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कोरोना काल में स्कूल जाने की उम्र वाले बच्चे बन रहे हैं मजदूर

महामारी की वजह से दुनिया भर में लाखों बच्चों के बाल मजदूर बनने का खतरा पैदा हो गया है. ऐसा अनुमान है कि यदि बच्चे लंबे समय तक स्कूलों से दूर रहेंगे तो उनमें से कई के बाल मजदूर बन जाने का खतरा है

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Published : Nov 25, 2020, 8:23 AM IST

बाल मजदूर
बाल मजदूर

नई दिल्ली : कोरोना वायरस से फैली महामारी के असर की वजह से शिक्षा व्यवस्था अभूतपूर्व संकट का सामना कर रही है. स्कूलों को पूरी तरह से फिर से खोलने का अभी तक कोई रास्ता नहीं निकला है. कल्याणकारी संस्थाओं के सहयोग और दान पर आर्थिक रूप से आश्रित सरकार के कल्याण गृहों में पढ़ने वाले बच्चों की स्थिति और भी दयनीय हो गई है.

मध्याह्न भोजन यानी मिड-डे मील योजना का खराब तरीके से संचालन बहुत सारे बच्चों के कुपोषण का कारण बन रहा है. इस योजना ने लाखों बच्चों को स्कूलों की ओर आकर्षित किया और स्कूलों में लाने में सहायता की है. महामारी की वजह से ऐसी भयावह खबरें सामने आ रही हैं कि दुनिया भर में लाखों बच्चों के बाल मजदूर बनने का खतरा पैदा हो गया है.

भारत की स्थिति गंभीर

हाल में आईं अंतरराष्ट्रीय रपटों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दुनिया भर में दो दशकों से किए जा रहे बाल श्रम उन्मूलन के प्रयासों के बर्बाद हो जाने का खतरा पैदा हो गया है. यह हर कोई जानता है कि संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) का आकलन था कि वर्ष 2006 और 2016 के बीच भारत में करीब 27 करोड़ लोगों को गरीबी से ऊपर किया था.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कोरोना आपदा की वजह से यह सारी प्रगति बर्बाद हो सकती है. ऐसा अनुमान है कि यदि बच्चे लंबे समय तक स्कूलों से दूर रहेंगे तो उनमें से कई के बाल मजदूर बन जाने का खतरा है.

विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि ऐसा होता है तो अब तक स्कूलों में नामांकन में हुई प्रगति, साक्षरता में प्रगति, सामाजिक चेतना और बच्चों के स्वास्थ्य आदि को नुकसान पहुंचेगा. इससे उनके बच्चों की शिक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. यूनेस्को ने हाल ही में जारी रिपोर्ट में कहा है कि अगर ऐसी ही स्थितियां बनी रहती हैं तो अगले दस वर्षों में लाखों बाल विवाह हो सकते हैं.

इसने यह भी चेतावनी दी है कि विशेष रूप से एशिया और अफ्रीका में गरीब लड़कियों के स्कूलों से बाहर हो जाने की सबसे अधिक संभावना है. विश्व बैंक का अनुमान है कि स्कूलों को बंद हो जाने से भारत को भविष्य में लगभग 30 लाख करोड़ रुपये की उत्पादकता का नुकसान हो सकता है.

ये सभी आने वाले दिनों में दुनिया भर के विनिर्माण क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों को दर्शाते हैं. इंटरनेट कनेक्टिविटी, लैपटॉप/स्मार्ट फोन की आवश्यकता ने हजारों गरीब छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा की पहुंच से दूर कर दिया है. मनोचिकित्सक बताते हैं कि जो बच्चे अब अपने माता-पिता के साथ काम करने के लिए जा रहे हैं, वे एक बार कुछ रोजगार में लग जाते हैं और पैसे का स्वाद लग जाता है तो स्कूल जाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी ) के अनुसार तेलुगु राज्यों में बाल श्रमिकों की बहुत अधिक संख्या चिंता का विषय है. विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि बचपन में बहुत अधिक पारिवारिक जिम्मेदारियां और तनाव भविष्य में बच्चों के आपराधिक मानसिकता के होने का खतरा बढ़ा सकते हैं.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के महानिदेशक गाय राइडर ने कहा कि मौजूदा स्थिति के कारण दुनिया भर में बहुत अधिक बच्चों के बाल मजदूर बनने का खतरा है. उन्होंने चिंता जताई है कि कोरोना महामारी की वजह से परिवारों की आमदनी पर पड़े प्रभाव के कारण बहुत सारे बच्चे अपने परिवारों की सहायता करने के लिए बाल मजदूर बन सकते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे संकट के समय में उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना जरूरी है. संबंधित सरकारों को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए.

शिक्षा विश्वास का स्रोत है

सबसे पहले स्कूली बच्चों को बाल मजदूर बनने से रोकने के लिए बड़े पैमाने पर एक रणनीतिक आंदोलन चलाने की जरूरत है. सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी, सेवा संगठनों, सार्वजनिक और निजी शिक्षण संस्थानों को इस महति सामाजिक जिम्मेदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए.

शत प्रतिशत शिक्षा का अधिकार कानून लागू करते समय उन पर हमेशा नजर रखी जानी चाहिए. सरकारों को स्कूल की फीस को नियंत्रित करने और गरीब परिवारों को इसे लेकर आश्वस्त करने पर ध्यान देना चाहिए. कार्यस्थल निरीक्षण में तेजी लाई जानी चाहिए और बाल श्रमिकों की पहचान करने और उनको फिर स्कूल में वापस लाने की रणनीति को तेज किया जाना चाहिए.

गरीब परिवारों को सामाजिक सुरक्षा और वित्तीय सुरक्षा मुहैया कराई जानी चाहिए. मध्याह्न भोजन योजना और प्रत्येक बच्चे को पोषण मुहैया कराने का कार्यक्रम कुशलतापूर्वक जारी रखा जाना चाहिए. बच्चों को शिक्षा के करीब जितना संभव हो उतना करीब लाना उनके बचपन को सुनिश्चित करेगा. ऐसा नहीं होने पर उनके कोरोना संकट के प्रत्यक्ष पीड़ित और समाज के लिए चिंता का स्थाई स्रोत बने रहने का खतरा रहेगा.

लेखक- अनिल कुमार लोदी

नई दिल्ली : कोरोना वायरस से फैली महामारी के असर की वजह से शिक्षा व्यवस्था अभूतपूर्व संकट का सामना कर रही है. स्कूलों को पूरी तरह से फिर से खोलने का अभी तक कोई रास्ता नहीं निकला है. कल्याणकारी संस्थाओं के सहयोग और दान पर आर्थिक रूप से आश्रित सरकार के कल्याण गृहों में पढ़ने वाले बच्चों की स्थिति और भी दयनीय हो गई है.

मध्याह्न भोजन यानी मिड-डे मील योजना का खराब तरीके से संचालन बहुत सारे बच्चों के कुपोषण का कारण बन रहा है. इस योजना ने लाखों बच्चों को स्कूलों की ओर आकर्षित किया और स्कूलों में लाने में सहायता की है. महामारी की वजह से ऐसी भयावह खबरें सामने आ रही हैं कि दुनिया भर में लाखों बच्चों के बाल मजदूर बनने का खतरा पैदा हो गया है.

भारत की स्थिति गंभीर

हाल में आईं अंतरराष्ट्रीय रपटों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दुनिया भर में दो दशकों से किए जा रहे बाल श्रम उन्मूलन के प्रयासों के बर्बाद हो जाने का खतरा पैदा हो गया है. यह हर कोई जानता है कि संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) का आकलन था कि वर्ष 2006 और 2016 के बीच भारत में करीब 27 करोड़ लोगों को गरीबी से ऊपर किया था.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कोरोना आपदा की वजह से यह सारी प्रगति बर्बाद हो सकती है. ऐसा अनुमान है कि यदि बच्चे लंबे समय तक स्कूलों से दूर रहेंगे तो उनमें से कई के बाल मजदूर बन जाने का खतरा है.

विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि ऐसा होता है तो अब तक स्कूलों में नामांकन में हुई प्रगति, साक्षरता में प्रगति, सामाजिक चेतना और बच्चों के स्वास्थ्य आदि को नुकसान पहुंचेगा. इससे उनके बच्चों की शिक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. यूनेस्को ने हाल ही में जारी रिपोर्ट में कहा है कि अगर ऐसी ही स्थितियां बनी रहती हैं तो अगले दस वर्षों में लाखों बाल विवाह हो सकते हैं.

इसने यह भी चेतावनी दी है कि विशेष रूप से एशिया और अफ्रीका में गरीब लड़कियों के स्कूलों से बाहर हो जाने की सबसे अधिक संभावना है. विश्व बैंक का अनुमान है कि स्कूलों को बंद हो जाने से भारत को भविष्य में लगभग 30 लाख करोड़ रुपये की उत्पादकता का नुकसान हो सकता है.

ये सभी आने वाले दिनों में दुनिया भर के विनिर्माण क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों को दर्शाते हैं. इंटरनेट कनेक्टिविटी, लैपटॉप/स्मार्ट फोन की आवश्यकता ने हजारों गरीब छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा की पहुंच से दूर कर दिया है. मनोचिकित्सक बताते हैं कि जो बच्चे अब अपने माता-पिता के साथ काम करने के लिए जा रहे हैं, वे एक बार कुछ रोजगार में लग जाते हैं और पैसे का स्वाद लग जाता है तो स्कूल जाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी ) के अनुसार तेलुगु राज्यों में बाल श्रमिकों की बहुत अधिक संख्या चिंता का विषय है. विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि बचपन में बहुत अधिक पारिवारिक जिम्मेदारियां और तनाव भविष्य में बच्चों के आपराधिक मानसिकता के होने का खतरा बढ़ा सकते हैं.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के महानिदेशक गाय राइडर ने कहा कि मौजूदा स्थिति के कारण दुनिया भर में बहुत अधिक बच्चों के बाल मजदूर बनने का खतरा है. उन्होंने चिंता जताई है कि कोरोना महामारी की वजह से परिवारों की आमदनी पर पड़े प्रभाव के कारण बहुत सारे बच्चे अपने परिवारों की सहायता करने के लिए बाल मजदूर बन सकते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे संकट के समय में उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना जरूरी है. संबंधित सरकारों को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए.

शिक्षा विश्वास का स्रोत है

सबसे पहले स्कूली बच्चों को बाल मजदूर बनने से रोकने के लिए बड़े पैमाने पर एक रणनीतिक आंदोलन चलाने की जरूरत है. सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी, सेवा संगठनों, सार्वजनिक और निजी शिक्षण संस्थानों को इस महति सामाजिक जिम्मेदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए.

शत प्रतिशत शिक्षा का अधिकार कानून लागू करते समय उन पर हमेशा नजर रखी जानी चाहिए. सरकारों को स्कूल की फीस को नियंत्रित करने और गरीब परिवारों को इसे लेकर आश्वस्त करने पर ध्यान देना चाहिए. कार्यस्थल निरीक्षण में तेजी लाई जानी चाहिए और बाल श्रमिकों की पहचान करने और उनको फिर स्कूल में वापस लाने की रणनीति को तेज किया जाना चाहिए.

गरीब परिवारों को सामाजिक सुरक्षा और वित्तीय सुरक्षा मुहैया कराई जानी चाहिए. मध्याह्न भोजन योजना और प्रत्येक बच्चे को पोषण मुहैया कराने का कार्यक्रम कुशलतापूर्वक जारी रखा जाना चाहिए. बच्चों को शिक्षा के करीब जितना संभव हो उतना करीब लाना उनके बचपन को सुनिश्चित करेगा. ऐसा नहीं होने पर उनके कोरोना संकट के प्रत्यक्ष पीड़ित और समाज के लिए चिंता का स्थाई स्रोत बने रहने का खतरा रहेगा.

लेखक- अनिल कुमार लोदी

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