी सती कहते हैं कि सरकार इस झील का अध्ययन कर रही है. सरकार की तरफ से यह अच्छा प्रयास है, लेकिन सवाल यह भी है कि इतने दिनों तक झील का पता यहां पर क्यों नहीं चल सका?

उन्होंने कहा, यहां पर तमाम एजेंसियां निगरानी के लिए विभिन्न टूल्स यूज कर रही थी. एसपी सती ने कहा कि इस झील से खतरे की कोई स्थिति नहीं है. यह झील बेहद बारीक क्षेत्र में तैयार हुई है. इसके आसपास मलवा है.

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पर्यावरणविद एसपी सती ने कहा कि सरकार को इस बात का भी अध्ययन करवाना चाहिए कि सात फरवरी को जो पानी का सैलाब आया, वह कैसे आया? उन्होंने कहा, ग्लेशियर के टूटने जैसी कोई भी घटना यहां नहीं हुई थी. यदि एक बड़ा पहाड़ टूट कर पानी में गिरा है, तो इतना पानी कहां पर काटा जिससे पानी का इतना बड़ा सैलाब ऋषि गंगा नदी में आ गया.

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