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CAA 2019 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर SC में सुनवाई 12 सितम्बर को

सुप्रीम कोर्ट नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 12 सितंबर को सुनवाई करेगा. इस मामले को लेकर 220 याचिकाओं पर सुनवाई होने वाली है. यह मामला पिछले काफी लंबे से लंबित था.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Sep 8, 2022, 12:29 PM IST

Updated : Sep 8, 2022, 3:09 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 12 सितंबर को सुनवाई होगी. भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ इससे संबंधी 200 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. इस मामले को लेकर 220 याचिकाओं पर सुनवाई होने वाली है. यह मामला पिछले काफी लंबे से लंबित था. गौरतलब है कि इस कानून के खिलाफ देश में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए थे. 15 दिसंबर 2019 से शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ था, जो करीब 100 दिनों तक चला था.

प्रदर्शनकारियों का मानना था कि इस कानून में मुस्लिम समुदाय का जिक्र नहीं होने को लेकर इस समुदाय के लोगों का मानना है कि इसका उनके खिलाफ दुरूपयोग किया जा सकता है. प्रदर्शन के दौरान इसको लेकर दिल्ली में हिंसा भी हुई थी, जिसमें करीब 54 लोगों की मौत हो गई थी. CAA को भारत सरकार ने 12 दिसंबर 2019 में संसद से पारित कराया था. इस कानून में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.

  • Supreme Court to hear on Monday, 12th September the pleas challenging the Citizenship Amendment Act (CAA) of 2019.

    A bench headed by Chief Justice of India UU Lalit to take up over 200 pleas on Monday. pic.twitter.com/GWkoNMKeoZ

    — ANI (@ANI) September 8, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

यह कानून 10 जनवरी 2020 को लागू कर दिया गया था। इस कानून के तहत 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आने वाले इन समुदाय के लोगों को तुरंत नागरिकता दे दी जाएगी, वहीं उसके बाद या आगे आने वाले लोगों को छह साल भारत में रहने के बाद नागरिकता मिल सकेगी. कोर्ट में दाखिल याचिका में संशोधित नागरिकता कानून को भारतीय संविधान का उल्लंघन करने वाला करार दिए जाने की मांग की गई.

याचिका में कहा गया है कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह केवल धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है. साथ ही याचिका में पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920 और विदेशी अधिनियम 1946 के कुछ प्रावधानों को निरस्त करने की मांग करते हुए दावा किया गया है कि यह संविधान का उल्लंघन करने वाला है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 12 सितंबर को सुनवाई होगी. भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ इससे संबंधी 200 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. इस मामले को लेकर 220 याचिकाओं पर सुनवाई होने वाली है. यह मामला पिछले काफी लंबे से लंबित था. गौरतलब है कि इस कानून के खिलाफ देश में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए थे. 15 दिसंबर 2019 से शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ था, जो करीब 100 दिनों तक चला था.

प्रदर्शनकारियों का मानना था कि इस कानून में मुस्लिम समुदाय का जिक्र नहीं होने को लेकर इस समुदाय के लोगों का मानना है कि इसका उनके खिलाफ दुरूपयोग किया जा सकता है. प्रदर्शन के दौरान इसको लेकर दिल्ली में हिंसा भी हुई थी, जिसमें करीब 54 लोगों की मौत हो गई थी. CAA को भारत सरकार ने 12 दिसंबर 2019 में संसद से पारित कराया था. इस कानून में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.

  • Supreme Court to hear on Monday, 12th September the pleas challenging the Citizenship Amendment Act (CAA) of 2019.

    A bench headed by Chief Justice of India UU Lalit to take up over 200 pleas on Monday. pic.twitter.com/GWkoNMKeoZ

    — ANI (@ANI) September 8, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

यह कानून 10 जनवरी 2020 को लागू कर दिया गया था। इस कानून के तहत 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आने वाले इन समुदाय के लोगों को तुरंत नागरिकता दे दी जाएगी, वहीं उसके बाद या आगे आने वाले लोगों को छह साल भारत में रहने के बाद नागरिकता मिल सकेगी. कोर्ट में दाखिल याचिका में संशोधित नागरिकता कानून को भारतीय संविधान का उल्लंघन करने वाला करार दिए जाने की मांग की गई.

याचिका में कहा गया है कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह केवल धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है. साथ ही याचिका में पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920 और विदेशी अधिनियम 1946 के कुछ प्रावधानों को निरस्त करने की मांग करते हुए दावा किया गया है कि यह संविधान का उल्लंघन करने वाला है.

Last Updated : Sep 8, 2022, 3:09 PM IST
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