नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और तत्कालीन राज्य जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार (11 दिसंबर) को फैसला सुनाया. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला पढ़ा.
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-अनुच्छेद 370 एक अस्थायी व्यवस्था.
-सुप्रीम कोर्ट का राज्य में अगले साल सितंबर तक चुनाव कराने का आदेश.
-जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने का आदेश
-जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है.
-राज्य से देश का संविधान उपर है.
-लद्दाख को अलग करने का फैसला वैध था.
-अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले में कोई दुर्भावना नहीं थी.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि याचिकाकर्ताओं की यह दलील कि केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य में अपरिवर्तनीय परिणाम वाली कार्रवाई नहीं कर सकती, स्वीकार्य नहीं है. आगे कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी व्यवस्था थी. विलय के साथ जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता खत्म हो गई. जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. राज्य से देश का संविधान उपर है.
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"We direct that steps shall be taken by the Election Commission of India to conduct elections to the Legislative Assembly of Jammu and Kashmir by 30 September 2024," says CJI reading judgement in Article 370 matter. pic.twitter.com/Vt6dgWVFSD
— ANI (@ANI) December 11, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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— ANI (@ANI) December 11, 2023
सुप्रीम कोर्ट का चुनाव कराने का आदेश: जम्मू-कश्मीर में भारत का संविधान चलेगा. बरकरार रहेगा अनुच्छेद 370 निरस्त का फैसला. केंद्र का फैसला बना रहेगा. राष्ट्रपति के पास 370 पर फैसला लेने का अधिकार है. केंद्र सरकार का 5 अगस्त 2019 का फैसला बरकरार रहेगा. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर के संघ के साथ संवैधानिक एकीकरण के लिए था और यह विघटन के लिए नहीं था, और राष्ट्रपति घोषणा कर सकते हैं कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया है.
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Supreme Court says the argument of petitioners that the Union government cannot take actions of irreversible consequences in the State during Presidential rule is not acceptable. https://t.co/tCAuePPTPf
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— ANI (@ANI) December 11, 2023
अनुच्छेद 370 मामले में फैसला पढ़ते हुए सीजेआई ने कहा, 'हम निर्देश देते हैं कि 30 सितंबर 2024 तक जम्मू और कश्मीर की विधान सभा के चुनाव कराने के लिए भारत के चुनाव आयोग द्वारा कदम उठाए जाएंगे. साथ ही कहा कि राज्य का दर्जा जल्द बहाल किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में लद्दाख के पुनर्गठन को बरकरार रखा.
शीर्ष अदालत ने 16 दिनों तक दलीलें सुनने के बाद 5 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया. केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को निरस्त करने में कोई संवैधानिक धोखाधड़ी नहीं हुई थी. केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए.
केंद्र ने पीठ को बताया था कि जम्मू और कश्मीर एकमात्र ऐसे राज्य नहीं थे जिनका दस्तावेजों के माध्यम से भारत में विलय हुआ था, बल्कि आजादी के बाद कई अन्य रियासतें भी शर्तों के साथ भारत में शामिल हुई थीं.
केंद्र सरकार ने पीठ को बताया कि 1947 में आजादी के समय 565 रियासतों में से अधिकांश गुजरात में थीं और कई में कर, भूमि अधिग्रहण और अन्य मुद्दों से संबंधित शर्तें थीं. केंद्र ने यह भी प्रस्तुत किया था कि केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू- कश्मीर की स्थिति केवल अस्थायी है और इसे राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा, हालाँकि, लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें शुरू करते हुए कहा था कि अनुच्छेद 370 अब अस्थायी प्रावधान नहीं है और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के विघटन के बाद यह स्थायी हो गया है.
उन्होंने तर्क दिया था कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सुविधा के लिए संसद खुद को जम्मू-कश्मीर की विधायिका घोषित नहीं कर सकती थी, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 354 शक्ति के ऐसे प्रयोग को अधिकृत नहीं करता है. इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि अनुच्छेद 370 के खंड 3 की स्पष्ट शर्तें दर्शाती हैं कि अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक थी, सिब्बल ने तर्क दिया था कि संविधान सभा के विघटन के मद्देनजर, जिसकी सिफारिश अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए आवश्यक थी, प्रावधान को रद्द नहीं किया जा सका.
जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि भारत में विलय करते समय, जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने राज्य के क्षेत्र पर अपनी संप्रभुता को स्वीकार किया था, लेकिन राज्य पर शासन करने की अपनी संप्रभु शक्ति को नहीं. जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील जेडए जफर ने कहा, 'जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय क्षेत्रीय था और रक्षा, विदेश मामले और संचार को छोड़कर, कानून बनाने और शासन करने की सभी शक्तियां राज्य के पास बरकरार रखी गईं. केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि बदलावों के बाद, सड़क पर हिंसा, जो आतंकवादियों और अलगाववादी नेटवर्क द्वारा रचित और संचालित की गई थी, अब अतीत की बात बन गई है.