नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को कहा कि वह नौ-न्यायाधीशों और सात-न्यायाधीशों की पीठ के कई मामलों में एक साझा आदेश पारित करेगा, ताकि उन्हें सुनवाई के लिए तैयार किया जा सके. शीर्ष अदालत ने कहा कि इन मामलों में धन संबंधी विधेयक और विधायकों को अयोग्य ठहराने के विधानसभा अध्यक्ष की शक्ति संबंधी मामले भी शामिल हैं. प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति सूर्य कांत, न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सात न्यायाधीशों वाले छह और नौ न्यायाधीशों वाले चार मामलों पर विचार किया.
सात न्यायाधीशों की पीठ के मामलों में से एक मामला विधायकों की अयोग्यता को लेकर विधानसभाध्यक्ष की शक्ति से संबंधित 2016 का नबाम रेबिया फैसले की परिशुद्धता से संबंधित है. यह फैसला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनाया था. सीजेआई ने कहा, '... विचार यह है कि इन मामलों को सुनवाई के लिए तैयार किया जाए. हम 22 अगस्त, 2023 के परिपत्र के संदर्भ में इन सभी मामलों में एक साझा आदेश पारित करेंगे कि दलीलों, दस्तावेजों और मिसालों का संकलन बतायी गई अवधि के भीतर दायर किया जाना चाहिए..हम सभी को तीन सप्ताह का समय देंगे.'
पीठ ने कहा, 'हम हर मामले में नोडल अधिवक्ता नियुक्त करेंगे जो एक साझा संकलन तैयार करेगा.' पीठ ने इन मामलों में पेश होने वाले वकीलों से कहा कि वे प्रत्येक मामले में नोडल अधिवक्ता के नाम बताएं. इनमें से कुछ मामलों में पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पीठ से सुनवाई की तारीखें पहले से बताने का अनुरोध किया ताकि वकील अपना मामला तैयार कर सकें. सीजेआई ने कहा कि वह इसके लिए पीठों के कैलेंडर पर गौर करेंगे. पीठ ने कहा कि वकील किसी मामले के लिए अनुमानित समय बता सकते हैं. उसने कहा कि इनमें से कई मामले 20 वर्षों से लंबित हैं. जब धन विधेयक से संबंधित मामला शीर्ष अदालत के समक्ष आया, तो सिब्बल ने पीठ से इसे प्राथमिकता देने पर विचार करने का अनुरोध किया.
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, 'हम अनुरोध करेंगे कि वरीयता के आधार पर निर्णय लिया जा सकता है. यह पूरी तरह से आपके (न्यायाधीश) विवेक पर निर्भर है.' उन्होंने कहा कि प्राथमिकता राजनीतिक मजबूरियों के आधार पर तय नहीं की जा सकती. पीठ ने कहा, 'यह हम पर छोड़ दीजिये.' उच्चतम न्यायालय ने 6 अक्टूबर को कहा था कि वह आधार अधिनियम जैसे कानूनों को धन विधेयक के रूप में पारित करने की वैधता के मुद्दे पर विचार करने के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ का गठन करेगा.
सरकार के आधार विधेयक और यहां तक कि धन शोधन रोधी अधिनियम (पीएमएलए) में संशोधन को धन विधेयक के रूप में पेश करने के बाद इस फैसले का उद्देश्य धन विधेयक से जुड़े विवाद का समाधान करना है. धन विधेयक कानून का एक हिस्सा है जिसे केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है और राज्यसभा इसमें संशोधन या इसे अस्वीकार नहीं कर सकती है. उच्च सदन केवल सिफारिशें कर सकता है जिन्हें निचला सदन स्वीकार भी कर सकता है और नहीं भी. उच्चतम न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने नवंबर 2019 में वित्त अधिनियम, 2017 को धन विधेयक के रूप में पारित करने की वैधता की जांच करने के मुद्दे को एक वृहद पीठ के पास भेज दिया था.
ये भी पढ़ें - Bombay Hc abortion order: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 29 हफ्ते की दिव्यांग रेप पीड़िता को गर्भपात की इजाजत दी