अहमदाबाद : गुजरात में निकाय चुनाव के तहत रविवार को छह बड़े शहरों में मतदान होगा जो कोविड-19 रोधी उपायों के बीच सुबह सात बजे से शाम पांच बजे तक चलेगा.
अहमदाबाद, सूरत, वड़ोदरा, भावनगर, जामनगर और राजकोट नगर निगम चुनाव को मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के लिए एक परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है जो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का मिजाज तय कर सकते हैं.
अधिकारियों ने बताया कि कुल 575 सीटों के लिए मतदान होगा जिसके लिए 2,276 उम्मीदवार मैदान में हैं. इनमें से भाजपा के 577, कांग्रेस के 566, आम आदमी पार्टी के 470, राकांपा के 91 और अन्य दलों से 353 तथा 228 निर्दलीय उम्मीदवार हैं.
इस संबंध में एक चुनाव अधिकारी ने कहा कि इन छह शहरों में मतदाताओं की कुल संख्या 1.14 करोड़ है जिनमें से 60.60 पुरुष और 54.06 लाख महिला मतदाता हैं. उन्होंने कहा कि 11,121 चुनाव बूथ में से 2,255 संवेदनशील तथा 1,188 को अत्यंत संवेदनशील घोषित किया गया है. मतगणना 23 फरवरी को होगी. 28 फरवरी को 31 जिला तथा 231 तालुका पंचायतों और 81 नगर निकायों के लिए चुनाव होगा. मतों की गिनती 2 मार्च को होगी.
निकाय चुनाव में 'आप' भी विकल्प
निकाय चुनाव की बात की जाए तो 81 नगरपालिकाओं की 680 सीटों के लिए 7,245 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, भाजपा ने 2,555, कांग्रेस ने 2,247, बहुजन समाज पार्टी ने 109 और आम आदमी पार्टी ने 719 उम्मीदवार उतारे हैं.
95 उम्मीदवारों को निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया है. इसके साथ ही 13 नगरपालिकाओं की 17 सीटों के लिए उपचुनाव भी होने हैं, जिसमें 46 उम्मीदवार हैं. उनमें से दो उम्मीदवारों को निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया है. अब 44 उम्मीदवार मैदान में हैं.
निकाय चुनाव में आम तौर पर केवल दो राजनीतिक दल, भाजपा और कांग्रेस गुजरात में चुनाव लड़ते रहे हैं लेकिन इस बार लोगों को आम आदमी पार्टी में तीसरा विकल्प मिला है. आप ने पोलिंग बूथ स्तर तक चुनाव प्रचार किया है और मतदाताओं के सामने अपने दिल्ली मॉडल को प्रस्तुत किया है.
किसान आंदोलन का नहीं दिख रहा असर
केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में किसानों के आंदोलन के लिए गुजरात में कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं हुई है. इस तरह माना जा रहा है कि गुजरात के किसानों ने नए कानूनों को स्वीकार कर लिया है फिर भी गुजरात में किसानों का एक वर्ग है जिसने नए कृषि कानूनों का विरोध किया है लेकिन ज्यादा नहीं.
बीजेपी के लिए कठिन समय
पंचायत चुनाव में बात अलग है. बीजेपी पिछले चार कार्यकाल से गुजरात में सत्ता में है. भाजपा के शासन के दौरान शहरों में तो काफी सुधार हुआ लेकिन गांवों में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है. ग्रामीण सड़कों का बुरा हाल है. जिला और तालुका पंचायत चुनावों पर इसका सीधा असर पड़े तो आश्चर्य नहीं होगा. अगर हिंदुत्व के मुद्दे पर ग्रामीण मतदाता बीजेपी को समर्थन देने का फैसला करते हैं तो आश्चर्य होगा.
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भाजपा ने भी कठिन समय के बारे में अग्रिम चेतावनी दी थी. भाजपा ने हाल ही में एक आंतरिक सर्वेक्षण किया था जिसके अनुसार भाजपा को छह नगर निगमों में आसान जीत हासिल होगी लेकिन जिला और तालुका पंचायतों और नगर पालिकाओं में राह आसान नहीं है. हालांकि राज्य के भाजपा प्रमुख सीआर पाटिल दावा करते रहे हैं कि भाजपा कांग्रेस का सफाया कर देगी.