नई दिल्ली: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उद्धव गुट के बीच चल रहे असली शिवसेना और चुनाव चिन्ह को लेकर खींचतान कम होने का नाम नहीं ले रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट को राहत देते हुए चुनाव आयोग के उस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर चुका है, जिसमें शिंदे गुट को असली शिवसेना करार दिया गया है. फैसले के खिलाफ उद्धव गुट ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है. इस मामले पर गुरुवार को सुनवाई हुई. मामले पर अगली सुनवाई 28 फरवरी को होगी.
गुरुवार को महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास निर्वाचित सरकार को गिराने और पिछले साल जुलाई में एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित करने की कोई संवैधानिक शक्ति नहीं थी. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि शिंदे के नेतृत्व वाला गुट अभी भी शिवसेना में था. इस तरह ठाकरे के पास नेतृत्व करने के लिए बहुमत था. जबकि सिब्बल ने कहा कि प्रतिद्वंद्वी शिंदे समूह व्हिप की अवहेलना कर ठाकरे सरकार के खिलाफ मतदान कर सकता था या प्रतिद्वंद्वी भाजपा अविश्वास प्रस्ताव ला सकती थी, लेकिन इनमें से कोई भी कदम नहीं उठाया गया.
उद्धव गुट की ओर से सिब्बल ने ददील पेश कर करते हुए कहा कि भरत गोगावले को व्हिप जारी करने के लिए चुना गया. सिब्बल ने यह भी कहा कि जब तक अयोग्यता की कार्रवाई लंबित है तब तक चुनाव आयोग को कार्रवाई नहीं करनी चाहिए थी. शिंदे समूह के वकील महेश जेठमलानी ने दावा किया है कि सिब्बल कोर्ट को गुमराह कर रहे हैं. हमारे पास अभी भी नंबर हैं. सिब्बल का तर्क है कि राज्यपाल से सरकार बचाने की अपेक्षा की जाती है.
वहीं, चीफ जस्टिस ने स्पष्ट किया है कि विपक्ष या बागी विधायक राज्यपाल के पास जा सकते हैं. राज्यपाल स्वयं बहुमत की परीक्षा नहीं ले सकते. सिब्बल ने कहा, एक समूह के लिए उनके पास जाना जरूरी है. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यपाल अयोग्यता पर निर्णय नहीं ले सकते हैं. सिब्बल ने पूछा कि जब ठाकरे पार्टी अध्यक्ष थे तो राज्यपाल ने शिंदे से मिलने का समय कैसे दिया. इसके बाद संविधान पीठ राज्यपाल की शक्तियों के बारे में चर्चा कर रही है.
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